23 दिसंबर 2012

फांसी की सजा बलात्कार का समाधान नहीं

          दिल्ली गैंगरेप के बाद दिल्ली समेत देश के कई भागों में इन बलात्कारियों को फाँसी की सजा देने की माँग जोर पकड़ने लगी है। ऐसा लग रहा है जैसे इन दो-चार बलात्कारियों के लिए फांसी की सजा के निर्धारण से देश में बलात्कारियों में डर व्याप्त हो जायेगा अथवा बलात्कार होने बन्द हो जायेंगे। प्रशासन-शासन की विफलता के बाद उसको चेताने के लिए, जगाने के लिए जनता का जागरूक होना लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत है किन्तु जिस तरह से सरकार को एक प्रकार से बंधक बनाकर कानून में बदलाव की मांग की जा रही है वह कुछ और विषम स्थितियों की ओर सोचने को विवश करती है।
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          बलात्कार के लिए फांसी की सजा की मांग करने के पूर्व हमें उन तमाम सारे कानूनों की ओर भी ध्यान देना होगा जिनके द्वारा किसी अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है। क्या उन तमाम अपराधों में कमी आई है अथवा वे अपराध होना बन्द हो गये है? पूर्वाग्रह दृष्टि न रखने वालों का एक ही जवाब इसके लिए होगा और वो भी न में। तमाम सारे वे अपराध आज भी तेजी से समाज में होते दिख रहे हैं, जिनके लिए सजा के रूप में फांसी की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा एक और तथ्य महत्वपूर्ण है कि यदि बलात्कार की सजा के रूप में फांसी को मुख्य रूप से स्वीकार कर लिया गया तो इसके कई दुष्परिणाम महिलाओं के प्रति ही खड़े होने की आशंका है।
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          यह सर्वविदित है कि यदि किसी भी महिला से बलात्कार हुआ तो जाहिर है कि वह महिला किसी न किसी रूप में शारीरिक दृष्टि में उस बलात्कारी पुरुष से कमजोर साबित हुई है। इसके अलावा गैंग रेप के केस में तो जाहिर है कि उस महिला के साथ दुराचार करने वालों की संख्या एक से अधिक रही होगी। यह भी तथ्य विचारणीय है कि बलात्कार किसी न किसी रूप में अकेले में किसी जाने वाला दुराचार है, यह चोरी, डकैती, हत्या आदि की तरह से खुलेआम किये जाने वाला अपराध कतई नहीं है। ऐसे में यदि बलात्कार की सजा फांसी हो जाती है तो बहुत हद तक सम्भावना है कि सम्बन्धित महिला को दुराचारी लोग जीवित ही न छोड़ें। आखिर उन बलात्कारियों को पहचानने वाला, उनकी शिकायत करने वाला, उनके विरुद्ध गवाही देने वाला यदि कोई होगा तो सिर्फ और सिर्फ वह महिला ही। ऐसे में उन दुराचारियों के द्वारा उसको जीवित छोड़ देने की सम्भावना न्यूनतम होने की आशंका है।
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          इसके साथ ही साथ देश में बने विभिन्न कानूनों की तरह ही इसके दुरुपयोग की आशंका स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। दहेज विरोधी कानून का जो हाल हो रहा है वह किसी से भी छिपा नहीं है। आज तमाम सारे ऐसे मामले संज्ञान में आ रहे हैं जिनमें लड़के वालों को निरपराध होते हुए भी फंसाया जा रहा है। बलात्कार की सजा के रूप में फांसी को मान्यता दे देने के बाद बहुत हद तक आशंका है कि इसका भी दुरुपयोग दहेज विरोधी कानून की तरह से होने लगेगा। आज के लिव इन रिलेशन को मान्यता देने वाले इस दौर में भी ऐसी कोई भी तकनीक विकसित नहीं हो सकी है जिसके आधार पर शारीरिक सम्बन्ध की असलियत को बताया जा सके। माना एक महिला और एक पुरुष आपसी सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं और उसके बाद यदि वह महिला उस पुरुष पर बलात्कार का आरोप लगा दे तो किसी भी तरह से सिद्ध करना सम्भव नहीं कि शारीरिक सम्बन्ध आपसी सहमति से बने अथवा महिला के साथ बलात्कार हुआ है। ऐसे में किसी न किसी रूप में ब्लैकमेलिंग की घटनाएं भी बढ़ सकती हैं।
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          कानून में परिवर्तन करके फांसी की सजा की मांग करने का जो तरीका अख्तियार किया गया है, जिस तरह से सरकार को घेरने का कार्य किया गया है, जिस तरह से उपद्रवी जागरूकता देखने को विगत दो-तीन दिन में मिली है यदि यह सभी कुछ शासन-प्रशासन को चुस्त-दूरुस्त रखने के लिए किया जाये तो परिणाम किसी न किसी रूप में कुछ हद तक सुखद मिलने की सम्भावना है। यदि जागरूकता लोगों को सजग रहने के लिए दिखाई जाये तो महिलाओं को इस तरह से आये दिन दुराचारियों का शिकार न होना पड़े। यदि एकजुटता की स्थिति को अपराधियों में मन में खौफ पैदा करने के लिए दिखाई जाये तो पल प्रति पल ऐसी वीभत्स घटनाओं से हमें दो-चार नहीं होना पड़ेगा। अपराधियों के मन में तो इस जागरूकता का कहीं कोई डर नहीं दिखाई दिया, यदि ऐसा होता तो इन हंगामी भरे दो-तीन दिवसों में दिल्ली सहित देश के कई भागों में गैंगरेप के और मामले सामने नहीं आये होते।
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1 टिप्पणी:

  1. इसके साथ ही साथ देश में बने विभिन्न कानूनों की तरह ही इसके दुरुपयोग की आशंका स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। दहेज विरोधी कानून का जो हाल हो रहा है वह किसी से भी छिपा नहीं है। आज तमाम सारे ऐसे मामले संज्ञान में आ रहे हैं जिनमें लड़के वालों को निरपराध होते हुए भी फंसाया जा रहा है। बलात्कार की सजा के रूप में फांसी को मान्यता दे देने के बाद बहुत हद तक आशंका है कि इसका भी दुरुपयोग दहेज विरोधी कानून की तरह से होने लगेगा। आज के लिव इन रिलेशन को मान्यता देने वाले इस दौर में भी ऐसी कोई भी तकनीक विकसित नहीं हो सकी है जिसके आधार पर शारीरिक सम्बन्ध की असलियत को बताया जा सके। माना एक महिला और एक पुरुष आपसी सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं और उसके बाद यदि वह महिला उस पुरुष पर बलात्कार का आरोप लगा दे तो किसी भी तरह से सिद्ध करना सम्भव नहीं कि शारीरिक सम्बन्ध आपसी सहमति से बने अथवा महिला के साथ बलात्कार हुआ है। ऐसे में किसी न किसी रूप में ब्लैकमेलिंग की घटनाएं भी बढ़ सकती हैं।


    this is the attitude of society that makes woman a "second grade citizen "

    a rapist needs to be hanged without court case . no proof is needed

    and please dont write trash because woman are not "chhinal" as u would like to prove

    जवाब देंहटाएं