अभी कुछ दिन पहले ही यहाँ फेसबुक पर और अपने ब्लॉग पर लिख था कि तेल की बढ़ती कीमतों के लिए हम भी जिम्मेवार हैं। अब दो-तीन दिन बाद लग रहा है कि नहीं हम गलत हैं, हम जिम्मेवार कैसे हो सकते हैं। इस बात को इस कारण से कह रहे हैं कि चिरकुट सी बात पर उछल-उछल कर आने वाले लोग इस तरह की पोस्ट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने से बचे।
हमारा कोई मकसद किसी प्रकार की टिप्पणी आप सभी से प्राप्त करना नहीं है। हाँ, कुछ महानतम लोग हैं जो राग अलापते हैं कि ब्लॉग लेखन के द्वारा, इस तरह की सोशल नेटवर्किंग के द्वारा सामाजिक जागरूकता का काम किया जा रहा है, उन लोगों को दिखाना है कि हमारी सामाजिक जागरूकता ऐसे प्लेटफार्म पर कुछ कविताओं, कुछ चित्रों, कुछ फूहड़ टाइप के शेरों, कुछ रोजमर्रा के कामों की फेहरिस्त पर अपनी टिप्पणी देकर ही सम्पूर्णता को प्राप्त कर लेती है।
जो जिसकी सामाजिक क्षमता है, जो जिसका सामाजिक दायित्व है और जो जिसका सामाजिक दायरा है वह उसी के इर्द-गिर्द विचरता हुआ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है और सोचता है कि सम्पूर्ण समाज को बदलने का ठेका उसी ने और सिर्फ उसी ने उठा रखा है। और वैसे भी हम परेशान क्यों हो रहे हैं, यह हमारी खुद की समझ में नहीं आ रहा है? कौन से हमारे पिताजी पेट्रोल की जिम्मेवारी हमारे ऊपर छोड़ गये हैं कि यदि समाप्त हो गया तो देशवासियों को क्या मुँह दिखायेंगे। अरे खूब उड़ाओ, जब तक मिल रहा है तब तक उड़ाओ।
‘जियो तो हर पल ऐसे जियो, जैसे कि आखिरी हो’ की तर्ज पर जीवन के उन सभी पलों का भोग कर लो जिनका कोई महत्व नहीं है पर उन पलों को मत जीना जिनका लाभ समाज को, आने वाली पीढ़ी को मिलना हो। चलो हम तो बिना बात ही सेंटिया रहे हैं, कौन सा हमारे घर की जायदाद है तेल.....और कौन सा हमारी विरासत में मिला है कि सामाजिक जागरूकता का काम हम ही को करना है.....कौन सा हम ही एकमात्र ठेकेदार हैं कि इंटरनेट के द्वारा शालीनता, सार्थकता, सकारात्मकता, जागरूकता की बात हम ही को करनी है......। जैसे सब चलता है, वैसे ही खुद को भी चलायें...शायद इसी में सुख है, परम सुख है।
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