27 जून 2013

सांस्कृतिक आतंकवाद के विरोध में एकजुट हों



आये दिन समाज में किसी न किसी बात को लेकर विरोध प्रदर्शन किये जाते दिख जाते हैं. कभी सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर, कभी प्रशासन की गतिविधियों को लेकर, कभी राजनैतिक दलों को लेकर, कभी व्यापार को लेकर, कभी विरोध होता है टीवी/फिल्म आदि को लेकर और सबसे बड़ी बात कि कुछ दिन के इन प्रदर्शनों के बाद सब खामोश सा दिखाई देने लगता है. वर्तमान में जोधा-अकबर धारावाहिक को लेकर प्रदर्शन किये गए, इसकी कहानी पर विवाद का साया दिखा किन्तु न तो सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम उठाये गए और न ही इस धारावाहिक के निर्माता/निर्देशक की तरफ से कोई सकारात्मक कार्यवाही के संकेत दिए गए. इसके अलावा कभी-कभी इक्का-दुक्का सोशल मीडिया में टीवी के कुछ अश्लील टाइप कार्यक्रमों के विरुद्ध कुछ न कुछ लिखा मिल जाता है पर वो भी अपनी अंतिम परिणति को प्राप्त नहीं हो पता है. 
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वर्तमान में किसी भी काम के पीछे सकारात्मकता कम और नकारात्मकता अधिक दिखाई देने लगी है. किसी एक वर्ग द्वारा किसी गलत बात का विरोध करने पर उसके प्रत्युत्तर में कोई दूसरा वर्ग खड़ा हो जाता है. आपसी विरोध की यही मानसिकता उन तत्त्वों को हावी होने देती हैं जो कहीं न कहीं समाज में विखंडन की स्थिति को मजबूत करना चाहती हैं. आजकल बहुत आसानी से देखने को मिलता है कि टीवी के ज्यादातर कार्यक्रमों में, विज्ञापनों में अश्लीलता हावी होती जा रही है. बच्चों को भी इसमें किसी न किसी रूप में शामिल कर लिया गया है. उनके द्वारा अश्लील हाव-भाव के साथ नृत्य-गायन के कार्यक्रमों को संचालित किया जा रहा है. बच्चे ऐसे-ऐसे गीतों पर नृत्य कर रहे हैं, अश्लील भाव-भंगिमाओं के साथ स्टेज पर आ रहे हैं जिनका अर्थ उन्हें स्वयं ही नहीं मालूम होगा.
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दरअसल तमाम सारी विकृतियों के साथ-साथ सांस्कृतिक आतंकवाद नाम की विकृति हमारे घरों में उतर आई है. ये बुराई, ये विकृति अब खुलेआम हमें हमारे घर में पल्लवित-पुष्पित होते दिखती है और इसका विरोध करने वाले को संकुचित मानसिकता वाला बताया जाता है. संस्कृति को अश्लीलता के द्वारा आसानी से समाप्त करने का कुचक्र रचा जा रहा है. इसके पीछे शामिल लोगों का मंतव्य केवल धन कमाना है. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि युवा पीढ़ी क्या सीख रही है, बच्चे किस बात का अनुसरण कर रहे हैं. आज जिस तरह से बच्चों का समय से पहले युवावस्था में पहुंचना हो रहा है वो परिवार के लिए, समाज के लिए घातक है. समय रहते हम सभी को इस सांस्कृतिक आतंकवाद को पहचान कर उसको मिटाना होगा. अपने लिए न सही, कम से कम अपने बच्चों के लिए अश्लीलता के विरोध में एकजुट होकर खड़ा होने की जरूरत है. 
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