23 फ़रवरी 2024

अइया के साथ अंतिम समय में

समय गुजरता जाता है मगर यादें नहीं गुजरती हैं. वे जहाँ कल थीं, वहीं आज भी दिखाई देती हैं. ये यादें हँसाती भी हैं, रुलाती भी हैं. इन्हीं यादों के साथ जीवन सहज-असहज तरीके से गुजरता हुआ अपनी अंतिम अवस्था तक पहुँच जाता है. यादों के केन्द्र में समाहित व्यक्ति जितना महत्त्वपूर्ण होता है, उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं उस व्यक्ति से जुड़ी वस्तुएँ. इसका एक मुख्य कारण ये होता है कि जो व्यक्ति यादों के केन्द्र में है, वो हमें न तो दिखाई देता है और न ही उसका आभास हमें होता है. हम सभी अपनी यादों में, अपनी कल्पना में उसे याद करते हुए उसका एहसास करते रहते हैं. ऐसे में उससे जुड़ी वस्तुएँ, उसके द्वारा उपयोग किये गए सामान ही उसका स्थान ले लेते हैं, उसकी उपस्थिति का एहसास करवाते हैं.

 



कुछ ऐसी ही है ये स्केल, जिसका बहुत ज्यादा उपयोग अइया ने नहीं किया बल्कि सत्य तो ये है कि उन्होंने इसका उपयोग एक पल को भी नहीं किया मगर चंद घंटों के उपयोग के चलते यह उनसे जुड़ गई. असल में अइया को उनके घायल होने के बाद कानपुर में एक हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया. उनके बारे में जैसा सुनते रहे थे और देखते भी रहे थे, स्वभाव से कुछ जिद्दी थीं. इलाज के दौरान उनको विगो लगाईं जाती तो वे उसे किसी न किसी तरह से ख़राब कर देती थीं. इस कारण से उनके इलाज के दौरान चढ़ाई जाने वाली दवाएँ वगैरह उचित ढंग से उनको नहीं दी जा पा रही थीं. ऐसे में एक दिन हॉस्पिटल के डॉक्टर ने कहा कि ऐसे तो इलाज में बहुत दिक्कत आएगी, कैसे भी करके इनका विगो को डिस्टर्ब करना रोकिये. पिछले आठ-नौ दिन से लगातार विगो, इंजेक्शन लगने के कारण हॉस्पिटल के स्टाफ को भी समस्या का सामना करना पड़ रहा था.

 

अइया के द्वारा विगो को डिस्टर्ब करने की समस्या का एक हल हमने सोचा और उसे अमल में लाने का विचार बनाया. हाथ में विगो लगाने के बाद उनकी कोहनी से इसी स्केल को हमने बाँध दिया. यहाँ एक बात और आप सबको बताते चलें कि अइया के उन हॉस्पिटल में एडमिट रहने वाले दिनों में उनके सारे बेटे-बहू, नाती-नातिन उनके पास थे मगर वे सिर्फ अम्मा-पिताजी का या फिर हमारा कहना मानती थीं. इसी कारण हमने उनको समझाया और कोहनी में स्केल बाँध दी. पता नहीं समय क्या कुछ दिखाना चाह रहा था. रात को अइया के हाथों में स्केल बाँधी उसके बाद उनका बातचीत करना कुछ और कम हो गया. अपने ऊपर लगाए गए इस बंधन को उनके द्वारा पूरे चौबीस घंटे भी स्वीकार नहीं किया गया. अगले दिन के शाम होने तक अइया ने हम सबको छोड़कर बाबा जी के पास जाने का मन बना लिया.

 

फरवरी का आज का ही दिन था. उस दिन से लेकर आज तक अइया के बिना एक पल न गुजरा. उनके साथ अंतिम समय में जुड़ी इस स्केल को भी हम भुला नहीं पाए. आज भी ये स्केल हमारी किताबों की अलमारी में सुरक्षित है. पता नहीं आज के समय के हिसाब से हम क्या हैं मगर इसे देखकर लगता है कि अइया आज भी हमारे साथ हैं. 





 

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