केंद्र सरकार और इस
सरकार के चार वर्षों का कार्यकाल देखा जाये तो कोई भी आसानी से कह सकता है कि वर्तमान
सरकार लगभग सभी मोर्चों पर विफल रही है. यूपीए गठबंधन की पहली पारी को देखने के
बाद मतदाताओं ने उसे लोकसभा में दूसरी पारी के लिए भेजा. इस दूसरी पारी में सरकार
का, उसके मंत्रियों का, कांग्रेस नेताओं-पदाधिकारियों का रवैया इस तरह का रहा मानो
अब उसे इस लोकसभा कार्यकाल से जाना ही नहीं है. आये दिन होते घोटालों, भ्रष्टाचार
के मामलों, रिश्वत के मामलों ने आमजन को घनघोर निराशा में धकेल दिया. इन कुकृत्यों
के अलावा सरकारी स्तर पर आम जनता को राहत पहुँचाने का काम भी इन चार वर्षों में
होता नहीं दिखा. महंगाई ने अपना ही रिकार्ड बनाया, अपराधों ने अपना रौद्र रूप
दिखाया, सार्वजनिक हित के कार्यों में जबरदस्त लापरवाही देखने को मिली.
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सरकार आमजन के प्रति
विश्वासपरक भी इन चार वर्षों में नहीं दिखाई दी. किसी समय अपनी निश्छल छवि, सहज
व्यक्त्तित्व के कारण जन-जन में स्वीकार्य प्रधानमंत्री भी गाहे-बगाहे संदेह के
घेरे में आते दिखते हैं. घोटालों की इतनी लम्बी श्रृंखला के सामने आने के बाद, नित
नए घोटालों के सामने आने के कारण/आते रहने के कारण से उनके प्रति भी लोगों में
संदेह उपजता जा रहा है. जन सामान्य एकबारगी इस बात पर विश्वास कर सकता है कि उनका
किसी घोटाले में हाथ नहीं है पर उनकी जबरदस्त चुप्पी और प्रत्येक मामले में कोई
ठोस कदम न उठाना उनके प्रति भी निराशात्मक वातावरण को तैयार करता है. इसके अलावा
बजाय जनहित के कार्यों में रुचि लेने के इस सरकार के मंत्री, कांग्रेस पदाधिकारी,
नेता राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने की क्षुद्र चाटुकारिता में लिप्त दिखाई
देते हैं. इस चाटुकारिता में कई बार ऊलजलूल बयानबाज़ी भी सामने आ जाती है. इस
बयानबाज़ी के पीछे से दो ध्रुव, एक ध्रुव सम्बन्धी दिग्विजय सिंह के बयान ने भी
माहौल को गरम कर दिया था. प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनते ही और राहुल गाँधी के
प्रधानमंत्री बनने के प्रति अनिच्छा सी जताते ही कई दिग्गज अपने को मनमोहन सिंह की
जगह प्रतिस्थापित करने के स्वप्न देखने लगे. इसके अलावा राहुल की यूथ ब्रिगेड को
वरीयता मिलने के कारण, राहुल के बड़ी जिम्मेवारी के रूप में उपाध्यक्ष बनने, उनके
हर बार व्यापक फेरबदल करने की चर्चा करने से वयोवृद्ध नेताओं में, असफल से नेताओं
में अपने टिकट को कटने की आशंका भी जगी, जिसने भी इन नेताओं को भ्रष्टाचार के लिए
प्रेरित किया. इसके अलावा सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, मनमोहन सिंह के अपने-अपने
चहेते लोगों ने भी अपने-अपने अधिकारों, पदों, संबंधों का दुरुपयोग करते हुए अकूत
संपत्ति पैदा की.
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घोटाले करने में,
संपत्ति बनाने में, रिश्वतखोरी में व्यस्त रहे मंत्रियों, नेताओं के पास जनता की
सुध लेने का समय नहीं था तो स्वयं सरकार ने भी इस तरफ कोई पहल नहीं की. रसोई गैस
का, पेट्रोल का, डीजल का लगातार मंहगा होते जाना, आम जरूरतों की वस्तुओं का, खाद्य
पदार्थों का पहुँच से बाहर होना, बिजली, पानी संकट, किसानों की आत्महत्याएं,
बेरोजगारी जैसी विषम स्थितियों को सुलझाने के लिए भी सरकार की तरफ से कोई कोशिश
नहीं की गई. देखा जाये तो इन चार सालों में सरकार निरपराध आन्दोलनकारियों पर
लाठीचार्ज करती दिखी है, अपने देश की जमीन को खोती दिखी है, पड़ोसी से डरती दिखी
है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति में असफल दिखी है, व्यापारिक रूप में भी कमजोर
दिखी है......हाँ, यदि कहीं कुछ सशक्त दिखी है तो अपने निपट विपक्षियों के सहारे
चलती दिखाई दी है, सीबीआई के सहारे सत्ता पर काबिज दिखी है, चाटुकारों की भीड़ से
सुशोभित रही है, घोटालेबाजों को प्रोत्साहित करती दिखी है, बड़ी जिम्मेवारी देती
दिखी है, रिश्ते-नातेदारों को बचाती दिखी है. चार सालों कि अप्रतिम असफल यात्रा की
बधाई सरकार को क्या दी जाए....आमजन को इस बात के लिए बधाई कि वो सरकार की
ज्यादतियां लगातार झेलने के बाद भी जिंदा है, चाटुकारों को इस बात के लिए कि इतने
सारे घोटालों के बाद भी उनके मुखारविंद से सरकार का गुणगान ही निकला, घोटालेबाजों
को शुभकामनायें कि नाम सामने आने के बाद भी कोई उनका बाल-बांका भी नहीं कर पाया,
बधाई उस विपक्ष को जो किसी न किसी लालच में जबरदस्त विरोधी होने के बाद भी सरकार
को सहारा दिए खड़े हैं, बधाई उस विपक्ष को जो लचर, खामोश बना बस तमाशा देख रहा है. इतनी
सारी बधाइयों के बीच कोई कैसे कह सकता है कि वर्तमान सरकार की चार वर्षीय यात्रा
असफल रही है.
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