सामाजिक गतिशीलता के दौरान अक्सर ऐसे बिंदु भी आते
हैं जबकि समाज के सक्रिय लोगों की पहचान सहजता से हो जाती है. ऐसे अनेक अवसरों पर
समाज के ऐसे लोगों का दोहरा चरित्र, दोहरा चेहरा सामने आता है. जिस तरह के कृत्य
ऐसे लोगों के द्वारा सामने आते हैं उनसे दोहरा शब्द का उपयोग बंद कर दिया जाना
चाहिए. अनेकानेक चेहरे-चरित्र रखने वाले ऐसे लोग समाज में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते
देखे जाते हैं.
अक्सर हम मित्रों के बीच ऐसे विषय चर्चा के लिए
उपस्थित हो जाते हैं. बीते दिनों की बातों को याद करते हुए, गुजरे समय में साथ आये
हुए लोगों के व्यवहार को देखते हुए हम सभी उनका तुलनात्मक अध्ययन करने लगते हैं.
ये एक सामान्य सी प्रक्रिया है, मानव स्वभाव की और इसी के कारण व्यक्ति सही गलत का
आकलन भी कर पाता है. इसी तुलनात्मकता में एक बात स्पष्ट रूप से सामने आ रही है कि
अब व्यक्ति भीड़ में होने के बाद भी अकेला होता जा रहा है. संबंधों का निर्वहन करना
तो दूर, अब उसके द्वारा संबंधों का लिहाज भी नहीं किया जा रहा है. स्व की अनुभूति
को उसने इस कदर अपने ऊपर हावी कर लिया है कि उसे सिवाय अपने कोई और नजर ही नहीं
आता है. यह स्थिति न केवल उस व्यक्ति के लिए बल्कि समाज के लिए भी ख़राब है.
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