27 जून 2025

विलय नहीं समस्या का समाधान हो

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पचास से कम नामांकन वाले प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों का नजदीकी विद्यालयों में विलय करने का निर्णय लिया है. ऐसे विद्यालयों की संख्या हजारों में है जहाँ पर नामांकन पचास से कम है. यदि नामांकन कम है तो उसे बढ़ाया जाये न कि विद्यालय का विलय कर दिया जाये, उसे बंद कर दिया जाये. वैसे भी सरकारों की प्राथमिकता बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना होता है. न केवल सरकारों द्वारा बल्कि विश्व बैंक द्वारा भी अनेक योजनाओं को क्रियान्वित किया गया जिनसे बच्चों को विद्यालय लाया जा सके. संविधान में 86वाँ संशोधन कर शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया. निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम अथवा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अन्तर्गत छह से चौदह वर्ष की आयु वर्ग के बालक-बालिकाओं को निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है. सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा से वंचित बस्तियों में विद्यालय खोले गए. इन सकारात्मक कार्यों, योजनाओं के बीच सरकार द्वारा शारदा (स्कूल हर दिन आयें) योजना क्रियान्वित है. इसमें छह से चौदह वर्ष की आयु वर्ग के ऐसे बालक-बालिकाओं का नामांकन होगा, जो किसी विद्यालय में नामांकित नहीं हैं अथवा नामांकन के बाद भी अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण नहीं कर सके. ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उनका नामांकन नजदीकी विद्यालयों में आयु-संगत कक्षा में कराया जायेगा और शिक्षा से लेकर प्रत्येक सामग्री निःशुल्क उपलब्ध करायी जाएगी.  

 



बच्चों तक शिक्षा की सुलभता सम्बन्धी योजनाओं के बाद भी यदि सरकार को विद्यालयों का विलय करना पड़े तो स्थिति न केवल गम्भीर है बल्कि चिन्तनीय भी है. सरकार को नामांकन कम होने के कारणों-कारकों को खोजा जाना चाहिए. उन बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए जो प्राथमिक विद्यालयों, उच्च प्राथमिक विद्यालयों के नामांकन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं. विद्यालयों का विलय सिर्फ एक विद्यालय बंद होना नहीं होगा बल्कि यह अनेक दुष्परिणामों को साथ लेकर आएगा. सबसे बड़ा दुष्प्रभाव बच्चों की शिक्षा पर ही दिख रहा है. उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग के हाउसहोल्ड सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में 4.81 लाख, 2021-22 में 4 लाख से अधिक और 2022-23 में 3.30 लाख बच्चों ने बीच में स्कूल छोड़ दिया. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में स्कूल छोड़ने की दर अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक है. इसमें भी लड़कियों का प्रतिशत लड़कों की अपेक्षा अधिक है.

 

विद्यार्थियों का बड़ी संख्या में विद्यालय छोड़ना, नामांकन न करवाना चिन्ता का विषय है. सामाजिक-आर्थिक कारक, गरीबी, लैंगिक विभेद, शिक्षकों की कमी, बुनियादी ढाँचे की समस्या, शिक्षा में अरुचि, बाल श्रम का प्रचलन, अन्य सामजिक समस्याएँ आदि ड्रॉपआउट का कारण बनती हैं. ऐसे में विचार किया जाये कि जब बच्चे अपने ही गाँव में अथवा न्यूनतम दूरी पर बने विद्यालय नहीं जा रहे हैं, तो उनसे कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे कुछ किमी दूर स्थित विद्यालय जायेंगे? विद्यालयों का दूर होना बालिकाओं के लिए और बड़ी समस्या होगी. निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, घरेलू ज़िम्मेदारियाँ, सुरक्षा चिंताओं आदि के कारण उनकी शिक्षा पर पहले से ही संकट छाया रहता है. विद्यालय विलय पश्चात् उनके स्कूल छोड़ने की आशंका और ज़्यादा है. इसके साथ-साथ शिक्षकों के पदों की कटौती, नई शिक्षक भर्ती पर संकट, रसोइयों, शिक्षामित्रों का असुरक्षित भविष्य भी इसी से सम्बद्ध है.

  

यदि कम नामांकन पर ध्यान दें तो सरकारी नियम और कार्य-प्रणाली भी इसके लिए जिम्मेदार है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम में प्रावधान के बावजूद सरकारी प्राथमिक विद्यालय के एक किमी परिक्षेत्र में खुलेआम निजी विद्यालयों को मान्यता दी जा रही है. निजी विद्यालयों का लगातार बड़ी संख्या में खुलते जाना और अधिनियम के अन्तर्गत गरीब विद्यार्थियों को प्रत्येक निजी विद्यालय द्वारा अपने यहाँ निशुल्क प्रवेश देने की बाध्यता भी कम नामांकन का एक कारक है. नियमानुसार निजी विद्यालयों द्वारा गरीब विद्यार्थियों को प्रवेश देने पर सरकार द्वारा निजी विद्यालयों को प्रतिपूर्ति शुल्क दिया जाता है, अभिभावकों को भी एक निश्चित राशि प्रदान की जाती है. इस आर्थिक पक्ष के कारण अभिभावकों, निजी विद्यालयों ने विद्यार्थियों को प्राथमिक विद्यालयों से दूर कर दिया. इसी तरह सरकारी प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश आयु छह वर्ष और निजी विद्यालय में तीन-चार वर्ष होने के कारण भी नामांकन पर असर पड़ा है. इसके चलते भी बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय के स्थान पर निजी विद्यालय में प्रवेश दिला देते हैं. इनके अलावा शिक्षकों की कमी, शिक्षकों का दूसरे सरकारी कार्यों में व्यस्त रहना, विद्यालयों में प्राथमिक सुविधाओं की कमी होना, स्मार्ट क्लासेज की शून्यता आदि भी कम नामांकन के लिए उत्तरदायी बिन्दु हैं.

 

विद्यालयों का विलय स्थायी अथवा दीर्घकालिक समाधान नहीं है. इसकी गारंटी कौन लेगा कि भविष्य में विलय किये गए विद्यालय में कम नामांकन नहीं होगा? ऐसे में विचारणीय बिन्दु यह होना चाहिए कि उन कारणों का पता लगाकर उनका समाधान किया जाये जिनके कारण विद्यालयों में कम नामांकन हो रहा है. सरकार को चाहिए कि विद्यालयों के मूलभूत ढाँचे को सुव्यवस्थित करे. शिक्षकों की कमी को पूरा करने के साथ अन्य कार्यों के लिए अलग से कर्मचारियों की नियुक्ति करे. कक्षाओं को विकसित बनाया जाये तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु नवीनतम तकनीकों से विद्यार्थियों को परिचित कराया जाये. सरकारी नीतियों, योजनाओं को सहज तरीके से अनुपालन योग्य बनाया जाये ताकि अभिभावक परेशान न हों. सरकार प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में आ रही समस्या का समाधान करे, लगातार गहराते जा रहे रोग का इलाज करे न कि सम्बंधित अंग को ही काट कर अलग कर दे. शिक्षक संगठनों, अभिभावकों द्वारा इस निर्णय का विरोध किये जाने के बाद सरकार से अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार करके शिक्षा को सुलभ, सहज बनाने का प्रयास करेगी. सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि उसका लक्ष्य बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाना है न कि उनको शिक्षा से वंचित करना, इसके लिए उसे अतिरिक्त आर्थिक बोझ ही क्यों न उठाना पड़े.

 


24 जून 2025

इजराइल-ईरान युद्ध का असमंजस

ऐसा समझा जा सकता है कि पर्ल हार्बर की घटना से हम सभी परिचित ही होंगे? ऐसे समय में जबकि विश्वयुद्ध जैसा खतरा मंडरा रहा है तब पर्ल हार्बर घटना याद आना स्वाभाविक है. इसी घटना ने अलग-थलग, खामोश पड़े अमेरिका को न केवल द्वितीय विश्वयुद्ध में घसीटा बल्कि जापान पर परमाणु हमले का आधार भी तैयार किया. दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका तब तक शामिल नहीं हुआ था लेकिन जापान को भय था कि प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका अपने इस नौसैनिक बेड़े के द्वारा जापान के क्षेत्रीय विस्तार को बाधित करेगा. इसी आशंका में जापानी वायुसेना ने अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर हमला करके अमेरिका को सैनिकों, नौसैनिक जहाजों, विमानों का भयंकर नुकसान पहुँचाया.

 

पर्ल हार्बर घटना का स्मरण तब हुआ जबकि इज़राइल-ईरान युद्ध से विश्वयुद्ध का खतरा नजर आया. ईरान के परमाणु कार्यक्रम को समाप्त करने की अपनी जिद के चलते इज़राइल ने ईरान पर हवाई हमले कर दिए. ऐसे में ईरान ने भी पूरी तीव्रता से इजराइल पर पलटवार किया. युद्ध की इस स्थिति में अमेरिका के असमंजस भरे रुख को देखकर शंका हो रही थी कि कहीं इजराइल ने ईरान पर हमला करके गलती तो न कर दी? शंका से भरे वातावरण में अमेरिका ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर के द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फोर्दो, नतांज और इस्फहान पर हमला कर दिया. इस हमले में 125 एयरक्राफ्ट, सात बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स के द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर 13,608 किलो वजनी बस्टर बम गिराए गए. युद्ध में शामिल होने के बाद भी अमेरिका ने कहा कि वह ईरान से युद्ध नहीं चाहता है मगर यदि इस हमले का पलटवार ईरान द्वारा किया गया तो उसके परिणाम बहुत बुरे होंगे.

 



अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु संयत्रों पर हमला करने के बाद इस तरह की धमकी भरे अंदाज में बयान देने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि ईरान इसका जवाब नहीं देगा किन्तु जिस तरह से कतर, इराक, कुवैत पर उसने मिसाइलें दागी हैं, उससे ईरान ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह अमेरिका की धमकी या उसकी दबंगई से डरने वाला नहीं है. ईरान के इस पलटवार को पर्ल हार्बर की घटना से इसी कारण संदर्भित किया जाने लगा क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने इस कार्यकाल में विध्वंसक मोड में दिख रहे हैं. आर्थिकी क्षेत्र हो, महाशक्तियों के साथ सम्बन्ध बनाये रखने का दौर हो, दो देशों के बीच युद्धविराम जैसी स्थिति लागू करवाने सम्बन्धी वार्ताएँ हों, अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ वार्तालाप का कूटनीतिक व्यवहार आदि ही क्यों न हो सभी जगह ट्रम्प आक्रामक रुख अपनाते ही दिखाई दिए. ऐसे में ईरान के पलटवार को विश्वयुद्ध की आहट समझा जा रहा था. यद्यपि ईरान द्वारा छोड़ी गई मिसाइलों से अमेरिकी एयरबेस को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ, किसी भी तरह के जानमाल को भी क्षति नहीं पहुँची है तथापि ये पलटवार अमेरिका के विरुद्ध था इसलिए वैश्विक चिंता होना स्वाभाविक थी.

 

शंकाओं, असमंजस भरे बादल उस समय छँटते नजर आये जबकि ईरान द्वारा अमेरिकी बेस पर मिसाइल दागने के बाद बदला पूरा हो जाने की बात कहे जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान के मिसाइल हमले को बहुत कमजोर बताते हुए मजाक उड़ाया. ट्रम्प ने ईरान को धन्यवाद देते हुए कहा कि तेहरान ने अपने परमाणु स्थलों पर अमेरिकी बी-2 स्टील्थ बॉम्बर हमले का जवाब देने का नाटक किया है. अपनी बात को अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि किसी भी अमेरिकी को ईरानी हमले में नुकसान नहीं पहुँचा है. मैं ईरान को हमें पहले से सूचना देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिससे किसी की जान नहीं गई और कोई भी घायल नहीं हुआ. शायद ईरान अब क्षेत्र में शांति और सद्भाव की ओर बढ़ सकता है. मैं उत्साहपूर्वक इजरायल को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करूँगा. इस तरह की सोशल मीडिया पोस्ट के साथ ही ट्रम्प द्वारा इजराइल और ईरान के मध्य युद्धविराम किये जाने सम्बन्धी पोस्ट भी लगाई गई. इस खबर को संतोषजनक और विश्वयुद्ध की आशंका के अंत के रूप में देखा जा रहा है.

 

इजराइल का ईरान पर हमला, ईरान द्वारा इजराइल को मुँहतोड़ जवाब देना, अमेरिका का असमंजस के बाद भी ईरान के तीन परमाणु ठिकानों को नष्ट कर देना, ईरान द्वारा अमेरिकी हमले का बदला लेने के लिए अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल हमला करने के भयग्रस्त वातावरण के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा इजराइल-ईरान के बीच युद्धविराम की घोषणा करना अल्पकालिक राहत ही समझ आता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इजराइल-ईरान के मध्य युद्ध की स्थिति जिस कारण से बनी थी, अभी उसका समाधान नहीं हुआ है. इस युद्ध के केन्द्र में ईरान का परमाणु कार्यक्रम था, जो फोर्दो परमाणु संयंत्र के पूरी तरह से बर्बाद हो जाने के बाद भी अस्तित्व में है. ऐसा अंदेशा लगाया जा रहा है कि ईरान ने अमेरिकी हमले से पहले ही संवर्द्धित यूरेनियम को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दिया है. यदि यह अंदेशा सही है तो ईरान का परमाणु कार्यक्रम उसे परमाणु बम बनाने तक ले जा सकता है. निश्चित है कि ऐसी कोई भी आशंका न तो अमेरिका के हित में है न ही इजराइल के. बारह दिनों तक चले युद्ध के बाद भी, अमेरिका के हमले के बाद भी यदि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अस्तित्व में बना रहा तो यह अमेरिका और इजराइल की प्रभुता, उसकी सैन्य क्षमता के लिए भी चुनौती होगी. फ़िलहाल तो देखना यह है कि जिस युद्धविराम की घोषणा ट्रम्प द्वारा की गई है वह कितने समय तक लागू रह पाता है.


16 जून 2025

भावनाओं से खिलवाड़

अहमदाबाद हवाई जहाज दुर्घटना के अंतिम कुछ सेकेण्ड के फोटो, वीडियो....

इस तरह की बहुत सी पोस्ट दिखाई देने लगी हैं. सोशल मीडिया में हवाई जहाज दुर्घटना के बाद से एकदम से फोटो और वीडियो की बाद सी आ गई. अपनी-अपनी पोस्ट पर लाइक, शेयर, कमेंट बटोरने के चक्कर में भावनात्मकता, संवेदना को दरकिनार करते हुए फोटो और वीडियो अपलोड करने में लगे हुए हैं. लाइक, शेयर, कमेंट करने वाले भी बिना सत्य जाने, बिना तथ्य जाने आँखें बंद किये उसी दिशा में बहे जा रहे हैं. अंतिम समय के फोटो में भी उन्हीं तीन मासूम बच्चों के फोटो सामने आ रहे हैं जो अपने माता-पिता के साथ लन्दन शिफ्ट होने के लिए जा रहे थे. निश्चित रूप से फोटो-वीडियो के द्वारा लोगों की भावनाओं से खेलने वाले जानते हैं कि किस फोटो से उनको ज्यादा से ज्यादा शेयर, लाइक मिलने वाले हैं.

 



यहाँ एक बात समझ नहीं आ रही कि ये सबकुछ ख़त्म होने के अंतिम कुछ सेकेण्ड पहले की फोटो, वीडियो किसने लिए? किसने सार्वजनिक किये?

 

क्या उन बच्चों के माता-पिता अपने पूरे परिवार की मौत को लेकर, हवाई जहाज की दुर्घटना को लेकर एक तरह से आश्वस्त हो चुके थे, तभी उन्होंने चिल्लाते-चीखते बच्चों को सँभालने की बजाय उनकी फोटो खींचकर अपने किसी परिचित को भेजे, अपने किसी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अपलोड किये?

 

क्या जहाज के अन्दर कोई सीसी टीवी कैमरा टाइप कुछ रहता है जो किसी नेटवर्क के माध्यम से लगातार फोटो, वीडियो बनाता हुआ कहीं धरती पर बने सेंटर को भेजता रहता है?

 

क्या इसी जहाज में कोई ऐसा व्यक्ति था जो बिना डर, भय, बचने की कोशिश के फोटो, वीडियो खींच कर अपने किसी परिचित को लगातार भेजता रहा?

 

क्या दुर्घटना स्थल से किसी व्यक्ति का अथवा कई व्यक्तियों के मोबाइल इस हालत में मिले हैं, जिनसे ये फोटो, वीडियो निकाल कर सार्वजनिक किये जा रहे हैं?

 

सोशल मीडिया में तैर रहे तमाम एविएशन एक्सपर्ट इस बारे में भी अपनी विशेषज्ञतापूर्ण राय दें.


13 जून 2025

ज़िन्दगी भर के लिए असहनीय कष्ट

मृत्यु अटल सत्य है, जो सम्बंधित व्यक्ति के परिजनों को दुःख-आँसू ही देती है लेकिन अहमदाबाद में 12 जून 2025 को हुई हवाई जहाज दुर्घटना दुखद तो है ही, झकझोरने वाली भी है. इस दुर्घटना से सम्बंधित चित्र, वीडियो, दिवंगत हो गए लोगों के परिजनों के आँसू देखकर मन विचलित है. इनको देखकर जीवन-मृत्यु को संचालित करने वाली शक्ति से इतनी ही प्रार्थना है कि इस दुर्घटना जैसी मृत्यु किसी के जीवन में न लिखे. कारण यह नहीं कि यह दुर्घटना भयावह थी बल्कि इसलिए क्योंकि इस दुर्घटना में हमेशा को चले जाने वाला व्यक्ति वास्तविक में हमेशा को ही चला गया.

 

किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर वह व्यक्ति सदा-सदा को चला जाता है, उसे फिर कभी वापस नहीं आना होता है. इस दुर्घटना में भी मृतकों को कभी वापस नहीं आना है मगर उनके परिजनों के हिस्से में भी न भुलाया जाने वाला दर्द सदा-सदा को आ गया है. उस पल की कल्पना करके ही आँखें नम हो जा रहीं जबकि हँसकर परिवार वालों ने अपनों को विदा किया होगा. एक पल को भी किसी को आभास भी नहीं हुआ होगा कि वे उनको अंतिम विदाई दे रहे हैं. हँसते-मुस्कुराते विदा करते लोगों से फिर मिल पाना सम्भव न होगा, उनको कुछ पलों बाद पहचान पाना भी सम्भव न होगा.

 



सामान्य मृत्यु की स्थिति में परिजन साथ होते हैं. आँखों में दुःख होने के साथ-साथ एक संतोष का भाव होता है. अंतिम संस्कार को पावन कृत्य के रूप में स्वीकार्य मानने के पीछे संभवतः यही कारण रहा होगा कि परिजन अपने जाने वाले सम्बंधित व्यक्ति को संतोषी भाव से मुक्त करें, उसे अनंत यात्रा के लिए प्रस्थान करने दें. इस हवाई जहाज दुर्घटना में किसी को भी एक पल के लिए झूठे भी ख्याल नहीं आया होगा कि ये उसकी अंतिम यात्रा है. किसी के परिवार वालों ने भी नहीं सोचा होगा कि वे अपने प्रिय को अंतिम यात्रा के लिए हँसते हुए विदा कर रहे हैं. आँखों में कितने सपने होंगे. दिल में कितनी खुशियाँ होंगी. भविष्य के लिए बहुत सारी आशाएँ सजा रखी होंगी. सबकुछ एक झटके में स्वाहा हो गया.

 

परिवार वाले दूर जाते परिजन का हाथ थाम कर उससे कुछ कह न सके. हमेशा के लिए सबसे दूर जाता व्यक्ति आँखों में संतोष लेकर नहीं जा सका. पता नहीं उस चले गए व्यक्ति की अपने ही किसी परिजन से लम्बे समय से मुलाकात न हुई होगी. न जाने कितने परिजनों, मित्रों, सहयोगियों से अगली यात्रा में आकर मिलने का वादा किया होगा. न जाने कितने परिजनों ने अगली बार अपने घर आने का न्यौता दिया होगा. न जाने क्या-क्या, बहुत कुछ आपस में तय किया गया होगा, निर्धारित किया गया होगा मगर नियति को कुछ और ही निर्धारित करना था. उसने सब एक झटके में निर्धारित करके सबकी आँखों के सपने छीन लिए, परिवार की खुशियाँ मिटा दीं, भविष्य की आशाओं पर पानी फेर दिया.

 

जाने वाला तो चला ही गया, शेष रह गया परिजनों के हिस्से में आया दुःख, आँसू, खाली हाथ, अफ़सोस और ज़िन्दगी भर के लिए असहनीय कष्ट.




09 जून 2025

मानसिकता के संक्रमणकाल में समाज

हत्या तो हत्या है और जिसने भी की है उसे सजा मिलनी ही चाहिए. यह केवल किसी क्रिया की प्रतिक्रिया देना मात्र नहीं होता बल्कि एक हँसते-खेलते इन्सान को हमेशा के लिए शांत कर देना होता है. एक परिवार को ज़िन्दगी भर के लिए न भरने वाला घाव देना होता है. समाज के बीच खुद हत्यारे के परिवार को भी शर्मिंदगी से जीवन गुजारने की सजा देना होता है. अभी हाल के चर्चित राजा-सोनम रघुवंशी मामले में इंदौर के इस नवदम्पत्ति जोड़े के अचानक से गायब हो जाने की खबर के बाद पति राजा का शव मिलना और पत्नी सोनम का गायब होना शासन-प्रशासन पर, मेघालय के पर्यटन पर, पर्यटकों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा रहा था. राजा की लाश मिलने के सत्रह दिन बाद अचानक से सोनम पुलिस को मिली. उसकी गिरफ्तारी हुई अथवा उसने आत्मसमर्पण किया, ये बाद की बात है. उसी के ऊपर अपने पति की हत्या करवाने का शक जताया जा रहा है,  हत्या उसी ने की या करवाई इस बारे में अंतिम सत्य तो बाद में पता चलेगा मगर जिस तरह से लोगों की प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं, उससे ऐसा लग रहा है जैसे समाज, परिवार, विवाह संस्था रसातल में पहुँचने ही वाले हैं. मीडिया, सोशल मीडिया में इस तरह से बयानबाजी हो रही है मानो पति-पत्नी संबंधों में हत्या जैसा ये पहला और आश्चर्यजनक मामला हो.

 



इस एक घटना के साथ कुछ महीने पहले हुए नीले ड्रम कांड को, पॉलीथीन में पति के टुकड़े भरने वाले कांड को जोड़ा जा रहा है. पुरुष समाज को, पतियों को एकदम से डर के साये में देखा जाने लगा है. ऐसा लगने लगा है जैसे कि हर पत्नी हत्यारिन हो और हर पति तलवार-चाकू की नोंक पर. सोचिएगा एक पल को कि इस घटना से सारा समाज सदमे में क्यों है? क्या इसलिए कि पत्नियाँ अब पतियों की हत्या करने-करवाने लगीं? क्या इसलिए कि महिलाओं ने इस हत्याकारी क्षेत्र में पुरुषों/पतियों के एकाधिकार पर अतिक्रमण करना शुरू कर दिया? क्या इसलिए कि पत्नी के रूप में एक महिला का इस तरह का स्वरूप समाज ने इक्कीसवीं सदी में भी नहीं सोचा था? कहीं इसलिए तो सदमे जैसी स्थिति नहीं कि एक सेक्स सिम्बल के रूप में, एक उत्पाद के रूप में, विज्ञापन के लिए नग्न-अर्धनग्न अवस्था में सुलभ रूप में समझ आने वाली आधुनिक महिला अब साजिश रचती, हत्या करती-करवाती नजर आने लगी है? इस छवि में भी आश्चर्य कैसा, सदमा कैसा? टीवी के माध्यम से ऐसी स्त्रियाँ पहले ही आपके घर में, आपके बेडरूम में, आपके बच्चों के बीच स्थापित हो चुकी हैं. इन तथाकथित आधुनिक जीवन-शैली जीने वाली महिलाओं को करोड़ों-अरबों रुपयों का व्यापार करने के साथ-साथ साजिश रचते भी दिखाया जाता है. परिवार में विखंडन करवाती इस धारावाहिक स्त्री को बाहर हत्या करते, हत्या की साजिश रचते भी दिखाया जा रहा है. आखिर इस क्रिया की प्रतिक्रिया तो होनी ही है.

 

यदि समाज इस कारण सदमे में है कि एक महिला सामान्य भाव से, बिना किसी घबराहट-भय के एक हत्याकांड में शामिल है तो गौर करिएगा, ससुराल में एक बहू-पत्नी की हत्या में पति रूपी पुरुष के साथ सास, जेठानी, ननद जैसी स्त्रियाँ भी शामिल रही हैं. एक महिला को जलाते समय, उसका गला घोंटते समय जब एक महिला के रूप में उनके हाथ नहीं काँपे तो फिर सोनम के हत्यारी होने की आशंका पर इतनी हलचल क्यों? वैसे यहाँ याद रखने वाली एक बात ये भी है कि इसी देश में बरसों तक जन्मी-अजन्मी बेटियों को मौत की नींद में सुलाने वाले हाथों में ज्यादातर हाथ महिलाओं के ही रहे हैं. हाँ, एक सत्य ये अवश्य है कि पिछले कुछ सालों में ख़ुद महिलाओं ने ही महिलाओं के पक्ष में बने क़ानूनों का जिस तरह दुरुपयोग किया है, उससे आज जागरूक, कर्तव्यनिष्ठ, पारिवारिक-सामाजिक दायित्व-बोध को समझने वाली महिलाओं ने भी ऐसी महिलाओं का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है.

 

समाज की बहुतायत महिलाओं का ऐसी हत्यारी महिलाओं के विरोध में खड़े होने का कारण समाज में व्याप्त सकारात्मकता का होना है. देखा जाये तो समाज कई-कई मानसिकता वालों से, अनेक प्रकार की मनोदशा वालों से मिलकर संचालित होता है. समाज में दोनों तरह के स्त्री और पुरुष हैं. हत्यारी मानसिकता स्त्री और पुरुष दोनों में है, संस्कारी मानसिकता भी दोनों में है. ऐसा नहीं है कि समाज के सभी स्त्री और पुरुष समाज का भला करते घूम रहे हों, उनमें कोई बुराई न हो और ऐसा भी नहीं है कि समाज में स्त्री-पुरुष सिर्फ हत्या, साजिश ही करने में लगे हों. स्व-मानसिक स्थिति के चलते इन्सान अपने क़दमों को उठाता है और घटना को अंजाम देता है. ये और बात है कि इंटरनेट की, रील की, आधुनिकता की चकाचौंध में रची-बसी दुनिया ने संस्कारों को, संस्कृति को, जीवन-मूल्यों को, परिवार को, समाज को, यहाँ के व्यवस्थित ताने-बाने को तिलांजलि दे दी है. संबंधों का, रिश्तों का कोई मोल अब जैसे दिखता ही नहीं है. आधुनिकता के चक्कर में सिर्फ और सिर्फ विखंडन, ध्वंस, परित्याग आदि ही देखने को मिल रहा है. ऐसी मानसिकता के बीच भी यदि सामाजिक संरचना की, पारिवारिक ढाँचे की, विवाह संस्था की परवाह करने वाले लोग हैं, महिलाएँ हैं, पुरुष हैं तो निश्चित रूप से परिदृश्य अभी पूरी तरह से काला नहीं हुआ है, पूरी तरह से अंधकारमय नहीं हुआ है. रौशनी की एक सम्भावना अभी भी है. अब इस सम्भावना में रील की इस आभासी दुनिया में झूमते मम्मी-पापा-बच्चों को तय करना होगा कि वे किस तरह की मानसिकता के इंसान बनना चाहते हैं. किस तरह की मानसिकता का समाज बनाना चाहते हैं.