24 मार्च 2014

शंकराचार्य जी, रोज खंडित होती धार्मिकता नहीं दिखती क्या




मोदी समर्थकों के उत्साहित ‘हर हर मोदी’ से शंकराचार्य जी को धार्मिकता खतरे में पड़ती नजर आई. धार्मिकता को ठेस न पहुँचे तो उन्होंने संघ प्रमुख से बात की और ‘हर हर मोदी’ को रोकने की बात कही. आखिर महादेव का पेटेंट ‘हर हर’ मोदी के समर्थक मोदी के साथ कैसे जोड़ सकते हैं. कितना हास्यास्पद लगता है कि दो शब्दों से ही धार्मिकता खतरे में पड़ जाती है, धार्मिक भावनाएँ आहत होने लगती हैं. सनातन धर्म के रूप में, सहिष्णु धार्मिक पद्धति के रूप में हिन्दू धर्म का कोई सानी नहीं किन्तु चंद धार्मिक पदाधिकारियों के कारण से हिन्दू धर्म अपनी प्रासंगिकता पर हमेशा ही प्रश्न चिन्ह लगवाता रहा है. शंकराचार्य महोदय को ‘हर हर मोदी’ से भगवान शंकर का अपमान होता दिखा किन्तु उस अपमान को वे नहीं देख पा रहे हैं जो अनजाने में रोज ही होता है.
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किसी नारे के दो शब्दों का घोष करने से धार्मिकता, धार्मिक भावनाएँ उतनी आहत नहीं होनी चाहिए, जितनी कि शंकराचार्य जी समझ रहे हैं. धार्मिकता यदि इस रूप में खंडित हो रही है तो फिर शंकराचार्य जी उन व्यक्तियों के नाम भी बदलवाने की मुहिम चलायें जिनका नाम भगवानों के नाम पर है और जो नशे का शिकार होकर नाली में गिरते-उलटते दिखते हैं. उन बलात्कारियों, हत्यारों, अपराधियों के नाम भी बदलवाएं जो किसी न किसी भगवान के नाम पर हैं. शादियों में छपने वाले कार्ड में गणेश आदि भगवान की तस्वीर लगवाना बंद करवाएं क्योंकि बाद में इन कार्डों का उपयोग कूड़ा बनने के और कुछ नहीं होता है. पूजा-सामग्री से, धार्मिक उपयोग में आने वाली सामग्री, अगरबत्ती वगैरह से भी भगवान का नाम, उनकी तस्वीर हटवाने का काम करें क्योंकि इनके पैकेट, इनके कागज, इनकी पॉलीथीन आदि उपयोग बाद नाली, नाले में तैरती दिखती है अथवा सड़क पर पैरों तले कुचलती पाई जाती है. शंकराचार्य जी क्या आपको फिल्मों में धार्मिक भावनाओं के साथ, हिन्दू देवी-देवताओं के साथ होता खिलवाड़ नहीं दिखा कभी? हिन्दू धार्मिक भावनाओं, धार्मिक प्रतीकों का उपहास उड़ाते फ़िल्मी कलाकार नहीं दिखे? कभी उपद्रवियों द्वारा मंदिरों को, देवी-देवताओं की मूर्तियों को खंडित करने में धार्मिक भावनाओं को खतरा नहीं दिखा? शायद शंकराचार्य जी को शाब्दिक धार्मिक भावना की अधिक चिंता है, तभी उनकी जागरूकता ‘हर हर मोदी’ पर तो दिखी बाकी जगहों पर होते धार्मिक खिलवाड़ पर नहीं जागी.
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शंकराचार्य जैसे लोगों को एक बात बहुत अच्छे से गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि हिन्दू धार्मिक भावनाएँ तब तक मिटने वाली नहीं जब तक कि गाँव-गाँव तक एक-एक आदमी के दिल में धार्मिकता जिन्दा है. धार्मिक भावनाएँ तब तक आहत नहीं होने वाली जब तक धर्म राजनीति के बजाय आम आदमी के हृदय में बसा हुआ है. शंकराचार्य जैसे लोगों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ‘हर हर महादेव’ ‘जय श्री राम’ आदि घोष किसी राजनीतिक दल की, किसी धार्मिक आचार्य की बपौती नहीं-उसकी थाती नहीं.... ये आम हिन्दू की भावनाएँ हैं. और जब तक आम हिन्दू की भावनाएँ आहत नहीं हो रहीं तब तक किसी भी घोष से धार्मिकता खंडित नहीं होने वाली, आहत नहीं होने वाली.
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