जनपद जालौन में आगामी माह में प्रदेश की कड़क मिजाज मुख्यमंत्री मायावती के आने का कार्यक्रम तय है। मुख्यमंत्री को आना है और आकर किसी न किसी स्थान का दौरा भी करना है। इस कारण से समूचे प्रशासनिक अमले में हड़कंप मचा हुआ है।
उरई जिला मुख्यालय है और जिले का समस्त सरकारी अमला भी उरई में निवास करता है। सारे बड़े-छोटे सरकारी कार्यालय भी उरई में ही बने हैं तो स्वाभाविक है कि मुख्यमंत्री को उरई तो आना ही आना है। इस आने के कार्यक्रम के बाद तो शहर की सड़कों को सुधारने का काम चल रहा है, सड़कों के टूटे हुए डिवाइडर को सुधारा जा रहा है, बिजली के लटके-टूटे खम्बे सुधारे जा रहे हैं...हर तरफ सुधारों का जोर दिख रहा है।
इन सुधारों के साथ-साथ काशीराम आवासीय कॉलोनी में भी मिलीं अनियमितताओं को दुरुस्त किया जा रहा है। प्रशासनिक मशीनरी पूरी तन्मयता से और सम्पूर्ण भय के साथ अपने काम में मुस्तैद दिख रही है। अम्बेडकर गांवों की ओर भी प्रशासन की नजरें इनायत हो गईं हैं। कुल मिला कर देखा जाये तो भय के कारण सभी के द्वारा काम बड़ी फुर्ती से निपटाये जा रहे हैं।
सब देखकर ऐसा लग रहा है कि किताबों में बसा हुआ रामराज्य आ गया है। क्या डी0एम0, क्या एस0पी0, क्या कमिश्नर, क्या छोटे-छोटे कर्मचारी/अधिकारी..सभी अपनी कर्तव्यनिष्ठा दिखाने में लगे हैं।
यह सब मायावती के भय के कारण है। मुख्यमंत्री का भय इतना है कि उनके नाम से ही बड़े-बड़े अधिकारियों की बोलती बन्द हो जा रही है। पिछले दस-पन्द्रह वर्षों के प्रदेश के राजसत्ता कार्यकाल में शायद ही कोई और मुख्यमंत्री ऐसा रहा हो जिसके नाम से अधिकारियों में भय बना रहता हो। ऐसा हमें हाल फिलहाल सिर्फ और सिर्फ मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में ही देखने को मिला है।
इस भय के आलम के बाद भी प्रदेश में अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। हर क्षेत्र में अपराध ही अपराध देखने को मिल रहे हैं और विशेष रूप से महिलाओं पर तो सर्वाधिक रूप से अत्याचार हो रहे हैं। चोरी, गुण्डागर्दी, हत्याएं, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी के साथ-साथ महिलाओं के साथ गैंग-रेप, सड़क चलते छेड़खानी, चलती कार में अपहरण करके बलात्कार करना और इन सब कुकृत्यों के बाद महिलाओं की हत्या कर देना भी देखने में आ रहा है। महिलाओं में युवा महिलाओं के साथ-साथ बच्चियों को, स्कूली छात्राओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
आखिर इस पूरे कारणों को न तो समझने का प्रयास किया जा रहा है और न ही सरकारी तौर पर इनके नियंत्रण के लिए कोई कदम उठाया जा रहा है। उस प्रदेश में जहां मुख्यमंत्री स्वयं महिला हो और उसके कड़क स्वभाव के कारण अधिकारियों में डर बना रहता हो, मंत्री-विधायक भी उसके सामने बोलने से डरते हों उस प्रदेश में अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़े तो मामला हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए।
प्रशासनिक अमले में मायावती का डर होना एक बात है और उस डर के चलते समाज में शान्ति व्यवस्था बनी रहना दूसरी बात है। देखने में आ रहा है कि मायावती का विशेष जोर अम्बेडकर, काशीराम के नाम पर ज्यादा रह रहा है साथ ही उनका ध्यान किसी न किसी रूप में प्रशासन को नियंत्रण में रखने पर भी रहा है। इस कारण से प्रशासन स्वयं को चुस्त-दुरुस्त रखने का प्रयास करता रहता है और समाज की तरफ से अपना ध्यान हटा लेता है। इस कारण से वे मिड-डे मील, मनरेगा, पंचायत, विकास कार्यों की ओर तो ध्यान देने लगते हैं किन्तु शान्ति व्यवस्था की ओर से ध्यान हटा लिया जाता है।
मुख्यमंत्री को, उनके अमले को, प्रशासनिक मशीनरी को यह ध्यान रखना होगा कि मात्र एक व्यक्ति के कारण भय से सुरक्षित रहने के कारण वे समूचे समाज को भयग्रस्त नहीं बना सकते हैं। प्रशासनिक व्यवस्था को ठीक रखने के साथ ही इन सभी का दायित्व बनता है कि आम जन-मानस भी स्वयं को सुरक्षित महसूस करे न कि गुण्डों, माफियाओं, आतंकियों, चोरों से भयभीत रहे।
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दोनों चित्र गूगल छवियों से साभार लिए गए हैं...
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