भारत में उच्च शिक्षा
संस्थानों (कॉलेज, विश्वविद्यालय
आदि) का मूल्यांकन और प्रमाणन का कार्य राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (National
Assessment and Accreditation Council) द्वारा किया जाता है. संक्षेप में इसे नैक से सम्बोधित किया जाता है. यह यूजीसी
का एक स्वायत्त निकाय है जिसकी स्थापना 1994 में हुई थी. नैक के द्वारा गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप
संस्थानों की ग्रेडिंग करना है. ऐसा किये जाने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि
विद्यार्थियों को सही संस्थान चुनने में मदद मिले.
नैक के मुख्य
कार्यों और उद्देश्यों में शैक्षणिक संस्थाओं की मान्यता को उनके मूल्यांकन के आधार
पर की गई ग्रेडिंग से किया जाना है. शिक्षण क्षेत्र में उच्च शिक्षा से सम्बंधित
संस्थाओं, चाहे वे
महाविद्यालय हों अथवा विश्वविद्यालय सभी का मूल्यांकन नैक द्वारा किया जाता है.
इसके माध्यम से सुनिश्चित
किया जाता है कि संस्थान गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं अथवा नहीं. इन मानकों में पाठ्यक्रम,
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया, अनुसंधान, बुनियादी ढाँचा आदि के साथ-साथ अध्यापकों और
विद्यार्थियों से सम्बंधित सुविधाओं और मूलभूत ढाँचे को शामिल किया जाता है.
विगत वर्षों में
नैक को लेकर लगातार उठाये जाने वाले कदमों के बाद भी उच्च शिक्षण संस्थाओं में नैक
मूल्यांकन करवाने को लेकर जागरूकता न के बराबर है. नैक मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता
लाने और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कदम उठा रहा है. इसके लिए उसके द्वारा ऑनलाइन और
हाइब्रिड मॉडल जैसी नई रणनीतियाँ शामिल हैं किन्तु निजी संस्थाएँ हों अथवा
सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाएँ, सभी नैक करवाने में अभी बहुत पीछे हैं. उत्तर प्रदेश में यह स्थिति तो और भी सोचनीय है.

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