28 नवंबर 2008

उफ़! किया क्या जाए?

उफ़!!! क्या कहा जाए???? क्या किया जाए??? अभी पूरी तरह से आतंकवादियों से निपट नहीं सके और शुरू हो गया सभी का इस मामले में अपनी पीठ ठोंकना और दूसरे को गरियाना. राजनैतिक दलों से तो वैसे भी उम्मीद नहीं थी, मीडिया के रोल को लेकर भी थोड़ा सा क्षोभ रहा. पहले बात राजनैतिक दलों की, अभी तक जब ख़तरा मंडरा रहा था तब किसी नेता ने अपना मुंह नहीं खोला. अब पकिस्तान का पूरा-पूरा हाथ दिखने के बाद तो सभी को साँप सूंघ गया. सबसे ज्यादा तो कष्ट उन्हें हुआ होगा जो पिछले कई वर्षो से हिंद-पाक की दोस्ती की दुहाई देते-देते नहीं थक रहे हैं, हर साल अपने देश को भुला कर सीमा पर मोमबत्तियां जला रहे हैं.

हम नौजवानों को जिन्हों ने आजादी के बहुत साल बाद अपनी आँखें इस देश में खोलीं, उन्हों ने तो पाकिस्तान को सिर्फ़ नफरत की राजनीति करते देखा है. अब वे बूढे लोग जिनकी आंखों और आंतों में दम नहीं बचा है, अपने कांपते हाथों से पाकिस्तान की जय कर रहे हैं वे बताएँगे कि हम किस आधार पर उनके सुर में सुर मिलाएँ? सवाल इस समय ये चर्चा करने का नहीं कि कौन क्या कर रहा है, सवाल ये कि अब किया क्या जाए???? क्या इसी तरह मार खाकर, चुप बैठ कर, फिरसे पाकिस्तान के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाया जाए? क्या पाकिस्तान के साथ दोस्ती का पैगाम फ़िर आदान-प्रदान किया जाए? इस घटना की जांच में उससे सहयोग लिया जाए? यह सत्य हो सकता है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं पर यह भी सत्य है कि एक अन्तिम युद्ध शान्ति की स्थापना कर देगा.

देश के राजनेताओं की चर्चा करना उसी तरह ग़लत होगा जैसे किसी पढ़े-लिखे को कक्षा एक की पुस्तक पढ़वाना. आप सब समझदार हैं समझ गए होंगे. अब सभी चुनाव को देखते हुए इस मुद्दे पर विचार देने लगे हैं. रही बात मीडिया की तो उनकी तारीफ़ इस बात पर कि जान पर खेल कर उनके पत्रकारों ने प्रसारण किया. यहीं आकर हमारा मत मीडिया के साथ समता नहीं रखता। जिस तरह से आतंकी घटना हो रही थी, जिस तरह की तैयारी से उन्हों ने देश पर हमला किया, जिस तरह वे सिर्फ़ हमला करने नहीं वल्कि हमारी सेना, सुरक्षा से लड़ने का मन बना कर आए थे उसको देख कर क्या ये नहीं लगता कि वे सब आधुनिक संचार उपकरणों से लैस होंगे?

इसके बाद भी मीडिया ने अपना प्रसारण जारी रखा. ये बात अलग है कि मीडिया बराबर इस बात को दोहराता रहा कि ये सीधा प्रसारण नहीं है पर जो दिखाया जा रहा था वो सब घटनास्थल पर तो हो ही रहा था. कब कमांडो कार्यवाही हुई, कब कमांडो शहीद हुए, कब ग्रेनेड चला, कब कहाँ कितनी आग लगी, कब आतंकवादी ने बंधक को मारा.............आदि-आदि, ये सब भले ही सीधे प्रसारण में नहीं आ रहा था पर कुछ पलों के बाद तो आ ही रहा था. क्या आतंकियों को इसकी सूचना नहीं जा रही होगी? मोबाइल की बरामदगी ने तो बात को और भी स्पष्ट कर दिया है............................बहरहाल, मीडिया अपनी पीठ ठोंक रही है.............बस प्रसारण दिखा कर. क्या वे लोग याद हैं जो आतंकी गोली का शिकार होकर शहीद हुए..................आम नागरिक, विदेशी यात्री, पुलिसकर्मी?

यहाँ देख कर लगता है की आज मीडिया और नेता एक श्रेणी में खड़े हैं। एक अपने हाथ में कैमरा और माइक लिए है और एक बिना माइक और कैमरे के खडा है. एक सीधा प्रसारण दिखा रहा है, एक सीधे प्रसारित हो रहा है. एक अपने विज्ञापन के लिए प्रसारण कर रहा है एक अपने वोट के लिए. दोनों अपनी-अपनी पीठ ठोंक रहे हैं.........

फ़िर वही बात निकलती है, उफ़!!!!!! क्या किया जाए????????

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