देश में पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। लगभग प्रत्येक शहर में अपने-अपने स्तर पर लोगों का विरोध जारी है। विरोध होना भी चाहिए क्योंकि सरकार ने एकाएक ही तेल की कीमतों में वृद्धि कर दी। इसके साथ ही हमें उन लोगों के विरुद्ध भी अपना आन्दोलन उग्र कर देना चाहिए जो बिना काम के देश का तमाम सारा पेट्रोल, डीजल धुँआ बनाकर उड़ाते रहते हैं।
आपने गौर किया होगा कि हमारे सभी के शहर में, मोहल्ले में बहुत से नौजवान इस तरह के होंगे, बहुत से परिवार इस तहर के होंगे जिनके छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कार्य भी बिना गाड़ी के पूरा नहीं होता होगा। ऐसे-ऐसे कार्य जो आसानी से कदमताल करते हुए भी पूरे किये जा सकते हैं, उनके द्वारा गाड़ियों के द्वारा ही पूरे किये जाते हैं।
ऐसे में जबकि देश का एक बहुत बड़ा तबका अत्यावश्यक कार्यों के लिए तेल की आवश्रूकता की माँग कर रहा है और उसके ठीक उलट देश का ही एक बहुत बड़ा वर्ग बिना काम के तेल को बर्बाद करने में लगा है तो क्या तेल कीमतों के लिए सिर्फ सरकार को ही दोषी ठहराया जायेगा।
(यहाँ एक आग्रह है कि इस बात को भी नेताओं से जोड़कर न देखा जाये, उनके द्वारा की जा रही बर्बादी, आबादी को, कार्यों को, अकार्यों को इस सबसे सम्बद्ध न किया जाये और आने वाले दिनों की भयावहता का ध्यान में रखा जाये।)
जैसा कि हम हमेशा से कहते आये हैं कि तेल के लिए भी राशनिंग प्रणाली कर दी जाये और तेल के दामों को आसमान पर चढ़ा दिया जाये। कीमत इतनी अधिक हो कि अत्यावश्यक होने पर ही हमारी गाड़ी निकले अन्यथा की स्थिति में हम पैदल अथवा साइकिल आदि से काम चलावें। जो लोग विरोध के लिए साइकिल चलाने का, रिक्शा के उपयोग का, बैलगाड़ी का उदाहरण आज सामने रख रहे हैं वे लोग ही इस तरह की बढ़ती तेल कीमतों के लिए जिम्मेवार हैं। यदि शुरू से ही साइकिल चलाने के बारे में सोचा होता तो आज न तो उनको साइकिल चलाने में शर्म महसूस होती और न ही उनके बच्चों को इसमें शर्म आती।
सरकार ने अच्छा किया या बुरा इस पर बहस एक अलग मुद्दा है किन्तु तेल की बर्बादी जिस प्रकार से हम सभी कर रहे हैं वो हमारे लिए घातक भी है, शर्मनाक भी है। देषव्यापी बहस भले ही पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर हो अथवा न हो किन्तु हम सभी के द्वारा किये जा रहे अंधाधुँध निष्प्रयोजन उपयोग पर बहस अवश्य ही हो।
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