03 फ़रवरी 2024

सैन्य हाथों में पाकिस्तानी लोकतंत्र

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में इसी आठ फरवरी को आम चुनाव होने हैं. इमरान खान जेल में बंद होने के कारण भले ही चुनाव मैदान से बाहर हैं मगर चुनावी लड़ाई उनके और नवाज़ शरीफ़ के बीच ही है. वैश्विक स्तर पर अनेक देशों की नजरें इस चुनाव पर लगी हैं. अमेरिका के विदेश विभाग ने बयान जारी करते हुए कहा है कि वे पाकिस्तान में अभिव्यक्ति की आजादी, विधायी अधिकारों के उल्लंघन को लेकर चिंतित हैं. पाकिस्तानी जनता को अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल कर भविष्य के नेता को चुनने का अधिकार होना चाहिए. यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि पाकिस्तानी सेना पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह पाकिस्तानी लोकतंत्र को निरंकुश तरीके से प्रभावित कर रही है. पाकिस्तान की एक वरिष्ठ पत्रकार मलीहा लोधी, जो राजनयिक भी रह चुकी हैं, ने एक रिपोर्ट में लिखा है कि पाकिस्तान के वर्तमान सैन्य प्रतिष्ठान का मुख्य ध्येय यह सुनिश्चित करना है कि इमरान खान प्रधानमंत्री न बनने पाएँ. इसी तरह की बात अमेरिकी समाचार-पत्र द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में है. उसका कहना है कि पाकिस्तान में राजनेताओं पर हो रही कार्रवाई साफ दिखाई दे रही है और इन्हीं वजहों से पाकिस्तान के चुनाव की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. पाकिस्तानी सेना का चुनाव में दखल है और पीटीआई के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है.

 



किसी न किसी रूप में सेना के नियंत्रण में चलता 2024 का चुनाव वैसा ही नजर आ रहा है जैसा कि 2018 का आम चुनाव था, बस राजनीतिज्ञों की स्थिति बदल गई है. 2018 का चुनाव नवाज़ शरीफ़ के बगैर हुआ था और 2024 का चुनाव इमरान खान के बिना हो रहा है. उस चुनाव में नवाज़ शरीफ़ भ्रष्टाचार के मामले में सजा मिलने के कारण जेल में थे और चुनाव नहीं लड़ सके थे. इस बार ऐसी स्थिति में इमरान खान हैं. उनको और उनकी पत्नी भ्रष्टाचार के एक मामले में चौदह साल की सजा मिलने पर जेल में हैं. इसी तरह सरकारी गुप्त भेद जाहिर करने के एक अन्य मामले में इमरान खान को पहले ही दस वर्ष की कैद सुनाई जा चुकी है. ऐसा आरोप लगातार लगता रहा है कि 2018 में नवाज़ शरीफ़ के और अब 2024 में इमरान खान के जेल जाने में पाकिस्तानी सेना का हाथ रहा है. 1999 में नवाज़ शरीफ़ के कार्यकाल में सैन्य तख़्तापलट हुआ था. उनके तीसरे कार्यकाल, वर्ष 2013 में भी उनके और सेना के बीच मतभेद खुलकर सामने आये थे, जिसके परिणामस्वरूप नवाज़ शरीफ़ सत्ता से बाहर हो गए थे. अभी कुछ महीने पहले ही उनको सभी आरोपों से बरी कर दिया गया और उनके चुनाव लड़ने पर लगी आजीवन रोक को भी असंवैधानिक बताया गया.

 

कुछ इसी तरह की कहानी इमरान खान की भी है. 2018 में उनकी छवि पाकिस्तान का भविष्य बदलने वाले नेता के रूप में बन रही थी. इमरान खान अपने भाषणों में वंशवाद की राजनीति को ख़त्म करने, भ्रष्ट नेताओं को जेल में डालने, न्यायपालिका में बदलाव करने और युवाओं को नौकरी देने की बात कर रहे थे. उस समय उनके विरोधियों द्वारा आरोप लगाया जा रहा था कि वे सेना के हाथों की कठपुतली बने हुए है. ऐसा माना भी जाता है कि सेना के प्रभाव और हस्तक्षेप के चलते इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन सके थे. कालांतर में इमरान के कार्यकाल में पाकिस्तान में आर्थिक हालात ख़राब हुए, मँहगाई बढ़ी, दैनिक उपभोग की वस्तुओं की कमी होने लगी, मीडिया पर पाबंदी लगाई गई, कई विपक्षी नेता जेल भेजे गए. इन घटनाओं ने जहाँ इमरान खान की लोकप्रियता में कमी की वहीं सेना के साथ भी उनके सम्बन्धों में कड़वाहट पैदा की.

 

नवम्बर 2022 में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा द्वारा अपने चहेते लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर को नया सेनाध्यक्ष बनवाया गया. नए सेनाध्यक्ष का पद सँभालने के बाद जनरल मुनीर ने लगातार यही प्रयास किया कि सबसे पहले उन व्यक्तियों पर कार्यवाही का चाबुक चलाया जाए जो किसी भी रूप में इमरान खान का नज़दीकी रहा हो अथवा उनकी सरकार का सक्रिय मददगार रहा हो. इसके पीछे इमरान खान और जनरल मुनीर के बीच की व्यक्तिगत दुश्मनी मानी जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री रहते हुए इमरान खान ने ही अड़ंगा लगाते हुए मुनीर की नियुक्ति आईएसआई महानिदेशक के रूप में नहीं होने दी थी. इसका बदला मुनीर ने इस रूप में लिया कि इमरान खान को हटाये जाने के बाद वे पहले आईएसआई मुखिया बने उसके बाद सेनाध्यक्ष भी बने. व्यक्तिगत खुन्नस के चलते ही इमरान खान अनेक मुक़दमे झेलते हुए जेल में बंद हैं.

 

यह पाकिस्तानी लोकतंत्र की विडम्बना है कि वहाँ की राजनीति, सत्ता कभी भी सेना से मुक्त होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बना सकी है. इन चुनावों में वहाँ की आंतरिक समस्याओं, राजनीतिक पार्टियों के अपने विरोधाभासों के कारण भले ही भारत विरोधी बयान सामने न आये हों; भले ही इमरान खान ने प्रधानमंत्री के रूप में कई बार भारत के साथ बातचीत से मुद्दे सुलझाने पर जोर दिया; भले ही नवाज़ शरीफ़ भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने का वादा करते आये हैं मगर अंतिम कदम वहाँ की सेना के मंशानुरूप ही उठाना पड़ता है. ऐसे में पाकिस्तान के इन चुनावों में परिणाम कुछ भी रहें, सत्ता में कोई भी पार्टी आये, प्रधानमंत्री कोई भी बने मगर भारत के साथ सम्बन्ध वही चिर-परिचित रूप में ही रहेंगे क्योंकि जनरल मुनीर की मानसिकता भारत से इत्तेफाक रखने वाली नहीं है. 





 

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