24 जनवरी 2011

तिरंगा फहराने से हालत बिगड़ना शुरू हो गए


दो दिन के बाद 26 जनवरी है, गणतन्त्र दिवस मनाने की पूरी तैयारी दिल्ली ने कर दी है। परेड के लिए भी रिहर्सल को फाइनल कर लिया गया है। इसके बाद भी कहीं न कहीं किसी आशंका के कारण से कोई खुशी सी दिख नहीं रही है। इस तरह के कार्यक्रमों पर सरकार के सामने सबसे बड़ी चिन्ता आतंकी घटना के घटित हो जाने की होती है। इस बार भी इस तरह की आशंका तो व्यक्त की ही जा रही है। इसके साथ-साथ एक दूसरी घटना भी है जो सरकार के हाथ-पैर फुला रही है।


चित्र गूगल छवियों से साभार

इस बार भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की घोषणा करके केन्द्र सरकार की नींद उड़ा दी है। उधर जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार के हालचाल भी इस घोषणा के बाद से सही नहीं दिख रहे हैं। उसने पूरी तैयारी कर ली है कि किसी भी कीमत पर भारतीय जनता पार्टी लाल चौक पर तिरंगा न फहरा सके। कल से नेताओं की पकड़-धकड़ भी शुरू कर दी गई है।

भारतीय जनता पार्टी एक तरफ अपना खोया जनाधार खोजने में लगी है और इसी तरह से केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार अपने वोट-बैंक को ध्यान में रखकर राजनीति कर रहे हैं। हो सकता है कि वर्तमान हालातों को देखते हुए भाजपा की यह घोषणा उचित न हो किन्तु यह तो कदापि उचित नहीं कि मात्र किसी एक धर्म विशेष अथवा वोट-बैंक के कारण देश के किसी हिस्से में देश के किसी भी नागरिक को तिरंग फहराने से रोका जा सके।

जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार का तथा केन्द्र सरकार का जो भी नजरिया है उसका भाव तो यही निकलता है कि भाजपा के लाल चौक पर तिरंगा फहराने से राज्य के हालात बिगड़ सकते हैं। समझ में नहीं आता है कि देश के ही एक भाग में देश का तिरंगा फहराने से हालात क्यों और कैसे खराब हो जायेंगे? कुछ इसी तरह की स्थिति नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में रहती है। यदि हमारी सरकारें इस तरह की स्थिति को रोकने में सक्षम नहीं हैं तो कुछ ठोस कदमों को उठाया जाना चाहिए।

जहां तक बात जम्मू-कश्मीर की है, यदि वहां तिरंगा फहराने से हालात बेकाबू होते हों, गड़बड़ी की आशंका होती हो तो बेहतर है कि हम कश्मीर को अपने देश का हिस्सा मानने से इनकार कर दें। यह मन सरकारें तो बना सकती हैं किन्तु एक आम भारतीय से इस बारे में पूछिये। कश्मीर को लेकर हमेशा से दोहरी नीति लागू की जाती रही है किन्तु देश के तिरंगे के साथ तो ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। लाल चौक पर किसी ध्वज के फहराने का विरोध उस कीमत पर होना चाहिए था जबकि भाजपा अपने पार्टी के ध्वज को फहराने की अथवा भगवा ध्वज फहराने की बात करती।

बहराहाल, आज भी हुई गिरफ्तारियों के बाद ऐसा लग रहा है कि यदि भाजपा न मानने का दम दिखा रही है तो सरकारें भी कहीं से भी ढील देने के मूड में नहीं है। तिरंगा फहराने के बाद हालात बिगड़ें अथवा नहीं किन्तु इस तरह के कदम के बाद हालात बिगड़ते जरूर दिख रहे हैं। हां, एक बात और क्या हम सभी को अपने-अपने शहर में तिरंगा फहराने की आजादी है अथवा वहां भी वोट-बैंक के कारण किसी गड़बड़ी की आशंका है? जय हो भारत देश, फिर भी हम कहेंगे

हमारा भारत हमारा है।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारा है।
दोस्त हमने माना है समूचे विश्व को,
प्यार सारे जहां को बांटा है मगर,
जिसने बांटना चाहा देश को,
वो दुश्मन हमारा है।
हमारा भारत हमारा है।।


2 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kaha aapne , sab kuchh bhrsht raajneeti ka nateeja hai,

    "Jai-Hind" "Jai-Hind" "Jai-Hind"

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  2. आज भी नेताओं के मुख से निकल रहा है देश की अस्मिता जाय भाड़ मे। "तिरंगा" से ज्यादा जरूरी है देश की समस्यायों की ओर ध्यान देना। एकदम सत्य। समस्यायें दूर करने मे क्या राष्ट्रीय एकता जरूरी नही है। यदि "तिरंगे" की अहमियत ही नहीं है तो क्यों मनाते हैं गणतंत्र दिवस/स्वतंत्रता दिवस। जरूरत है यह भावना सभी के लोगों मे "कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक" स्वयमेव प्रस्फुटित हो। बहुत ही बढ़िया लेख। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं सहित।

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