13 दिसंबर 2023

संसद भवन की सुरक्षा में सेंध : लापरवाही या चूक

बाईस साल पहले संसद पर हुए आतंकी हमले को लेकर संसद में कार्यवाही चल रही थी, उसी समय संसद की सुरक्षा में घनघोर चूक, जबरदस्त लापरवाही देखने को मिली. संसद में चलती कार्यवाही के दौरान दर्शक दीर्घा से दो युवकों ने कूद कर नारेबाजी की. सदन में कूदने के साथ ही उन युवकों ने रंगीन धुआँ फैलाने वाली कैन भी उछाली, इससे सदन में रंगीन धुआँ भर गया. इसे सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है. संसद पर हमले वाले दिन ही दर्शक दीर्घा से युवकों का सदन में कूद जाना जहाँ सुरक्षा व्यवस्था में चूक को बताता है वहीं घनघोर लापरवाही का भी सूचक है.




कुछ वर्ष पहले हमें भी पुरानी संसद भवन में दर्शक दीर्घा में बैठकर सदन की कार्यवाही देखने का अवसर मिला था. संसद भवन में प्रवेश के साथ ही जबरदस्त चौकसी शुरू हो जाती. पहले ही प्रवेश द्वार पर व्यापक रूप से जाँच की जाती है. किसी भी व्यक्ति को अपने साथ किसी भी तरह का सामान ले जाने की अनुमति नहीं थी. उनको उसी पहले सुरक्षा स्थल पर जमा करवा लिया जाता था. हम स्वयं धोखे से अपना इयरफोन गले में लटकाए रह गए, उसे भी जमा करवा लिया गया था. इसके बाद जब संसद भवन इमारत में प्रवेश करना था, उसके ठीक पहले उस पास की जाँच हुई जो सम्बंधित सांसद ने जारी किया था. यहाँ भी मुस्तैद जाँच व्यवस्था से गुजरना पड़ा. पूरे संसद भवन में जगह-जगह अनेक तरह की जाँच मशीनें अपना काम कर रही थीं.


जिस जगह पर दर्शक दीर्घा में प्रवेश करना होता था, वहाँ पर भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उपस्थित थे. ऐसा बिलकुल भी महसूस नहीं हो रहा था कि किसी भी तरह से सुरक्षा में, जाँच में कोताही बरती जा रही है. दर्शक दीर्घा में जाने वाले नागरिकों के जूते-चप्पल तक उतरवा लिए जा रहे थे. यहाँ भी एक-एक व्यक्ति की जाँच की जा रही थी. हमने अपनी शारीरिक असमर्थता बताते हुए जूते न उतार पाने की बात कही, छड़ी को न छोड़ पाने की असमर्थता जताई तो सुरक्षा में लगे एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वयं ही व्यक्तिगत रूप से हमारी शारीरिक स्थिति की जाँच की. जूते उतार कर उनको पैर की स्थिति से अवगत कराया. इसके बाद उन्होंने छड़ी वहीं दरवाजे पर बाहर रखवा ली और एक सुरक्षाकर्मी ने हमें अपने हाथों का सहारा देकर अन्दर कुर्सी तक पहुँचाया. दर्शक दीर्घा में भी व्यवस्था चाक-चौबंद दिखी. सदन में कूदने का कोई रास्ता नहीं था क्योंकि चारों तरफ जाली लगी हुई थी. इसके बाद भी अन्दर सुरक्षाकर्मी पूरी मुस्तैदी से सभी पर निगाह रखे हुए थे. आपस में न तो किसी को बातें करने दे रहे थे और न ही अपने हाथ-पैर हिलाने की अनुमति दे रहे थे. अपनी आँखों को इधर-उधर घुमाते हुए अनुमान लगाया तो हर चौथे-पाँचवें व्यक्ति के आसपास सुरक्षाकर्मी मौजूद था.




पुराने संसद भवन में इस तरह की कड़ी चौकसी बरती जा रही थी, ऐसे में नए संसद भवन में चूक कैसे हो गई, ये गम्भीर प्रश्न है. कैसे दो युवक अन्दर कूद गए? कैसे उनके पास रंगीन धुएँ वाली कैन दर्शक दीर्घा तक बनी रही? क्या किसी सुरक्षाकर्मी के ही इसमें मिले होने का अंदेशा है? क्या किसी सांसद के करीबी का इसमें हाथ है? ऐसी आशंका इसलिए उभरती है क्योंकि उस समय भी किसी भी सांसद के नजदीकी रक्त-सम्बन्धी को, उनके सचिव को, खुद उनको मोबाइल सहित किसी भी सामान सहित संसद भवन के भीतर जाने की छूट थी. अब जबकि नया संसद भवन आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था से लैस है, अत्याधुनिक तकनीक, संसाधन वहाँ मौजूद हैं, तक ऐसी चूक बिना किसी भीतरी व्यक्ति के शामिल हुए वगैर संभव नहीं लगती.


फिलहाल तो आरम्भिक जाँच आरम्भ हो गई है. इस चूक में, लापरवाही में कौन, किस तरह शामिल था इसके बारे में तो विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा. अंतिम निष्कर्ष क्या रहेगा ये तो बाद की बात है किन्तु मामला गंभीर और चिंताजनक अवश्य है. 




 

1 टिप्पणी:

  1. बिना अंदरूनी मदद के तो ऐसा करना मुमकिन नहीं लग रहा है। जाँच तो अपनी गति से बढ़ेगी। उसका क्या नतीजा निकलता है इसी से कुछ पता चल सकेगा।

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