बँधी-बँधाई लकीर पीटने वाले, मूढ़ बुद्धि वाले, ख़ुद को
एकमात्र ज्ञानवान समझने वाले यदि किसी भी नीति, योजना आदि को क्रियान्वित करने वाले हों तो किसी भी अच्छी
से अच्छी नीति, योजना का बंटाधार
होना निश्चित है. कुछ ऐसा ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ हो रहा है.
बाक़ी जगहों की बहुत ज़्यादा व्यावहारिक जानकारी नहीं मगर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय,
झाँसी में ऐसा ही हो रहा है. आये दिन एनईपी
2020 से सम्बन्धित आने वाले आदेशों,
नियमों, दिशा-निर्देशों में किसी भी रूप में स्पष्टता देखने को
नहीं मिलती. व्यावहारिक रूप से इनका पालन करना कठिन होता है. इस कठिनाई को बहुसंख्यक
महाविद्यालयों के प्राचार्य और भी बढ़ा देते हैं.
पिछले वर्ष एक आदेश आया था, सतत आंतरिक मूल्यांकन में विद्यार्थी को न्यूनतम 15 अंक अनिवार्यतः देने के सम्बन्ध में. इस पर तबसे लेकर
आजतक विवाद, भ्रम की स्थिति बनी
है. बहुतेरे महाविद्यालयों में अनुपस्थित विद्यार्थियों को भी 15 अंक देने का दबाव प्राचार्यों द्वारा बनाया
जा रहा है. इस बारे में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है कि आख़िर अनुपस्थित विद्यार्थी
को अंक कैसे दिये जाएँ?
इस तरह के आदेश प्रोजेक्ट को लेकर, लघु शोध प्रबंध को लेकर, क्षेत्रीय
भ्रमण/सर्वेक्षण को लेकर, माइनर
विषयों को लेकर भी आते रहे हैं, जो भ्रम, विवाद ही पैदा करते
आ रहे हैं. इस बारे में न तो बहुत से प्राचार्यों द्वारा कोई जानकारी ली जा रही है
और न ही विश्वविद्यालय द्वारा स्पष्ट नीति बनाई जा रही है.
वैसे, देखने में आ रहा है कि
अब अपने उच्चाधिकारियों से चर्चा करने में, विमर्श करने में शिक्षक भी घबराने लगे हैं. अपने आपको
विश्वासी, सक्षम बनाने में असफल
ऐसे अनेकानेक शिक्षक विद्यार्थियों को कैसे विश्वासी, सक्षम बना सकेंगे?
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