29 अक्टूबर 2023

हर कदम पर प्रोत्साहित करते अभय अंकल

आज, 29.10.2023 को अभय अंकल की स्मृति में संगीत निशा का आयोजन वातायन, उरई द्वारा किया गया था. इस एक पंक्ति में दो-तीन शब्द हमारे ब्लॉग के पाठकों के अलावा बहुत सारे लोगों के लिए एकदम नए और अपरिचित होंगे. इसमें पहला शब्द है अभय अंकल, देश-विदेश के वे सारे लोग जो हमसे परिचित हैं, वे सहज ही अभय अंकल से समझ लेंगे कि किस व्यक्तित्व के लिए ये लिखा गया है. हमसे अपरिचित लोगों के लिए एक संक्षिप्त परिचय देना तो बनता ही है. यहाँ एक बात स्पष्ट कर दें कि यदि विस्तीर्ण परिचय देना शुरू कर दें तो यह पोस्ट बहुत ही अधिक लम्बी हो जाएगी. साइंस कॉलेज, ग्वालियर से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे उरई के दयानंद वैदिक महाविद्यालय में रक्षा अध्ययन विभाग में अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे. इसके अलावा जनपद की अनेकानेक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं में पदाधिकारी के रूप में भी सक्रिय रहे. 



पहली पंक्ति में जिस दूसरे अनजान शब्द वातायन का जिक्र है, उसके जन्म के पीछे दो लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान है. इसमें एक तो अभय अंकल हैं ही और दूसरे थे ब्रजेश अंकल यानि कि डॉ. ब्रजेश कुमार जी. (ब्रजेश अंकल के बारे में एक पोस्ट अलग से) अभय अंकल वातायन के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में रहे. इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा अनेकानेक नाट्य-प्रस्तुतियाँ जनपद में और जनपद के बाहर भी दी गईं. नाट्य-प्रस्तुतियों के अलावा अनेकानेक सांस्कृतिक कार्यक्रम वातायन के बैनर पर होते रहे. अभय अंकल के बारे में एक बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है कि वे नैसर्गिक रूप से बहुत बेहतरीन संयोजक थे. किसी भी तरह का कार्यक्रम हो, उनके द्वारा ऐसे संयोजन किया जाता मानो वह कार्यक्रम उनकी उँगलियों पर नाच रहा हो.


इस संयोजन क्षमता के पीछे उनका बुद्धि कौशल तो था ही, उससे बड़ी थी टीम भावना. यहाँ बहुत सारी बातों का जिक्र न करने स्वयं अपने अनुभव से गुजरी एक घटना का जिक्र करना चाहेंगे, जिसने सिद्ध किया कि अभय अंकल किस तरह अद्भुत नेतृत्व क्षमता से परिपूर्ण थे. वर्ष 2004 की बात है. एक दिन दोपहर में अभय अंकल का फोन आया कि तुरंत विभाग में आओ. अगले क्षण हम डीवी कॉलेज में रक्षा अध्ययन विभाग में उपस्थित थे. एक पत्र उन्होंने हमारे सामने रखते हुए कहा कि एक नेशनल सेमीनार करवाना है. तुम बताओ क्या काम करोगे इसमें? हमने कहा कि जो भी काम हमारे लायक समझें. इस पर अंकल ने कहा कि हमें पता है कि तुम सभी काम बेहतर ढंग से कर सकते हो पर जिसमें तुम्हारी रुचि हो वो बताओ. हमने पूरी बात अंकल पर ही डाल दी.


कुछ देर इधर-उधर की बातों के बाद अंकल ने कहा कि तुम स्मारिका का काम देख लो. इंकार का कोई मतलब ही नहीं था. स्मारिका पर काम अगले दिन से ही शुरू हो गया. अंकल द्वारा बस इतना बताया गया कि इस पर इतना बजट खर्च करना है और इतने पेज की बनना है. इसके बाद उनके द्वारा किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया गया. हम प्रतिदिन अपने काम के बारे में अंकल को बताते तो वे कहते कि जब फाइनल हो जाये तभी बताना. हमें विश्वास है कि तुम बेहतर स्मारिका निकाल दोगे. फाइनल होते-होते एक समस्या एकदम अंत में आ गई. अभय अंकल द्वारा बताये गए पेज से एक पेज अधिक हो रहा था. इसका कारण भी अभय अंकल द्वारा दिया गया सन्देश था. एक दिन बड़े झिझकते हुए उनको बताया तो बोले कि जब पूरा सम्पादकीय अधिकार तुम्हारे पास है तो झिझको नहीं, अपना काम करो. बस फिर क्या था, अभय अंकल के सन्देश पर भी सम्पादकीय कैंची चला दी गई.


उन्होंने और राजेन्द्र निगम अंकल ने स्मारिका प्रकाशित होने के ठीक एक दिन पहले उसका फाइनल रूप देखा और बहुत आशीर्वाद दिया. स्मारिका का कवर पेज, उसके अन्दर की सामग्री, उसका क्रम आदि सबकुछ हमारे द्वारा ही निर्धारित किया गया. इस पूरे काम को करके इतनी ख़ुशी मिली जो व्यक्त नहीं की जा सकती. इसका कारण काम करने की पूरी स्वतंत्रता मिलना था. इस घटना ने एक सीख दी कि यदि काम सहज रूप में सफलता के साथ पूर्ण करवाना है तो अपनी टीम पर विश्वास करते हुए उसे पूरी तरह से स्वतंत्र कर देना चाहिए. अभय अंकल द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से मिली इस सीख ने आज तक अपना असर दिखाया है. टीम के साथ किये जाने वाले कोई भी काम आजतक असफल नहीं हुए हैं.


आज उनकी स्मृति में आयोजित संगीत निशा के दौरान अभय अंकल बार-बार स्मृति-पटल पर उभरते रहे, आँखों को नम करते रहे, होंठों पर मुस्कान लाते रहे. अभय अंकल को सादर नमन. 





 

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