20 अक्तूबर 2023

नदियों सी रवानी, पहाड़ों सी जीवटता के साथ हँसता-खिलखिलाता सफ़र

पिथौरागढ़ की आखिरी सुबह, वहाँ के होटल की आखिरी चाय का स्वाद लेकर हल्द्वानी के लिए चल दिए. रात की ट्रेन होने के कारण योजना ये थी कि जागेश्वर धाम होते हुए कैंचीताल, भीमताल को भी निहार लिया जायेगा. देशकाल, परिस्थिति का ध्यान रखते हुए वापसी यात्रा की तैयारी की गई. अभी तक की यात्रा जितनी सहज, सुखद रही थी वापसी का ये एक दिन आशंकित कर रहा था. कैंचीताल, भीमताल की यात्रा पर आशंका छाई थी वहाँ लगने वाले जाम के कारण. जागेश्वर धाम को लेकर ड्राईवर ने बताया कि नीचे तक निजी वाहनों को नहीं जाने दिया जाता है. एक निश्चित स्थान के बाद वहाँ की समिति की गाड़ियों द्वारा जाया जा सकता है. ये बात अभी तक तो सशंकित नहीं किये थी मगर जब जानकारी हुई कि अगले दिन वहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आना है तो लगा कि कहीं नीचे तक जाने ही न दिया जाये. बहरहाल, यात्रा को बिना किसी शंका के शुरू किया गया, उसी उत्साह-उमंग-हंगामे और हँसी-मजाक के साथ जैसे कि अभी तक सारी यात्रा रही. 



हल्द्वानी से पिथौरागढ़ आते समय टनकपुर वाला रास्ता पकड़ा था, वापसी अल्मोड़ा वाले रास्ते से की जा रही थी. इस रास्ते मिलने वाले पहाड़ों में कुछ अंतर समझ आया. अभी तक की यात्रा में मिलने वाले पहाड़ों पर अधिकतम में जलप्रवाह खूब मिला. इस रास्ते मिलने वाले पहाड़ हरियाली मिलने के बावजूद पानी से भीगे नहीं मिले. एक जगह पर पहाड़ लगभग सड़क पर ही रखा हुआ समझ आया. ड्राईवर ने बताया कि ये अभी पिछले महीने खिसक कर यहाँ सड़क पर आ गया है. गहरी खाई, लगातार साथ बहती सरजू नदी के चलते रास्ता सौन्दर्य से भरा मगर जोखिम वाला बना हुआ था. रास्ते भर चीड़, देवदार कतारबद्ध खड़े होकर विदाई देते नजर आये. पिछले कई दिन के सुहाने सफ़र को दिल-दिमाग में कैद किये वर्तमान अकादमिक सह घुमक्कड़ी सफ़र के अंतिम दिन वहाँ बिखरे प्राकृतिक सौन्दर्य को आँखों के सहारे, कैमरे के सहारे कैद किये जा रहे थे. रास्ते में दो-तीन जगह चाय-नाश्ते के लिए रुका गया तो भी फोटोग्राफी बंद नहीं हुई.



खिसक कर सड़क पर उतर आया पहाड़ 

रास्ते में सरजू नदी और रामगंगा नदी के संगम पर पड़ने वाले रामेश्वर मंदिर को देखा सड़क किनारे से देखा गया. कहा जाता है कि इसी स्थान पर शिव पूजन करने के बाद भगवान श्रीराम ने अपनी नर लीला को विराम दिया था. ड्राईवर ने बताया कि दक्षिण के रामेश्वरम जैसी ही इसकी मान्यता है. इसी तरह से सड़क किनारे खड़े होकर रास्ते में पड़ने वाले डोल आश्रम को भी देखा गया. अल्मोड़ा जिले में घने जंगलों के बीच योग और ध्यान के उद्देश्य से इसे बनाया गया है. समयाभाव के कारण दोनों स्थलों को दूर सड़क से निहारने के साथ आगे बढ़ चले. समय अपनी गति से भाग रहा था और हमारी कार अपनी नियंत्रित गति से हल्द्वानी के लिए चली जा रही थी. रास्ते भर पहाड़, बादल, चीड़, देवदार विदाई समारोह सा करते रहे, मिलते रहे.


डोल आश्रम (अल्मोड़ा)

पहाड़ों की शांत यात्रा के बाद अचानक से भीड़ नजर आने लगी. सड़क पर ट्रैफिक भी कुछ अधिक हो गया. वाहनों की, लोगों की गति में भी परिवर्तन सा दिखाई दिया. पहाड़ों की ढलान भी कम से कमतर होते हुए कुछ समतल सी लगने लगी. कई दिन से झरनों की शक्ल में बहता पानी यहाँ झील का स्थिर रूप धारण किये था. योजना में होने के बाद भी नैनीताल की यात्रा भले न हो पाई हो मगर नैनीताल जनपद की यात्रा अवश्य कर ली थी. सड़क के बाँए तरफ स्थिर सी, शांत झील के किनारे गाड़ी रुकवाकर झील किनारे बनी सीढ़ियों पर हम तीनों लोग विराजमान हो गए. संध्याकाल में सुनहली धूप की रंगत में भीमताल की झील सुहानी लग रही थी. नावें किनारे पर लगी हुई थीं मगर उनकी यात्रा करने वाले नदारद थे. पूरी झील में दो-तीन नावें ही इधर से उधर डोल रही थीं. पंछियों, मछलियों, जल-तरंगों के साथ कुछ समय बिताने के बाद खुद को तरोताजा महसूस किया और फिर हल्द्वानी के लिए चल दिए. पर्याप्त समय के अंतर पर हम लोग हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर खड़े थे. सुखद यात्रा के इन पलों में ड्राईवर का सहज स्वभाव का होना भी सोने पर सुहागा रहा. हम लोगों का सामान प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँचाने के समय वह भी भावुक हो उठा. फिर मिलने का आश्वासन लेने-देने के साथ ही हम लोग प्लेटफ़ॉर्म पर सुकून से बैठने की जगह तलाशने लगे.



भीमताल झील (नैनीताल)


बहुत ही आराम से, बिना किसी परेशानी के संपन्न इस यात्रा में इस अंतिम दिन जागेश्वर धाम मंदिर की यात्रा सबसे मजेदार और आश्चर्यजनक रही. मजेदार इसलिए क्योंकि जैसा कि शुरू में ही आपको बताया कि ड्राईवर सशंकित था कि मोदी जी के आने के चलते हम लोगों को नीचे जाने को भी मिलेगा या नहीं? जागेश्वर धाम के लिए जाने वाले रास्ते पर गाड़ी मुड़ते ही जगह-जगह पुलिस वाले, सुरक्षाकर्मी नजर आने लगे. जगह-जगह बैरिकेडिंग के साथ सभी मुस्तैदी से अपने-अपने काम में लगे हुए थे. ड्राईवर ने दो-तीन जगह पुलिस वालों को, सुरक्षाकर्मियों को देखकर कार रोकने की कोशिश की तो उससे कहा कि वह कार अपनी निश्चित स्पीड पर चलाता रहे. जब तक रोका न जाये कहीं भी न गाड़ी धीमी करे और न ही किनारे लगाते हुए रोके. चूँकि ड्राईवर वहाँ आता रहता था, इसलिए उसे जानकारी थी कि समिति के लोग कार नीचे नहीं जाने देंगे. एक-दो जगह उसने बेरिकेंडिंग देखकर कार को किनारे रोकने की कोशिश भी की मगर उसको थोड़ा तेज आवाज़ में बोलकर गाड़ी न धीमे करने, न रोकने को कहा तो वह फिर गाड़ी को आराम से चलाता रहा.


जैसे-जैसे हम लोग मंदिर के नजदीक बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे वहाँ के इंतजाम, वहाँ की व्यवस्था चाक-चौबंद दिखाई दे रही थी. सुरक्षाकर्मियों की संख्या, उनकी मुस्तैदी, अस्त्र-शस्त्र, सुरक्षा यंत्र, तामझाम भी बढ़ता नजर आ रहा था. सड़क किनारे गाड़ियों की कतार लगी हुई थी. प्रशासन की, स्थानीय नेताओं की कारें कतारबद्ध सड़क के दोनों तरफ का सौन्दर्य बढ़ा रही थीं. जगह-जगह लगी बेरिकेडिंग पर खड़े सुरक्षाकर्मियों की नजर कार की तरफ उठती और फिर वे अपने काम में लग जाते. मन में कई बार आया कि हमारी कार न तो समिति वालों के द्वारा रोकी गई और न ही किसी पुलिस वाले द्वारा, आखिर ऐसा क्या? एकबारगी लगा कि आखिर यहाँ की पुलिस किसी समय उत्तर प्रदेश वाली ही पुलिस थी, ये अचानक से ऐसा हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? बहरहाल, इसी सब सोचा-विचारी में और इस स्थिति को स्वीकार्यता देने की तैयारी के साथ कि हमारी कार कहीं भी, कभी भी रोकी जा सकती है हम लोग मंदिर के मुख्यद्वार के सामने आ गए. आश्चर्य के साथ हम तीनों लोगों ने एक-दूसरे को निहारा, ड्राईवर ने भी आश्चर्य से हमारी तरफ देखा. बिना कुछ सोचे-समझे तुरत-फुरत में हम लोग कार से उतरे और ड्राईवर को कार को पार्किंग में लगाने के लिए आगे बढ़ गया.



जागेश्वर धाम मंदिर (अल्मोड़ा)

मंदिर की सीढ़ियों से लेकर अन्दर समूचे परिसर में इक्का-दुक्का नागरिकों के अलावा सुरक्षाकर्मी ही सुरक्षाकर्मी दिखाई दे रहे थे. इसके अलावा वहाँ की व्यवस्था बनाते हुए कारीगर, मजदूर. सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आने पर हमारे लिए आगे जा पाना संभव नहीं था क्योंकि जूते वहीं उतारने पड़ते. हमने अपना कैमरा सँभाला, रेड कार्पेट बिछाने में सुस्ती दिखाने वाले के हालचाल लिए, एक-दो सुरक्षाकर्मियों से हलकी-फुलकी जानकारी ली और हमारे दोनों साथी मंदिर दर्शन के साथ-साथ पूजन सामग्री सहित मंदिर प्रांगण में उतर गए. यथास्थिति पूजन के बाद वापस आने पर हम लोग जब कार में बैठ कर चल दिए तो आपस में इसी बात पर खूब हँसी-मजाक हुआ कि हम लोगों की कार मंदिर के मुख्य द्वार तक न रोकी गई.




बहरहाल, इसी तरह से हँसते-गाते-मौज-मजाक के साथ हल्द्वानी के रेलवे स्टेशन पर समय गुजारने के बाद ट्रेन के सहारे वापस लखनऊ उतरे. जहाँ से घर का चाय-नाश्ता करने के बाद, अपने पुराने साथी दुर्गेश जी से मुलाकात के बाद अरुण की उसी कार से वापस उरई आ गए, जिस कार से लखनऊ पहुँचे थे. अकादमिक यात्रा के साथ बनी इस पर्यटन यात्रा से बहुत कुछ नया देखने-सीखने को मिला. नए लोग मिले, पुराने लोगों से पहचान का नवीनीकरण हुआ. ऐसी सुखद, दोस्ताना यात्राएँ भविष्य में भी होती रहेंगी, सभी से मुलाकातें होती रहेंगी, ऐसी अपेक्षा है.  



पिथौरागढ़ की प्रसिद्ध बॉल मिठाई के साथ पहाड़ों, नदियों से फिर मिलने के वादे सहित विदा 


(इतिश्री)






 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छा, याददाश्त काफी अच्छी है आपकी।यात्रा सच मे बहुत अच्छी थी।

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