चार वर्ष से अधिक
की प्रतीक्षा के पश्चात् अंततः नागरिक संशोधन अधिनियम को भारत के राजपत्र में
अधिसूचित कर दिया गया. दिसम्बर 2019 में यह अधिनियम संसद के दोनों सदनों में पारित
हुआ था. अब इसे अधिसूचित किये जाने के बाद इस अधिनियम के क्रियान्वयन का मार्ग
प्रशस्त हो गया है. इस कानून के लागू हो जाने से भारत के तीन पड़ोसी
देशों-पाकिस्तान,
बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी.
संसद के दोनों सदनों से पारित इस अधिनियम के द्वारा अफगानिस्तान , बांग्लादेश और पाकिस्तान से प्रताड़ित धार्मिक
अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता का त्वरित मार्ग प्रदान करके के लिए नागरिकता
अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया था. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता
सम्बन्धी नियमों में परिवर्तन किये गए.
देश की स्वतंत्रता
के बाद जब 26 जनवरी 1950 को यहाँ का संविधान लागू हुआ तो भारत में जन्म लेने वाले
नागरिकों को यहाँ की नागरिकता स्वतः ही मिल गई थी. इसके पश्चात् 1955 में नागरिकता
कानून बनाकर उन सभी नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई जो पूर्व-रियासतों
के नागरिक रहे थे. इस कानून में समय-समय पर परिवर्तन भी किये जाते रहे. ऐसा करने
के पीछे कारण गोवा,
दमन-दीव, पुडुचेरी की भौगौलिक स्थितियों में आये परिवर्तन
रहे थे. दरअसल पाकिस्तान और बांग्लादेश से भूमि विवाद सुलझाने के कारण से इन
क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को भारत की नागरिकता देने के लिए ये संशोधन
किये गए थे. भूमि विवाद के साथ-साथ इन पड़ोसी देशों में धार्मिक विवाद भी लगातार
देखने को मिल रहे थे. इससे शायद ही कोई इंकार करे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में वहाँ के अल्पसंख्यक
नागरिकों-हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी आदि को लगातार अमानवीय
व्यवहार, उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. पाकिस्तान में
धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा, संरक्षण के लिए
नेहरू-लियाकत समझौता भी इसी कारण से धरातल पर लाया गया था. कालांतर में उसका
अनुपालन असल हो गया.
ये एक विचारणीय
स्थिति है कि देश के विभाजन के पूर्व इन तीनों पड़ोसी देशों के ये अल्पसंख्यक
नागरिक इसी भारत देश के नागरिक थे, यही इनकी भी मातृभूमि थी. ऐसी स्थिति जबकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के
संरक्षण के लिए किये गए समझौते का अनुपालन करना संभव नहीं हो रहा था तो भारत की
संवैधानिक जिम्मेवारी बनती थी कि वह इन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान
करे. लगातार मिलते उत्पीड़न, शोषण के कारण इन देशों के
अल्पसंख्यक नागरिक लगातार अपनी मातृभूमि-भारत की तरफ एक आशा की दृष्टि के साथ दौड़
पड़ते हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ऐसे
हजारों नागरिक अवैध प्रवासी के रूप में भारत में रह रहे हैं. मानवीयता के आधार पर
भले ही उनकी सहायता की जा सके मगर देश की कोई भी सरकार,
राज्यों की सरकारें चाह कर भी संवैधानिक रूप से उनकी सहायता नहीं कर पा रही थीं. ये
तीनों देश भी अपने देश में अपने अल्पसंख्यक नागरिकों की सहायता करने में असमर्थ ही
नजर आ रहे थे. ऐसे में भारत सरकार ने अपना दायित्व समझते हुए नागरिकता संशोधन
अधिनियम को दोनों सदनों में पारित करवाया और उसकी विस्तीर्ण नियमावली को अधिसूचित
कर दिया. यह अधिनियम इन तीनों देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता
लेने की सुविधा प्रदान करता है किन्तु वह इन्हीं तीनों पडोसी देशों के मुस्लिम
नागरिकों को भारत की नागरिकता लेने की सुविधा प्रदान नहीं करता है.
देखा जाये तो भारत
सरकार की तरफ से यह एक महत्त्वपूर्ण कदम का उठाया जाना है. इस अधिनियम से देश के
किसी भी अल्पसंख्यक और मुस्लिम की नागरिकता पर किसी तरह का संकट नहीं खड़ा होता है, जैसा कि पूर्व में अनेक विपक्षी
राजनैतिक दलों द्वारा कहा जाता रहा है. अनेक राजनैतिक दलों के साथ-साथ अनेक
मुस्लिम संगठनों ने इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् इसका जबरदस्त विरोध किया
था. शाहीन बाग़ में एक लम्बी अवधि तक चला विरोध प्रदर्शन इसका उदाहरण है. यहाँ
स्पष्ट रूप से समझने वाली बात है कि यह अधिनियम देश के किसी भी व्यक्ति, वह चाहे किसी भी धर्म का हो, की नागरिकता को खतरे
में नहीं डालता है न ही उसका हनन करता है. यह अधिनियम उन वंचितों को, धार्मिक
अल्पसंख्यकों को कानूनी अधिकार देता है जो पाकिस्तान,
बांग्लादेश, अफगानिस्तान में प्रताड़ित होकर भारत में
शरणार्थी की स्थिति में हैं. नागरिकता अधिनियम में नागरिकता के प्रावधान के
सन्दर्भ में आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी वर्ष
में 11 महीने भारत में रहना चाहिए. कानून में हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई जो तीन
देशों-अफगानिस्तान, बांग्लादेश
और पाकिस्तान से सम्बंधित हैं, उनके लिए 11 वर्ष की जगह 6 वर्ष तक का समय निर्धारित किया गया है. कानून में
यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन
ऑफ इंडिया कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है.
भारत सरकार द्वारा
कहीं न कहीं, किसी न
किसी रूप में अपने ही उन नागरिकों को संरक्षण, सुरक्षा
प्रदान किये जाने का प्रावधान किया है जो आज़ादी के समय तत्कालीन स्थितियों के चलते
अनचाहे ही किसी दूसरे देश के नागरिक बन गए थे और उन देशों में वे धार्मिक आधार पर
अल्पसंख्यक भी थे, प्रताड़ित भी थे. इस तरह के कदम के लिए
देशव्यापी समर्थन, सहयोग मिलना चाहिए था मगर कतिपय राजनैतिक स्वार्थ के चलते इस
अधिनियम का अतार्किक विरोध किया गया. अब जबकि इस अधिनियम को अधिसूचित कर दिया गया
है, राज्यों का अनापेक्षित हस्तक्षेप न रहे इसके लिए
केन्द्रीय पोर्टल की व्यवस्था की गई है, तब सभी को अपने ही
पूर्व-नागरिकों का स्वागत, सम्मान करना चाहिए जो अभी तक अपने
ही देश में शरणार्थी की तरह रहने को विवश थे.
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