05 जुलाई 2011

महाविद्यालय के शिक्षकों की सेवानिवृति आयु आजीवन कर दो


उ0प्र0 के महाविद्यालयों के शिक्षकों ने अदालत का दरवाजा खटखटाकर इंसाफ मांगा। वैसे इंसाफ न कहें बल्कि कहें कि अपनी लालच की टोकरी को भरने की तृष्णा प्रदर्शित कर गुहार लगाई है।


चित्र गूगल छवियों से साभार


जी हां, आपको शायद ज्ञात होगा कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत प्राध्यापकों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है और महाविद्यालयों में यह आयु 62 वर्ष है। यह आयु भी विगत कुछ वर्ष पूर्व महाविद्यालयों के प्राध्यापकों ने लड़-झगड़ कर बढ़वा ली थी। अब इनकी मांग है कि इस आयु को 65 वर्ष कर दिया जाये।

एक ओर देश का नौजवान बेरोजगारी से जूझ रहा है और दूसरी और अपनी शारीरिक अक्षमता के बढ़ते जाने के साथ-साथ महाविद्यालयों के शिक्षक अपनी सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़वाना चाहते हैं। अब यदि किसी कारण से सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाकर 65 वर्ष कर दिया तो निश्चित है कि अगले तीन वर्षों तक महाविद्यालयों में रिक्त पदों का टोटा पड़ जायेगा अर्थात् अगले तीन वर्ष तक युवा बेरोजगारों की संख्या और बढ़ जायेगी।

महाविद्यालय शिक्षकों की अप्रत्याशित वेतन-वृद्धि के कारण प्रतिमाह मिलने वाली पांच अंकों की राशि के लालच में और काम के बस कुछ घंटों के कारण सेवानिवृत्ति की आयु को ये शिक्षक किसी भी कीमत पर बढ़वाने को उतावले हैं। देखा जाये तो 55 की उम्र के बाद व्यक्ति की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और यदि व्यक्ति की मानसिक सोच सकारात्मक नहीं है तो वह कार्य के प्रति समर्पित नहीं रह पाता है। यह भी देखने में आया है कि अधिकांश महाविद्यालयों के अधिकांश शिक्षक स्वयं को अध्यापन कार्य के प्रति इसके बाद पूर्णतः समर्पित नहीं कर पाते हैं। ऐसे में उनकी सेवानिवृत्ति की उम्र को बढ़ाना यदि एक ओर शिक्षा व्यवस्था से, छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है तो वहीं दूसरी ओर बेरोजगारों के सपनों से, उनके अवसरों से भी खिलवाड़ है।

सरकार, अदालत इस ओर सकारात्मक दृष्टि से विचार करे और बेरोजगारों की दशा को ध्यान में रखकर अपना फैसला सुनाए। यदि किसी कारण से सरकार को, अदालत को शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु को 65 वर्ष करने का विचार बने तो हमारा एक सुझाव है कि महाविद्यालयों के शिक्षकों की इस आयु को बढ़ाकर आजीवन कर दे। इससे बेरोजगारों को एक बात तो स्पष्ट हो जायेगी कि उनके लिए महाविद्यालयों में अब कोई जगह नहीं है और वे भी उच्च शिक्षा में अध्यापन के लिए अपने प्रयासों को करने से बचेंगे।


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