उत्तराखंड
की आपदा, केदारनाथ की तबाही से प्रभावित इंसानों ने अपना बहुत कुछ गंवाया है, अपने
परिवार को खोया है. वहां रह रहे लोगों ने एक तरह से अपने वजूद को भी गंवाया है. हर
गलती इन्सान को कुछ न कुछ सीखने का अवसर देती है. हर संकट से बाहर निकलने के रास्ते
मिलते हैं, संकट से लड़ने की शक्ति मिलती है. इस आपदा से भयंकर जन-धन की तबाही हुई
है और कहीं न कहीं इस बात को मानने से संकोच नहीं करना चाहिए कि ये आपदा मानवजनित
अधिक है. हम सब भले ही इसके लिए बादलों के फटने को, घनघोर बारिश को, नदियों के तेज
बहाव को दोष दें किन्तु असल सत्य यही है कि हम इंसानों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए
हैं कि इस तरह की आपदाएं आने वाले वर्षों में आम हो जाएँगी. हाल-फ़िलहाल तो राहत
कार्य, बचाव कार्य चल रहे हैं और हम सभी को भी अभी उसी की पूर्ण सफलता के प्रयास
करने चाहिए पर ये आपदा कहीं न कहीं हम इंसानों के लिए एक तरह की सीख लेकर आई है.
यदि हमने कुछ सीखने की कोशिश की तो ये हमारी जागरूकता होगी अन्यथा की स्थिति में
आने वाले वर्षों में हमें और भयावह अवसरों का सामना करना पड़ेगा.
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हमें
आगे के लिए अपनी योजनाओं, अपनी परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
अपने मकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, होटलों आदि के निर्माण के समय इस बात का
ध्यान दिया जाए कि प्राकृतिक असंतुलन न होने पाए. हमारे किसी भी कदम से नदियों के
बहाव में अड़चन पैदा न हो, नदियों की प्राकृतिकता नष्ट न हो. जो लोग पहाड़ी
क्षेत्रों में निवास करते हैं वे इस बात का ख्याल रखें कि उनके विकास कार्य पहाड़ों
को अस्थिर न बनाते हों. इनके अलावा और भी तमाम कार्य ऐसे हो सकते हैं जिनके उठाये
जाने से हम प्राकृतिक असंतुलन को रोक सकते हैं. ये सावधानी भरे कदम इन्सान के लिए
तो हैं ही, सरकारों को भी इस तरफ मुस्तैदी और ईमानदारी से विचार करने की जरूरत है.
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इसके
अलवा एक और अहम सीख, जो हमारी नज़रों में, मिली कि धन के पीछे अंधाधुंध रूप से
भागना भी इन्सान को बंद करना चाहिए. तमाम कहानियां केदारनाथ के दर्द से बाहर आईं,
जिनके द्वारा पता लगा कि लोगों के लाखों रुपये, लाखों की संपत्ति उनके किसी काम न
आ सकी. बैंक में जमा लाखों धन की निकासी के लिए काम आने वाले एटीएम निर्जीव से
बेकाम वहीं मलबे में पड़े रहे. लोगों को एक-एक रोटी के लिए अपने जेवरातों को मिटटी
के मोल देना पड़ा. उस विभीषिका में काम आई तो लोगों की सहानुभूति, लोगों का सहयोग,
लोगों की मंगल कामनाएं, दान देने की प्रवृत्ति. भौतिकतावादी होने का अर्थ ये नहीं
होना चाहिए कि हम धन को अनिवार्य समझ लें, हाँ, ये आवश्यक हो सकता है पर अनिवार्य
नहीं.
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रिश्तों,
सहयोग, जनभावना, संवेदनशीलता को इस आपदा ने अवश्य ही सिखाया होगा. ये अपवाद स्वरुप
जरूर हो सकता है कि कुछ स्वार्थी ताकतों ने ऐसे समय में भी लूटमार की, सामानों को
बहुत अधिक कीमत पर बेचा किन्तु देश भर से मदद को उठे हाथ, जवानों का बेख़ौफ़ जमे
रहना, आम आदमी का भी सहायता को सामने आना आदि ऐसी घटनाएँ हैं जिनको सीखा जा सकता
है. ये सत्य है कि इस भीषण आपदा को शायद ही कभी भुलाया जा सके किन्तु इस आपदा के
पीछे से आती सीख को यदि हम आत्मसात कर सकें तो संभव है कि आने वाली पीढ़ी को हम
स्वस्थ समाज दे सकें.
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