17 मार्च 2024

पिताजी के जैसा बनने की कोशिश

उन्नीस साल का सफ़र, जिसमें सब लोग तो साथ थे बस एक आप ही न थे. आपके जाने के बाद बहुत कोशिश की जिम्मेवार बनने की, परिवार को साथ लेकर चलने की. आपके जाने वाली तारीख से लेकर आज तक की तारीख की अपनी यात्रा पर नजर डालते हैं तो लगता है कि हर स्थिति में असफल ही हुए हैं. आपके जैसा स्वभाव नहीं ही पा सके, यदि उसका शतांश भी पाया होता तो मिंटू को नहीं खोते.

 

कोशिश तो हर पल करते हैं आपके जैसे बनने की मगर आज तक नहीं बन सके. बहुत अच्छे से याद है आपके जाने के एक महीने बाद घर के लिए बाजार से लौटते समय पहली बार ककड़ी खरीद कर लाये थे. उस समय और घर आने के दौरान बहुत बार आँखें नम हुईं. समय को कुछ और ही मंजूर था, उसी दिन हम शाम को ट्रेन एक्सीडेंट का शिकार हो गए. साल भर तक वे सभी पारिवारिक जिम्मेवारियाँ, जो हमें उठानी थीं उनको पिंटू-मिंटू ने उठाया.

 

पता नहीं समय ख़राब रहा या फिर कुछ और ही. धीरे-धीरे जब लगा कि सबकुछ सही होने जा रहा है तो मिंटू हम सबको छोड़ आपके पास चल दिया. ये भी एक तरह से हमारी ही गैर-जिम्मेवारी है, इसे हम स्वीकारते हैं. सबसे बड़े भाई होने का दम भरते रहे मगर एक छोटे भाई की समस्या को,उसकी मनोदशा को न समझ सके.

 

पता नहीं समय क्या-क्या दिखाएगा? कोशिश यही है कि जो रास्ता आपने दिखाया है, जो शिक्षा आपने दी है उसका अनुपालन कर सकें. हार-जीत के संघर्च के बीच से खुद को निकाल कर आपकी नज़रों में खुद को साबित कर सकें. कोशिश यही है कि पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाने में आपके जैसा बन सकें. 






 

12 मार्च 2024

अपने ही नागरिकों को नागरिकता देने वाला कानून

चार वर्ष से अधिक की प्रतीक्षा के पश्चात् अंततः नागरिक संशोधन अधिनियम को भारत के राजपत्र में अधिसूचित कर दिया गया. दिसम्बर 2019 में यह अधिनियम संसद के दोनों सदनों में पारित हुआ था. अब इसे अधिसूचित किये जाने के बाद इस अधिनियम के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त हो गया है. इस कानून के लागू हो जाने से भारत के तीन पड़ोसी देशों-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी. संसद के दोनों सदनों से पारित इस अधिनियम के द्वारा अफगानिस्तान , बांग्लादेश और पाकिस्तान से प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता का त्वरित मार्ग प्रदान करके के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया था. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता सम्बन्धी नियमों में परिवर्तन किये गए.

 



देश की स्वतंत्रता के बाद जब 26 जनवरी 1950 को यहाँ का संविधान लागू हुआ तो भारत में जन्म लेने वाले नागरिकों को यहाँ की नागरिकता स्वतः ही मिल गई थी. इसके पश्चात् 1955 में नागरिकता कानून बनाकर उन सभी नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई जो पूर्व-रियासतों के नागरिक रहे थे. इस कानून में समय-समय पर परिवर्तन भी किये जाते रहे. ऐसा करने के पीछे कारण गोवा, दमन-दीव, पुडुचेरी की भौगौलिक स्थितियों में आये परिवर्तन रहे थे. दरअसल पाकिस्तान और बांग्लादेश से भूमि विवाद सुलझाने के कारण से इन क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को भारत की नागरिकता देने के लिए ये संशोधन किये गए थे. भूमि विवाद के साथ-साथ इन पड़ोसी देशों में धार्मिक विवाद भी लगातार देखने को मिल रहे थे. इससे शायद ही कोई इंकार करे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में वहाँ के अल्पसंख्यक नागरिकों-हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी आदि को लगातार अमानवीय व्यवहार, उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा, संरक्षण के लिए नेहरू-लियाकत समझौता भी इसी कारण से धरातल पर लाया गया था. कालांतर में उसका अनुपालन असल हो गया.

 

ये एक विचारणीय स्थिति है कि देश के विभाजन के पूर्व इन तीनों पड़ोसी देशों के ये अल्पसंख्यक नागरिक इसी भारत देश के नागरिक थे, यही इनकी भी मातृभूमि थी. ऐसी स्थिति जबकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए किये गए समझौते का अनुपालन करना संभव नहीं हो रहा था तो भारत की संवैधानिक जिम्मेवारी बनती थी कि वह इन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करे. लगातार मिलते उत्पीड़न, शोषण के कारण इन देशों के अल्पसंख्यक नागरिक लगातार अपनी मातृभूमि-भारत की तरफ एक आशा की दृष्टि के साथ दौड़ पड़ते हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ऐसे हजारों नागरिक अवैध प्रवासी के रूप में भारत में रह रहे हैं. मानवीयता के आधार पर भले ही उनकी सहायता की जा सके मगर देश की कोई भी सरकार, राज्यों की सरकारें चाह कर भी संवैधानिक रूप से उनकी सहायता नहीं कर पा रही थीं. ये तीनों देश भी अपने देश में अपने अल्पसंख्यक नागरिकों की सहायता करने में असमर्थ ही नजर आ रहे थे. ऐसे में भारत सरकार ने अपना दायित्व समझते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम को दोनों सदनों में पारित करवाया और उसकी विस्तीर्ण नियमावली को अधिसूचित कर दिया. यह अधिनियम इन तीनों देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता लेने की सुविधा प्रदान करता है किन्तु वह इन्हीं तीनों पडोसी देशों के मुस्लिम नागरिकों को भारत की नागरिकता लेने की सुविधा प्रदान नहीं करता है.

 

देखा जाये तो भारत सरकार की तरफ से यह एक महत्त्वपूर्ण कदम का उठाया जाना है. इस अधिनियम से देश के किसी भी अल्पसंख्यक और मुस्लिम की नागरिकता पर किसी तरह का संकट नहीं खड़ा होता है, जैसा कि पूर्व में अनेक विपक्षी राजनैतिक दलों द्वारा कहा जाता रहा है. अनेक राजनैतिक दलों के साथ-साथ अनेक मुस्लिम संगठनों ने इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् इसका जबरदस्त विरोध किया था. शाहीन बाग़ में एक लम्बी अवधि तक चला विरोध प्रदर्शन इसका उदाहरण है. यहाँ स्पष्ट रूप से समझने वाली बात है कि यह अधिनियम देश के किसी भी व्यक्ति, वह चाहे किसी भी धर्म का हो, की नागरिकता को खतरे में नहीं डालता है न ही उसका हनन करता है. यह अधिनियम उन वंचितों को, धार्मिक अल्पसंख्यकों को कानूनी अधिकार देता है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में प्रताड़ित होकर भारत में शरणार्थी की स्थिति में हैं. नागरिकता अधिनियम में नागरिकता के प्रावधान के सन्दर्भ में आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी वर्ष में 11 महीने भारत में रहना चाहिए. कानून में हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई जो तीन देशों-अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से सम्बंधित हैं, उनके लिए 11 वर्ष की जगह 6 वर्ष तक का समय निर्धारित किया गया है. कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है. 


भारत सरकार द्वारा कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अपने ही उन नागरिकों को संरक्षण, सुरक्षा प्रदान किये जाने का प्रावधान किया है जो आज़ादी के समय तत्कालीन स्थितियों के चलते अनचाहे ही किसी दूसरे देश के नागरिक बन गए थे और उन देशों में वे धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक भी थे, प्रताड़ित भी थे. इस तरह के कदम के लिए देशव्यापी समर्थन, सहयोग मिलना चाहिए था मगर कतिपय राजनैतिक स्वार्थ के चलते इस अधिनियम का अतार्किक विरोध किया गया. अब जबकि इस अधिनियम को अधिसूचित कर दिया गया है, राज्यों का अनापेक्षित हस्तक्षेप न रहे इसके लिए केन्द्रीय पोर्टल की व्यवस्था की गई है, तब सभी को अपने ही पूर्व-नागरिकों का स्वागत, सम्मान करना चाहिए जो अभी तक अपने ही देश में शरणार्थी की तरह रहने को विवश थे. 





 

04 मार्च 2024

आवश्यक है निर्वाचन आयोग की सख्ती

देश इस समय चुनावी मोड में आ चुका है. वर्तमान लोकसभा के कार्यकाल को देखते हुए जल्द ही निर्वाचन आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता लागू कर दी जाएगी. आचार संहिता में अनेकानेक तरह के कार्यों पर प्रतिबन्ध लग जाता है. निर्वाचन आयोग अपनी तरफ से पूरी तरफ मुस्तैद रहता है कि आचार संहिता के दौरान और चुनावों के समय भी किसी तरह का ऐसा कार्य न हो सके जिससे लोगों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रति गलत सन्देश प्रसारित हो. इस बार आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता लगने के पहले ही राजनैतिक दलों को स्पष्ट रूप से सचेत कर दिया गया है कि उनकी बेवजह, अनावश्यक बयानबाजी पर निगाह रखी जाएगी. आयोग द्वारा यह भी समझाया गया है कि ऐसा करने वालों पर कार्यवाई की जाएगी. निर्वाचन आयोग की सक्रियता की यह एक मिसाल है जबकि उसने आदर्श आचार संहिता लागू होने के पहले ही अपने मंतव्य को स्पष्ट कर दिया है.  

 



आयोग के सामने चुनाव को निष्पक्ष करवाने के साथ-साथ अनेक प्रकार की चुनौतियाँ रहती हैं. उसके सामने महज राजनैतिक व्यक्तियों की अनर्गल बयानबाजी को, भाषाई अशालीनता को रोकना ही प्रमुख कदम नहीं है वरन अनेकानेक अवैध तरीकों से चुनावों को प्रभावित करने को रोकना भी एक जबरदस्त चुनौती है. आयोग द्वारा इससे पहले भी चुनाव सुधारों सम्बन्धी पहल की जा चुकी है. एक व्यक्ति के दो जगह से चुनाव लड़ने को प्रतिबंधित करने, दो हजार रुपये से अधिक के गुप्त चंदे पर रोक लगने, उन्हीं राजनैतिक दलों को आयकर में छूट दिए जाने का प्रस्ताव जो लोकसभा-विधानसभा में जीतते हों आदि विचारों के द्वारा निर्वाचन आयोग ने अपनी स्वच्छ नीयत का सन्देश दिया है. किसी भी देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सफलता के लिए वहाँ की निर्वाचन प्रणाली का स्वच्छ, निष्पक्ष, कम खर्चीला होना आवश्यक है. किसी भी लोकतंत्र की सफलता इसमें निहित है कि वहाँ की निर्वाचन प्रणाली कैसी है? वहाँ के नागरिक सम्बंधित निर्वाचन को लेकर कितने आश्वस्त हैं? निर्वाचन प्रणाली, प्रक्रिया में कितनी सहजता, कितनी निष्पक्षता है?

 

भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विगत कुछ दशकों से निर्वाचन प्रक्रिया सहज भी रही है तो कठिनता के दौर से भी गुजरी है. निर्वाचन प्रक्रिया भयावहता के अपने चरम पर होकर वापस अपनी सहजता पर लौट आई है. अब पूरे देश के चुनावों में, किसी प्रदेश के चुनावों में एकाधिक जगहों (पश्चिम बंगाल को छोड़कर) से ही हिंसात्मक खबरों का आना होता है. एकाधिक जगहों से ही बूथ कैप्चरिंग किये जाने के प्रयासों की खबरें सामने आती हैं. निर्वाचन को भयावह दौर से वापस सुखद दौर तक लाने का श्रेय बहुत हद तक निर्वाचन आयोग की सख्ती को रहा है तो केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा बलों की उपलब्धता को भी जाता है. इस सहजता के बाद भी लगातार चुनाव सुधार की चर्चा होती रहती है. राजनैतिक परिदृश्य में सुधारों की बात होती रहती है. निर्वाचन की खर्चीली प्रक्रिया पर नियंत्रण लगाये जाने की कवायद होती रहती है. चुनावों में प्रयुक्त होने वाले कालेधन और अनावश्यक धन के उपयोग पर रोक लगाये जाने की नीति बनाये जाने पर जोर दिया जाता है.

 

प्रत्याशियों द्वारा अनेक तरह के अवैध स्रोतों से चुनाव में खर्चा किया जाता है. अपने चुनावी खर्चों को निर्वाचन आयोग की निर्धारित सीमा में दिखाकर परदे के पीछे से कहीं अधिक खर्च किया जाता है. विगत चुनावों में उत्तर प्रदेश के एक अंचल में ‘कच्ची दारू कच्चा वोट, पक्की दारू पक्का वोट, दारू मुर्गा वोट सपोर्ट’ जैसे नारे खुलेआम लगने का स्पष्ट संकेत था कि चुनावों में ऐसे खर्चों के द्वारा भी मतदाताओं को लुभाया जाता रहा है. मतदाताओं को धनबल से अपनी तरफ करने के साथ-साथ मीडिया के द्वारा भी चुनाव को, मतदाताओं को अपनी तरफ करने का प्रयास प्रत्याशियों द्वारा किया जाता है. बड़े पैमाने पर इस तरह के मामले सामने आये हैं जिनमें कि ‘पेड न्यूज़’ के रूप में खबरों का प्रकाशन-प्रसारण किया जाता है. बड़े-बड़े विज्ञापनों द्वारा प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाये जाने का काम मीडिया के द्वारा किया जाता है. धनबल से संपन्न प्रत्याशियों द्वारा अनेक तरह के आयोजनों के द्वारा, विभिन्न आयोजनों को धन उपलब्ध करवाने के द्वारा भी निर्वाचन प्रक्रिया को अपने पक्ष में करने के उपक्रम किये जाते हैं. बड़े-बड़े होर्डिंग्स, बैनर, बड़ी-बड़ी लग्जरी कारों के दौड़ने ने भी निर्वाचन प्रक्रिया को खर्चीला बनाया है.

 

ऐसा नहीं है कि निर्वाचन आयोग को ऐसी स्थितियों का भान नहीं है. आयोग द्वारा उठाये गए तमाम क़दमों का प्रभाव है कि सजायाफ्ता लोगों को निर्वाचन से रोका जा सका है. आयोग के प्रयासों का सुफल है कि आज हाशिये पर खड़े लोगों को मतदान का अधिकार मिल सका है, वे बिना किसी डर-भय के अपने मताधिकार का प्रयोग कर पा रहे हैं. इसके बाद भी अभी बहुत से प्रयास किये जाने अपेक्षित हैं. धन के अपव्यय को रोकने के लिए निर्वाचन आयोग को किसी भी तरह की प्रकाशित प्रचार सामग्री पर रोक लगानी होगी. मतदाताओं को सिर्फ अपने बैलट पेपर का नमूना प्रकाशित करके वितरित करने की अनुमति दी जानी चाहिए. इससे अनावश्यक तरीके से, अवैध तरीके से प्रचार सामग्री का छपवाया जाना रुक सकेगा. देखने में आता है कि प्रशासन की आँखों में धूल झोंककर स्वीकृत गाड़ियों की आड़ में कई-कई गाड़ियों को प्रचार के लिए लगा दिया जाता है. धनबल की यह स्थिति चुनावों की निष्पक्षता को प्रभावित करती है.

 

आयोग द्वारा प्रयास ये होना चाहिए कि चुनाव जैसी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर सिर्फ धनबलियों, बाहुबलियों का कब्ज़ा होकर न रह जाये. उसको ध्यान रखना होगा कि चुनाव खर्च की बढ़ती सीमा से कहीं कोई चुनाव प्रक्रिया से वंचित तो नहीं रह जा रहा है. आयोग का कार्य जहाँ निष्पक्ष चुनाव करवाना है वहीं उसका दायित्व ये भी देखना होना चाहिए कि चुनाव मैदान में उतरने का इच्छुक व्यक्ति किसी तरह से धनबलियों का शिकार न हो जाये. यद्यपि वर्तमान दौर अत्यंत विषमताओं से भरा हुआ है तथापि कुहासे से बाहर आने का रास्ता बनाना ही पड़ेगा.





 

01 मार्च 2024

डिजिटलाइजेशन के बढ़ते कदम

वर्ष 2016 में जब देश में नोटबंदी या विमुद्रीकरण जैसी आर्थिक प्रक्रिया को लागू किया गया था, उस समय देश के समस्त क्षेत्रों में इस बात को लेकर एक तरह का प्रश्न उभरा था कि सरकार द्वारा इसके सापेक्ष जिस तरह से डिजिटलाइजेशन की पैरवी की जा रही है, वह कितनी सफल रहेगी. यदि उन दिनों की स्थिति का आज आकलन किया जाये तो डिजिटलाइजेशन की सफलता से ज्यादा उसकी स्वीकार्यता को लेकर संशय बना हुआ था. देश के बहुतायत ग्रामीण अंचलों में इंटरनेट की अनुपस्थिति, इंटरनेट होने की स्थिति में उसकी गति का कम होना, डिजिटलाइजेशन के प्रति जनमानस के विश्वास को लेकर भी एक तरह का संशय बना हुआ था. समय के साथ देश की स्थिति में परिवर्तन होता रहा, राजनैतिक-सामाजिक स्थितियों में बदलाव के साथ-साथ आर्थिक बदलाव के दौर को भी देश ने देखा और अर्थव्यवस्था को गति देने में डिजिटल मुद्रा ने अपना प्रभाव दिखाया. सुखद यह है कि देश की आर्थिक गतिविधियों को डिजिटलाइजेशन ने, डिजिटल मुद्रा ने, डिजिटल लेनदेन ने सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है.

 



विमुद्रीकरण के पश्चात् डिजिटल अर्थव्यवस्था की गति सकारात्मक रूप से बढ़ी है. डिजिटलाइजेशन के कारण देश के विभिन्न वर्गों को, विभिन्न क्षेत्रों को, युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर भी मिला. देश में डिजिटल सिस्टम का विकास के पीछे अनेक तत्त्व प्रभावी भूमिका में रहे हैं. इसके लिए सर्वप्रथम सरकार द्वारा ही डिजिटलाइजेशन के लिए लगातार प्रयास करना रहा है. इंटरनेट को बढ़ावा देना, सुदूर क्षेत्रों में इसकी पहुँच बनाना, विद्यार्थियों, युवाओं तक स्मार्टफोन का पहुँचाना भी महत्त्वपूर्ण कदम रहा है. इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार देश में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 2025 तक 900 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है. इसके साथ-साथ डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे प्रयासों से भी डिजिटल प्रौद्योगिकी बढ़ावा मिला. देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए यूपीआई, यूएसएसडी, भीम आधार, भीम यूपीआई, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, आईएमपीएस, एनईएफटी, आरटीजीएस आदि को सरकारी स्तर पर लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसका एक सकारात्मक प्रभाव यह देखने को मिला है कि न केवल बड़े-छोटे दुकानदार इसका प्रयोग कर रहे हैं बल्कि रेहड़ी वाले, दिहाड़ी रूप में अपना व्यापार करने वाले, ऑटो रिक्शा आदि जैसी सेवाएँ देने वाले भी डिजिटल लेनदेन के द्वारा अपना काम चला रहे हैं.

 

देश में मात्र डिजिटल लेनदेन ने ही यहाँ के डिजिटल सिस्टम को मजबूत अथवा प्रभावी नहीं बनाया है बल्कि सरकार द्वारा डिजिटल क्षेत्र में किये गए सुधारों ने भी यहाँ के डिजिटल तंत्र को सशक्त बनाया है. इसी सशक्त डिजिटल तंत्र की सफलता के कारण ही गत वर्ष अमेरिका और भारत के साथ महत्त्वपूर्ण समझौते हुए थे. इनमें एआई, सेमीकंडक्टर, हाई-परफोर्मेंस कम्प्यूटिंग सहित अनेक क्षेत्र सम्मिलित हैं. यह देश की डिजिटल क्षमताओं का ही प्रभाव है कि अमेरिका की प्रसिद्ध चिप निर्माता कंपनी द्वारा गुजरात में लगभग तीन अरब डॉलर की लागत से चिप असेम्बिलंग, टेस्टिंग, पैकेजिंग आदि का प्लांट लगाया जा रहा है. इसके साथ-साथ भारत की अध्यक्षता में संपन्न जी-20 शिखर सम्मलेन के दौरान सम्पूर्ण विश्व ने डिजिटल इंडिया की क्षमता को, विश्वसनीयता को, प्रतिभा को नजदीक से न केवल महसूस किया बल्कि उसकी सराहना भी की. सरकार के डिजिटलाइजेशन के प्रति गंभीर होने का भाव इसी से समझ आता है कि उसके द्वारा लगातार इस क्षेत्र में सक्रियता के साथ काम किया जा रहा है. गत वर्ष पीएलआई स्कीम-दो को मंजूरी देकर सरकार ने देश में ही कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, टैबलेट आदि के विनिर्माण को प्रोत्साहित किया है.

 

देश में इन उत्पादों के विनिर्माण से निश्चित ही एक तरफ कीमतों में कमी देखने को मिलेगी, दूसरी तरफ डिजिटलाइजेशन के प्रति भी गतिविधियों में तेजी दिखाई पड़ेगी. डिजिटल लेनदेन से जहाँ एक तरफ नकद लेनदेन की निर्भरता कम हुई है वहीं दूसरी तरफ नकली करेंसी से भी बचना हो सका है. इसके बाद भी अभी भी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा नकद लेनदेन पर निर्भर है. सरकार का निरन्तर प्रयास यही है कि देश के नागरिक डिजिटल लेनदेन का अधिक से अधिक उपयोग करें. इसके लिए सरकार को कुछ और कदम भी इस तरफ उठाने की आवश्यकता है. व्यापारियों, नागरिकों को डिजिटल भुगतान के तरीकों को अपनाने के लिए उनको प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है. ऑनलाइन भुगतान करने पर व्यापारियों, नागरिकों को कुछ छूट, लाभ दिए जा सकते हैं. व्यापारियों को पॉइंट-ऑफ-सेल टर्मिनल खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान की जा सकती है. अपना बहुतायत भुगतान डिजिटल माध्यम से करने वाले नागरिकों को भी किसी न किसी रूप में लाभान्वित किया जाये. फिलहाल तो देश में डिजिटल लेनदेन अपनी गति से निरंतर आगे बढ़ रहा है. निकट भविष्य में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या और ई-कॉमर्स बाजार में वृद्धि के चलते देश में डिजिटलाइजेशन का भविष्य उज्ज्वल समझ आता है. 





 

26 फ़रवरी 2024

क्वाड की कूटनीतिक आवश्यकता

वैश्विक कूटनीतिक विमर्श का एक बेहद महत्वपूर्ण मंच बन चुके रायसीना डायलॉग में भारत के विदेश मंत्री ने खुलकर क्वाड की भूमिका पर चर्चा करते हुए पड़ोसी देश चीन की भारत-विरोधी कूटनीति पर निशाना साधा. क्वाड एक चतुर्भुज समूह है, जो चार देशों भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया का सामूहिक संगठन है. विदेश मंत्री जयशंकर ने क्वाड के अस्तित्व पर स्पष्ट रूप से कहा कि इसकी जरूरत इसलिए पड़ी ताकि कोई दूसरा हमारी पसंद पर वीटो ना लगा सके. उन्होंने यह भी संदेश दिया कि आने वाले दिनों में यह संगठन और विस्ताार करेगा, और अधिक मजबूत होगा. क्वाड का गठन वर्ष 2017 में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की लगातार बढ़ती आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश सचिवों की बैठक में किया गया था. क्वाड को बनाये जाने हेतु जापान ने पहल की थी. वर्ष 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने इस हेतु कदम बढ़ाया था मगर तब ऑस्ट्रेलिया ने इस बारे में किसी तरह की रुचि न दिखाते हुए अपना समर्थन नहीं दिया था. परिणामस्वरूप चार देशों का यह समूह निर्मित नहीं हो सका था. कालांतर में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने अपने विचार को बदलते हुए क्वाड निर्माण के प्रति अपना समर्थन दिया. इस तरह से वर्ष 2017 में क्वाड अस्तित्व में आ गया.

 



देखा जाये तो हिन्द-प्रशांत क्षेत्र विगत लगभग एक दशक की समयावधि में विकसित होने वाली एक अवधारणा है. विगत कुछ समय से सम्पूर्ण विश्व ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के बारे में, उसकी महत्ता, उसके माध्यम से संपन्न होने वाले सामुद्रिक व्यापार आदि के बारे में जानना-समझना शुरू किया था. समय के साथ-साथ इस क्षेत्र की लोकप्रियता और महत्ता में वृद्धि प्रमुख रूप से होती रही है. यह क्षेत्र बहुत लम्बे समय से विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में गिना जाता रहा है. इसके साथ-साथ इस क्षेत्र के माध्यम से एकसूत्र में जुड़े चार महाद्वीपों- एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका से भी इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है. चार महाद्वीपों के जुड़े होने के कारण से इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से सक्रियता भी अन्य क्षेत्रों से अधिक बनी रहती है. इस क्षेत्र की गतिशीलता को मात्र इसी से समझा जा सकता है कि सम्पूर्ण विश्व की साठ प्रतिशत जनसंख्या इसी क्षेत्र में है. इस बहुल जनसंख्या वाले क्षेत्र के द्वारा वैश्विक आर्थिक उत्पादन का दो-तिहाई भाग इस क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक केन्द्र के रूप में स्थापित करता है. वैश्विक दृष्टि से अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं के कारण से इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत बड़े स्रोत के रूप में रहता है.  

 

अपतटीय हाइड्रोकार्बन, मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री खनिज जैसे विशाल समुद्री भंडार से आच्छादित यह क्षेत्र सदैव से बड़ी-बड़ी आर्थिक महाशक्तियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है. हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी-बड़ी आर्थिक शक्तियाँ अपने सामुद्रिक व्यापार का सञ्चालन करती हैं. इसमें भी सम्पूर्ण विश्व चीन की विस्तारवादी मानसिकता से परिचित है. इस क्षेत्र के द्वारा व्यापार करने वाली आर्थिक शक्तियाँ और अनेक सहयोगी देश इस क्षेत्र में चीन के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोकने, उसकी विस्तारवादी नीति का मुकाबला करने के लिए भारत को मजबूत रूप में देखना चाहते हैं. इसके अलावा उनके द्वारा एक सहयोगी संगठन की आवश्यकता भी लम्बे समय से महसूस की जा रही थी, जो चीन की आक्रामक गतिविधियों पर नियंत्रण लगा सके. क्वाड अपने मूल स्वभाव सुरक्षा संवाद समूह के साथ-साथ हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की अनेक चुनौतियों को दूर करने के लिए भी लगातार सक्रिय बना हुआ है. इन चुनौतियों में मुख्य रूप से समुद्री सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी, साइबर सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई शामिल है.

 

इस क्षेत्र में सुरक्षा संरचना के लिये भी भारत के विशेष साझेदार देश- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया आपस में एकदूसरे को सहयोग देते हुए चीन की अनावश्यक उपस्थिति को इस क्षेत्र में रोकना चाहते हैं. यद्यपि भारत की तरफ से सदैव यही सन्देश दिया गया है कि क्वाड हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अनेकानेक समस्याओं को, चुनौतियों को दूर करते हुए सभी के लिए सामुद्रिक व्यापार की सहजता, सुरक्षा को महत्त्व दे रहा है तथापि चीन इसे अपने ऊपर लगाम लगाये जाने के रूप में ही देखता है. चूँकि क्वाड में शामिल चारों देश- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान लोकतांत्रिक होने के कारण एकसमान प्रवृत्ति और आधारभूमि वाले हैं. सुरक्षा सम्बन्धी मामलों पर इनकी लगभग एकसमान नीति भी है, जो सुरक्षा के साझा हितों का समर्थन करते हैं. इसके साथ-साथ इनका समर्थन निर्बाध समुद्री व्यापार और सुरक्षा के सन्दर्भ में भी रहता है. इसी कारण से इनका उद्देश्य हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त, स्पष्ट और समृद्ध रूप से विकसित, सुनिश्चित करना है. भारत भी इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा तंत्र के लिये सहयोग करना चाहता है. समान समृद्धि और सुरक्षा के लिये इन देशों को वार्ता के माध्यम से क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है.

 

हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में स्थिति कई देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है. ऐसे में क्वाड को लेकर शंका जता रहे देशों व विशेषज्ञों को विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा दिये गये सन्देश कि क्वाड अब बना रहेगा, क्वाड का और विस्तार होगा तथा क्वाड अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है, का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. वैसे भी वर्तमान दौर को देखते हुए साफ है कि वैश्विक स्तर पर और ज्यादा सहयोग की जरूरत है, सहयोग को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता है. निश्चित ही भारत के स्पष्ट रुख से निकट भविष्य में ऐसा संभव भी होगा.