22 जनवरी 2024

समग्र विश्व का राममय होना कल्याणकारी संकेत

पञ्च तत्वों- पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश का समन्वित स्वरूप ही सृष्टि है. इस सृष्टि के गोचर-अगोचर, दृश्य-अदृश्य, चर-अचर आदि विविध रूपों के द्वारा इसका सञ्चालन निर्बाध गति से होता रहता है. इन्हीं पञ्च तत्वों की अलौकिकता ने रामलला की जन्मभूमि पर अपना उत्कर्ष प्राप्त किया. देश की सांस्कृतिक चेतना और मर्यादा की शुचिता के मानक रूप रामलला अपनी जन्मभूमि पर, अपने प्रासाद में पूर्ण वैभव, पूर्ण दिव्यता के साथ विराजमान हुए. पृथ्वी की भांति क्षमा, अग्नि की भांति प्रकाशमान, जल की भांति शीतल, वायु के जैसे सुगंधि प्रवाह और आकाश की भांति सकल स्वरूप में विस्तारित श्रीराम को किसी अवतार से अधिक आस्था, श्रद्धा, भक्ति का केन्द्र स्वीकारा गया. अपने इन्हीं समन्वित और अलौकिक गुणों के कारण ध्वंस किये गए मंदिर से लेकर अपने अस्तित्व पर प्रश्न उठाये जाने के तक भी रामलला टेंट की छाया से समग्र सृष्टि को संचालित करते रहे.

 



भारतवर्ष की सनातन संस्कृति और परम्परा के पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का प्राण-प्रतिष्ठा के साथ अपनी जन्मभूमि में आना मात्र एक संघटना नहीं है. देशकाल, परिस्थितियों के साथ उद्घाटित होते रहने वाली ध्वंस-निर्माण की, पुनर्स्थापन की प्रक्रिया जनमानस को उद्द्वेलित करती रही. संस्कृति, धर्म, आस्था के परमपूज्य रूप में श्रीराम की जन्मभूमि के लिए कंठ-कंठ से निकले प्रण ने, संकल्प ने सोयी हुई चेतना को जगाने का कार्य किया. वर्षों-वर्षों से अपनी ही धरती, अपनी भी संस्कृति में अपनी सांस्कृतिक विरासत को पददलित होते देख, उसके प्रति नकारात्मकता देख बहुत बड़े हिन्दू समाज ने बारम्बार अपने को अपमानित महसूस किया. काल की अविरल गति के परिणामस्वरूप विधि का ऐसा विधान निर्मित हुआ कि हिन्दुओं की वर्षों से चली आ रही साध पूरी हुई. श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला के भव्य-दिव्य मंदिर की संकल्पना साकार होने तक युवाओं ने, वृद्धों ने, साधू-संतों ने बलिदान ही बलिदान दिए हैं.

 

सम्पूर्ण विश्व में यह अपनी तरह का प्रथम उदाहरण कहा जायेगा जहाँ जेहादी और बर्बर आक्रान्ताओं के चंगुल से किसी समाज ने अपनी धार्मिक भूमि को, अपनी आस्था के केन्द्र को मुक्त करवाया है. ऐसे में श्रीराम मंदिर का निर्माण मात्र मंदिर का निर्माण नहीं है बल्कि सकल विश्व के लिए एक सन्देश भी है. मंदिर का निर्माण सन्देश है समानांतर रूप से विश्व की उन सभी जेहादी और बर्बर ताकतों को, जो किसी अन्य के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते; जो विलग पहचान और संस्कृति को कुचलने के लिए निम्न से निम्नतर स्तर तक जाने को ही वीरता समझते हैं; जो सोचते हैं कि खून से रंगी हुई तलवार के बल पर न्याय को मिटाया जा सकता है. श्रीराम मंदिर का निर्माण, श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा सन्देश है उनके लिए भी जो नफरत का वातावरण निर्मित कर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं; जो उन्माद और हिंसा के द्वारा अपनी वैचारिकी की सत्ता का सञ्चालन चाहते हैं. श्रीराम मंदिर निर्माण के प्रत्येक चरण में रामभक्तों में उन्माद भले ही परिलक्षित हुआ हो मगर उसमें कट्टरता समाहित नहीं थी. सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनायेंगे के द्वारा उनका प्रण दृष्टिगोचर हुआ मगर उसके द्वारा हिंसा का परिचालन नहीं हुआ. रामलला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे के नारे से जनसमुदाय के संकल्प का प्रकटीकरण हुआ मगर उसने किसी और की आस्था-श्रद्धा पर चोट नहीं की.

 

इसी आस्था का, विश्वास का, सहिष्णुता का, उदारता का सुखद परिणाम रहा कि अकेले अयोध्या या उत्तर प्रदेश में नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में श्रीराम के प्रति जनसमुदाय को भाव-व्हिवल होते देखा गया. हिन्दू समाज के इन्हीं अलौकिक गुणों के कारण अकेले भारतवर्ष ने ही नहीं वरन विश्व के बहुसंख्यक देशों ने श्रीराम को आराध्य मानते हुए राममय वातावरण निर्मित किया. श्रीराम मंदिर के शिलान्यास से लेकर प्राण-प्रतिष्ठा के सुअवसर तक सम्पूर्ण देश ने अपनी सहभागिता की. किसी राज्य की पावन मिट्टी ने नींव में मिलकर शक्ति का स्वरूप निर्मित किया. सुदूर क्षेत्रों की नदियों के जल ने जन्मभूमि को पवित्र करने का महती कार्य किया. जाति-धर्म के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करते हुए अनेकानेक नागरिकों ने अपने-अपने स्तर से अपना अभीष्ट देने का प्रयास किया. किसी ने पताका प्रेषित करके धर्म-ध्वजा फहराने में अपना योगदान दिया तो किसी ने धूप-समिधा के द्वारा वातावरण को सुगन्धित किया. कहीं से पुष्पों ने आकर रामलला का श्रृंगार करने का मनोरथ पाया तो कहीं से भक्त मंडली ने आकर भक्ति के सागर को लहराया. उत्तर से दक्षिण तक, हिमालय से कन्याकुमारी तक सर्वत्र राम ही राम दृश्यमान रहे. जन-जन भक्तिभाव में लीन रहकर अपनी सामाजिकता में, अपने कर्तव्यों में मगन रहा. इससे पहले समग्र में राममय वातावरण नहीं देखा गया, न ही महसूस किया गया.

 

मंदिर शब्द का उच्चारण निश्चित ही एक ऐसे दृश्य को उकेरता है जहाँ धार्मिक कृत्य परिलक्षित हो रहे हैं, धार्मिकता का आवरण है, अनुष्ठान आदि विधि-विधान से सम्पन्न हो रहे हैं. इस शब्द के साथ ही स्थापत्य कला का, मूर्ति कला का, ऐतिहासिकता का दृष्टिगोचर होना स्वाभाविक है. भारतीय सनातन संस्कृति में सदैव से मंदिरों को लेकर एक श्रद्धा-भाव, आस्था, विश्वास आदि का समन्वित स्वरूप समाज के विभिन्न वर्गों में उनके मतानुसार अपने पूर्ण बिम्ब-विधान के साथ आरोपित होता रहा है. इन सभी रंगों को अपने में समाहित करने के साथ-साथ गौरव, संस्कृति, प्रतिष्ठा, सम्मान, वैभव, स्वाभिमान का भी आरोपण श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में परिलक्षित है. भारतीय सनातन संस्कृति का, जनमानस का, समग्र विश्व का राममय होना निश्चित ही कल्याणकारी संकेत है. जिस प्रकार श्रीराम ने अपने वनवासकाल में असुरों का सर्वनाश करते हुए उत्तर से दक्षिण तक सनातन संस्कृति की स्थापना की थी, धर्म-ध्वजा को फहराने का पुनीत कार्य किया था, उसी प्रकार से राममय वातावरण सनातन संस्कृति की प्रतिस्थापना को संकल्पित दिख रहा है. जय श्रीराम! 





 

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