29 नवंबर 2008

जीत हुई या हार??????

आतंक के 59 घंटे बीते, आतंकवादियों को मार गिराया. कहा जा रहा है कि ये हमारी जीत है. हमने आतंक का मुंह तोड़ जवाब दिया है. क्या वाकई ये हमारी जीत है? एक पल को रुकिए.............आप ये न सोचिये कि हमें इस बात की खुशी नहीं कि हमारे जांबाज़ सैनिकों ने आतंकियों को मार गिराया. हमारा मकसद इससे उलट दूसरी तस्वीर को दिखाना है. ज़रा गौर करिए पूरे वाकये पर फ़िर पता चलेगा कि ये हमारी जीत है या कि अभी तक की सबसे बड़ी हार????? शायद आपके मन में भी इसी तरह के प्रश्न-चिन्ह बन गए होंगे, पर सत्य यही है. हम किसी भी तरह जीते नहीं हारे हैं. हम जीते इस बात से हैं कि हमारे सैनिकों ने उन स्थानों को खाली करवा लिया है जो आतंकियों के कब्जे में थे। बस इसी खुशी में हम वास्तविकता को न भूल जाएँ,
ज़रा सोचिये इन तीन दिनों से पहले के बम धमाके या फ़िर कोई भी दूसरी आतंकी वारदात. पहले भी हमने आतंकियों की हरकतों पर अपने लोगों को खोया है. आतंकवादियों के बमों, गोलियों से लोगों ने अपने प्राण गँवाए हैं, आतंक की वारदातें लगातार होती रहीं हैं. आतंकी घटना के बड़े या छोटे होने का आकलन करें तो अपने देश और विदेश की बहुत सारी घटनाएं याद आ जायेंगीं। यदि अन्य आतंकी घटनाओं को हमने सहा है और मुकाबला कर जीता है तो यहाँ हार कैसे?
इसी बिन्दु पर आकर पिछली घटनाओं और इस घटना को देख लें तो सच भयावहता के साथ सामने खडा हो जायेगा. पहले जो भी आतंकी हमले हुए उनमे आतंकवादियों ने भीड़ को निशाना बनाया. गोली या बम के सहारे लोगों की जान ले ली और भाग गए. ट्रेन में, बस में, टेक्सी में, साइकिल में या किसी होटल आदि में विस्फोट किए और भाग गए। भले ही भागते में पकडे गए हों पर वारदात करने के बाद वे भागे. यहाँ क्या हुआ.......................... आतंकी तीन दिनों तक हमारी सेना के जवानों के साथ मोर्चा लेते रहे.
हमारा अति जागरूक मीडिया इस घटना की समाप्ति के तुंरत बाद नुक्सान का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के हवाई हमले की चर्चा करने लगा। हो सकता है कि वहां का नुकसान हमारे इस नुक्सान से बहुत अधिक रहा हो पर वहां भी क्या हुआ? आतंकवादियों ने हवाई जहाज लिया और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकरा दिया. सभी मारे गए, इमारत नष्ट हो गई, व्यापक नुक्सान हुआ पर क्या आतंकियों ने उनकी सुरक्षा से टकराने की हिम्मत की? यहाँ अब इस घटना को देखें, उँगलियों पर गिने जाने वाले आतंकवादियों ने 59 घंटों तक मोर्चा लिया। अधिसंख्यक रूप से गोला-बारूद होटल के अन्दर लेजाकर युद्ध सा किया, हमारी सागरिक शक्ति, खुफिया शक्ति का मखौल बनाया.
सेना के जवानों, कमांडो और अन्य सैनिकों के होते हुए भी कुछ आतंकी सारे देश की साँस को रोके रहे. एक पल को इस स्थिति की कल्पना कीजिए कि यदि ऐसा ही कुछ देश के कुछ और बड़े शहरों में एक साथ हुआ होता तो????????? या ये सारे देश में हंगामा करने का रिहर्सल हो तो???????? क्या अब आपकी आँखें खुलीं???? क्या ये वाकई हमारी जीत है???? सोचिये कि हमारी सैन्य शक्ति की परीक्षा लेने कुछ आंतकवादी आए और वे सफल रहे. उन्हों ने कई महीनों के प्लान से समझ लिया कि देश में कहीं भी घुस जाना और कहीं का भी नक्शा पता कर लेना, सुरक्षा व्यवस्था को चकमा दे देना मुश्किल नहीं है. जो सारे विश्व को मुश्किल लगता था (हमारी सेना की ताकत, उसके लड़ने की शक्ति) उसको भी इन आतंकियों के सहारे उनके सरगनाओं ने समझ लिया है। अब बातों से नहीं लातों से काम करने की जरूरत है. सबूतों को जुटा कर रखने की नहीं सबूतों को दिखा कर हिम्मत जुटाने की जरूरत है, अब सहयोग मँगाने की नहीं शक्ति आजमाने की जरूरत है, अब शान्ति की नहीं युद्ध की जरूरत है.
सोचिये फिरसे कि यदि कल को यही सब एक साथ देश के कई शहरों में हुआ तो उसका परिणाम क्या होगा???? दस आतंकियों ने छकाया 59 घंटे तो इनकी अधिक संख्या होने पर क्या होगा????
(ये कहना आसान है कि हम डटकर मुकाबला कर लेंगे, ये आदर्शवादी बातें हैं। पूछिए उनके घरों से जिन्हों ने अपने घर का चिराग खोया है. बातें करना आसान है पर...........)

6 टिप्‍पणियां:

  1. आप के इस आलेख में अनेक विरोधाभासी बातें हैं। आप पर युद्ध थोपा गया था। और युद्ध में यह जरूरी नहीं कि जीतने वाले को कोई हानि ही न हो। अब तक का अनुभव तो यह है कि जीतने वाले को अधिक हानि उठानी पड़ती है। इस लिए आप बनिए की तरह जीत को हानि से तोलेंगे तो आप को वह हार दिखाई देने लगेगी। हमारी जीत हुई है और आतंकवाद परास्त हुआ है। लेकिन आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ है। उस के लिए अतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई लड़ना होगा। उस के समाप्त हो जाने पर वैश्विक स्तर पर उस के पनपने के कारण समाप्त करने होंगे। सब से पहले हमें आतंकवाद के विरुद्ध अपनी जंग को और अधिक मजबूत और सतत करना होगा। साथ के साथ देश में आतंकवाद के पनपने के कारणों, विशेष रुप से हमारी राजनैतिक कमियों पर चोट करनी होगी और वह चोट जनता ही कर सकती है, आतंकवाद के विरुद्ध संगठित और मुखर हो कर।

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  2. आपने बहुत सही कहा ये वास्तव में बहुत ही कठिन प्रश्न है?जिस दिन हम क्रूर आतंक के साये से पुर्णत:मुक्त होंगे शायद असली जीत तब होगी|और आज के संर्दभ में कहे तो हमारे वीर जांबाजों ने जिस तरह हमें इस संकट से मुक्ति दिलाई है वो भी देश और हम सब पर आये संकट पर जीत है|

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  3. आप ने इस लेख में जो प्रश्न पूछे हैं सच में उन पर विचार किया जाना चाहिये.यह समय खुशियाँ मनाने का नहीं बल्कि
    यह सोचने का है कि जो इन ५९ घंटों में हम ने गंवाया है वो सिर्फ़ जान-माल नहीं है बल्कि एक विश्वास भी गंवाया है जो हमें अपनी खुफिया एजेंसियों पर था.अपनी सरकारों पर था.
    आदर्शवादी बातों से उठ कर सोचना होगा-क्यूँ कि पड़ोसी मुल्क के एक मंत्री ने कहा था हाल ही में--कि भारत सिर्फ़ हिंसा कि भाषा समझता है=''इस बात की सफाई जब ndtv न्यूज़ के एक वरिष्ट पत्रकार ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री से मांगी तो उन्होंने बात को गोल कर दिया--अब हम और आप इस को क्या कहें??enough is enough!

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  4. हार और जीत में आप स्वयं ही असमंजस में लगते हैं। इसे हार और जीत के रूप में भारत वर्सेज़ आतंकवाद के रूप में नहीं हमला वर्सेज़ सन्धान के रूप में देखें। सत्य की एक स्थान पर हुई जीत को पूरे असत्य पर जीत या पूरे असत्य की हार तो नहीं कहा जा सकता न!

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  5. हां ये सच है जिनके घर के चिराग गुल हुए है वे ही इसका दर्द जानते हैं,हम तो बस हार-जीत की समीक्षा कर सकते हैं,पता नही इसका हक़ भी है हमे की नही?

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  6. माननीय दिनेशराय जी,
    आपकी टिप्पणी देखी, हो सकता है की ये हमारी उस आतंकवाद पर जीत है जिसको मुंबई 59 घंटों से सह रहा था, क्या आप गर्व से कह सकते हैं कि हम जीते? हम इस मुद्दे को बहस का विषय नहीं बनाना चाहते क्योंकि अभी इससे भी जरूरी काम हैं. हमारी बात पर फ़िर विचार करिए कि कुल जमा 8 आतंकियों ने पूरे 59 घंटे तक सेना, कमांडो आदि को गोलाबारी करके, ग्रेनेड फेंक कर, आग लगा कर जवाब दिया, हमारी ताकतवर सेना से मोर्चा लिया. यदि ये देश में आतंक फैलाने की एक रिहर्सल हुई और कल को सैकड़ों की संख्या में आतंकियों ने एक साथ कई जगहों पर हमला किया तब??????????
    टिप्पणी करने का आभार...........वैसे अब भारत सरकार के अगले कदम (पाकिस्तान के विरुद्ध) पर बहस जरूर होनी चाहिए.

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