आज से एक नए दिवस
का आरम्भ. चाटुकारिता दिवस का आयोजन अचानक से नहीं बना बल्कि एक सोची-समझी रणनीति
के साथ ही इसका आयोजन निर्धारित किया गया. ऐसा करने वाले भली-भांति जानते हैं कि
चाटुकारिता में किस तरह का आनंद है, किस तरह का स्वाद है. इस स्वाद में, आनंद में वे
पूरी तरह से लहालोट होने का मन बना चुके थे. इसमें किसी तरह की कोई कोर-कसर बाकी
रखने का, छोड़ने का भी विचार नहीं था.
ऐसे में जबकि
चाटुकारिता दिवस मनाये जाने का पूरी तरह से मन बना लिया गया हो तो उसके सन्दर्भों
पर भी विचार करना स्वाभाविक है. जब इसके पहलुओं पर विचार किया गया तो जानकारी हुई
कि ये चाटुकारिता दिवस एकांगी नहीं है, एकपक्षीय भी नहीं है. इसके एक उच्च पदस्थ के प्रति चाटुकार भाव तो था ही
साथ ही दूसरे पदस्थ के प्रति भी चाटुकारी को प्रदर्शित करने का भाव छिपा हुआ था. द्विपक्षीय
चाटुकारिता निभाने का आयोजन किया गया था किन्तु उच्चस्तरीय प्रक्रिया में अवरोध
आने के कारण एक पक्ष की चाटुकारिता असफल हो गई.
जिस हेतु सारा
चक्र रचा गया, जिस सन्दर्भ
में सारे तामझाम बिठाये गए हों, जिसके लिए चाटुकारिता की सभी
हदों को पार कर लिया गया हो वही अदृश्य बना हुआ था. जिस आनंद में, जिस स्वाद में लहालोट होने की मंशा थी, वह कहीं
किसी भय के वशीभूत दब गई. चाटुकारी का एक पक्ष निराशा के आगोश में जा चुका था किन्तु
दूसरा पक्ष अपने आका को खुस करने में, उसकी चाटुकारी में
पूरी तन्मयता से संलिप्त था.
कहा जा सकता है कि
दूसरे पक्ष ने अपने सतत प्रयासों से अपनी चमचई के बल पर अपनी चाटुकारिता की मंज़िल
को प्राप्त कर लिया. चमचत्व सफलता-असफलता के बीच झूल रहा है. इसलिए निश्चित रूप से
जल्द ही एक और आयोजन होगा.
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