देश के जाने-माने शिक्षक और पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन
के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा का इस वर्ष भी पालन
किया गया. लोगों द्वारा शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते देखकर सुखद एहसास हुआ. उन
तमाम विद्यार्थियों द्वारा,
जो आये दिन अपने शिक्षकों को अपमानित करने से नहीं चूकते हैं,
उनको सम्मान करते देखा; उन तमाम महानुभावों के
द्वारा, जो शिक्षकों को निठल्ला कहना अपना धर्म समझते हैं,
शिक्षकों को माला पहनाते देखा गया; ऐसे अनेक लोगों
द्वारा, जो शिक्षकों को ‘हराम की कमाई खाने
वाले’ कहकर अपमानित करते हैं, आज प्रशस्ति-पत्र देते देखा गया.
कहने का तात्पर्य ये कि आज शिक्षक दिवस के अवसर पर आयोजनात्मक व्यवस्था चालू है. शिक्षक
दिवस गुजरते ही शिक्षक के प्रति सम्मान भी गुजर जाता है. ऐसा लगता है जैसे समाज
में किसी भी वर्ग के शिक्षक को एक नाकारा व्यक्ति समझ लिया गया है. यही कारण है कि
आज के आधुनिक सोच वाले, भौतिकतावादी दौर में, रातों-रात अकूत सम्पत्ति पैदा करने की लालसा रखने वाले समाज में युवा शिक्षक
नहीं बनना चाहता है; बहुतायत में ऐसे माता-पिता भी हैं जो अपनी
संतानों को अध्यापक नहीं बनाना चाह रहे हैं.
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वर्तमान व्यवस्था और जीवनशैली पर निगाह डाली जाये तो ये
सबकुछ हम सबकी मानसिकता को परिलक्षित करता है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारी-भरकम
पैकेज के बीच, आधुनिक साजो-सामान से लैस निजी कंपनियों के लुभावने आवरण के बीच युवा वर्ग
की मानसिकता शिक्षक बनने की दिखती ही नहीं है, इसके अतिरिक्त
घर-परिवार में भी इनको अध्यापन-कार्य हेतु प्रेरित भी नहीं किया जाता है. माध्यमिक
स्तर तक की शिक्षा के दौरान ही अभिभावकों द्वारा अपनी संतानों के मन में व्यावसायिक
पाठ्यक्रमों में प्रवेश का बीजारोपण कर दिया जाता है. उनको बड़ी-बड़ी व्यावसायिक डिग्री
के प्रति जागरूक किया जाता है, बड़ी-बड़ी कंपनियों के बड़े-बड़े पैकेज
लेने को प्रेरित किया जाता है. हालाँकि इस भौतिकतावादी व्यवस्था के बीच युवाओं में
शिक्षक बनने की होड़ हाल-फ़िलहाल में दिखने लगी है तथापि इस होड़ के पीछे के कारण बहुत
अलग हैं.
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धन के पीछे भागती इस दुनिया में युवाओं में शिक्षक बनने की
सोच, होड़ उस
समय विकसित होती है जबकि तमाम रास्तों पर अवरोधक आने लगते हैं; नौकरी करने के, व्यवसाय करने के, बड़े-बड़े पैकेज मिलने के अवसर समाप्त से दिखने लगते हैं. यही कारण है कि इंजीनियरिंग
सहित तमाम व्यावसायिक डिग्रीधारियों को आज प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक बनते देखा
जा रहा है. दरअसल उनके शिक्षक बनने के पीछे का कारण उनकी अध्यापन-कार्य में आने की
सोच या प्रेरणा नहीं वरन स्वयं को आर्थिक रूप से सुरक्षित करना है. सोचा जा सकता है
कि ऐसी मानसिकता में जो व्यक्ति इस क्षेत्र में आएगा वो अध्यापन-कार्य के साथ कितना
न्याय कर पायेगा? विद्यार्थियों को शिक्षा के प्रति कितना संवेदित
कर पायेगा? समाज में शिक्षकों के लिए कितनी सम्मानजनक स्थिति
को बना पायेगा? सच्चाई तो ये है कि आज न तो युवा-वर्ग में शिक्षक
बनने के प्रति जागरूकता है और न ही अभिभावकों द्वारा उनको इसके लिए प्रेरित किया जाता
है. ऐसी स्थिति में महज धनोपार्जन के लिए बने शिक्षकों से उत्कृष्टता की उम्मीद रखना
बेमानी ही है. और शायद यही कारण है कि शिक्षा का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है,
समाज में शिक्षकों के प्रति सम्मान कम होता जा रहा है, विद्यार्थियों में नैतिकता का ह्रास होता जा रहा है. अभिभावकों को इसके लिए
जागना होगा, यदि उनको अपने बच्चों को के लिए बेहतर शिक्षा चाहिए
है तो शिक्षण संस्थानों में उत्कृष्ट शिक्षकों का होना अनिवार्य है. किसी को तो अपने
बच्चों में मात्र धनार्जन के नहीं वरन शिक्षा देने के संस्कार पैदा करने होंगे,
शिक्षक बनने के गुण विकसित करने होंगे. यदि ऐसा नहीं होता है तो हम
शिक्षा के क्षेत्र से बहुत जल्द नैतिकता को तिरोहित कर देंगे, समाज में उत्कृष्ट
शिक्षकों का शून्य खड़ा कर देंगे. ये न केवल वर्तमान के लिए अपितु भविष्य के लिए भी
खतरनाक है.
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