चाय की चुस्की
के बीच में चंडाक से चमकते पिथौरागढ़ की, बाघ न दिखाई पड़ने की बातें होती रहीं,
काल्पनिक किस्से गढ़ते हुए हँसी-ठहाके लगते रहे. जल्दी सोने की और सुबह जल्दी उठने
की मजबूरी के बीच बिस्तर पर जाने का मन नहीं हो रहा था. आखिर गप्पबाजी का अपना ही
अलग स्वाद होता है, जिसे हम मित्र भरपूर तरीके से ले रहे थे. जल्दी सोने-जागने की
मजबूरी ये थी कि सुबह-सुबह मुनस्यारी के लिए कार दौड़ाना थी. असल में शालीन, स्वस्थ
हास-परिहास के साथ पहले दिन का जब समापन हुआ तो हँसी-मजाक के दौर में भाँग की चटनी
से शाब्दिक परिचय हुआ. रात को खाने में इसे बनवाए जाने का मौखिक आदेश भी पारित
हुआ. हँसते-गुनगुनाते आसपास के घूमने-फिरने के स्थानों के बारे में जानकारी की तो
बहुसंख्यक लोगों ने पिथौरागढ़ से सवा सौ किमी दूर मुनस्यारी जाने की सलाह दी. मुनस्यारी
के आगे सभी पर्यटक स्थलों को लगभग बौना साबित करने की बातों ने अंततः वहीं जाने पर
अंतिम मुहर लगा दी. कम दूरी होने के बाद भी बहुत अधिक समय इसलिए लगना था क्योंकि
वहाँ का रास्ता अत्यधिक चढ़ाई वाला और खतरनाक मोड़ों से भरा हुआ था. 
नए-पुराने
मित्रों संग होती हाहा-हीही को बेमन से विराम देते हुए निद्रादेवी के आगोश में
जाने की तैयारी में जुट गए. जागते-सोते बीती रात के जाते-जाते एलार्म ने जागने का
निमंत्रण भेजा तो कुछ देर में कार ड्राईवर रवि ने फोन करके अपनी तत्परता का परिचय
दिया. जो समय निश्चित किया गया था, उसी समय पर कार मुनस्यारी के रास्ते दौड़ चली.
चूँकि जगह हम तीनों मित्रों के लिए एकदम नई और अपरिचित थी. ऐसे में सेमीनार के आयोजक
मंडल को इस यात्रा के बारे में जानकारी दे दी थी. पिछले दो दिनों से पूरे स्नेहिल
भाव से सेवा-भावना के साथ तत्पर शोधार्थी मनोज इस यात्रा में हम लोगों के साथ
ऑनलाइन मोड में जुड़े रहे. 
कार को आरामदायक
स्थिति में चलाते हुए ड्राईवर रवि हम लोगों के गाइड भी बने रहे. दो-तीन दिनों से
हम लोगों के साथ नियमित रूप से बने रहने के कारण वो हमारे फोटोग्राफी के शौक को
समझ चुका था. ऐसे में रास्ते में कहीं कोई इस तरह की जगह आने को होती, जहाँ
फोटोग्राफी की जा सकती तो वो ‘फोटोग्राफर तैयार हो जाएँ’ को हँसते-मुस्कुराते कहकर
कार को सड़क किनारे रोक देता. वैसे तो पूरा रास्ता रोमांच से भरा हुआ था. तीव्र
मोड़, ऊँची चढ़ाई, गहरी घाटियाँ आदि एक तरफ अपनी ओर आकर्षित भी करतीं तो भीतर-भीतर
सिरहन भी पैदा कर देतीं. कुछ माह पूर्व बरसात के मौसम में हुए भूस्खलन का असर सड़क
पर जगह-जगह दिखाई दे रहा था. बादलों, हरियाली, जगह-जगह पहाड़ों से बहते पानी,
छोटे-छोटे से झरनेनुमा स्थानों से गुजरते हुए कार एक ढाबे जैसी जगह पर रुकी. कार रुकने
के पहले ही फोटोग्राफर को संकेत मिल चुका था और उस स्थान से काफी दूर पहले एक मोड़
से एक झरने को दिखाया भी जा चुका था. 
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| बिर्थी फॉल | 
कार से उतरते ही चाय की माँग के साथ कदम अपने आप आसमान से बहते झरने की तरफ बढ़ चले. बिर्थी फॉल के नाम से प्रसिद्ध यह जलप्रपात मुनस्यारी से टीस-चालीस किमी पहले पड़ता है. लगभग चार सौ फुट की ऊँचाई से गिरते पानी की बौछार से कैमरे को बचाते हुए झरने को कैद किया जा रहा था. सड़क किनारे बनी दुकान की छत पर बैठकर न केवल झरने को कैमरे में कैद किया बल्कि चाय की चुस्कियों के साथ हम मित्र भी कैमरे की कैद में आ गए. अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य की गोद से न चाहते हुए भी निकल कर कालामुनि पर्वत के रास्ते होते हुए मुनस्यारी की तरफ चल दिए.
कालामुनि पर्वत
के बारे में ड्राईवर ने बताया कि एक ही पहाड़ पर बीस से अधिक घुमाव बने हुए हैं और
सभी घुमाव पहाड़ के एक तरफ ही बने हुए हैं. रास्ते में जगह-जगह Hairpin Bends लिखे संकेतक दिल की धड़कन बढ़ा देते. रास्ते भर
बादल लुकाछिपी करते रहे और अंत में मुनस्यारी प्रवेश करने के ठीक पहले बरसने ही
लगे. मुनस्यारी में रुकने के लिए एक तरफ होटल तो बने ही हैं साथ ही स्थानीय निवासी
होम स्टे जैसी सुविधा भी बनाये हुए हैं. ड्राईवर की सलाह पर हम लोगों ने उसके एक
परिचित होम स्टे में रात्रि विश्राम का मन बनाया. वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते बारिश
अपने पूरे रंग में आ गई. अंतिम रूप से होम स्टे को सहमति देने के पहले कमरों की,
जगह की, सम्बंधित व्यक्तियों की स्थिति को जाँचना उचित लगा. बरफ से ढंके जिन
पर्वतों का चित्रण, वर्णन पिथौरागढ़ में लोगों ने कर रखा था, वे पर्वत आँखों के ठीक
सामने खड़े हुए थे. कमरों की दशा पर एक निगाह डालकर छत पर गरमागरम चाय के साथ बारिश
का, सामने खड़े पहाड़ों का रसास्वादन करने लगे. 
होम स्टे और
भोजन पर अपनी सहमति देने के बाद हम लोग बारिश का आनंद लेने के लिए कार से ही
मुनस्यारी के स्थानीय बाजार के लिए निकल लिए. सूर्यास्त की लालिमा के साथ रंग
बदलते आसमान, बादल, पर्वतों ने खुलकर हम लोगों का स्वागत किया. वहीं बने एक संग्रहालय
में स्थानीय कला, वस्तुओं आदि का नजारा लेते हुए शाम के रात में बदलने के पहले ही
हम लोग विश्राम के लिए वापस लौट आये. बारिश अभी भी अपना स्वरूप बनाये हुए थी तो एक
डर लगा कि अगली सुबह मुनस्यारी के उस सौन्दर्य के दर्शन हो भी सकेंगे जिसके बारे
में लोगों ने बहुत ही ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर बता रखा था. फिलहाल तो स्नान-ध्यान करके
गरम-गरम चाय के साथ अनथक गप्पों का सिलसिला फिर शुरू हुआ. कमरे की खिड़की से सामने
स्थित पंचाचूली की पाँच-पाँच पर्वत-श्रेणियाँ झाँकते हुए हम मित्रों की गपबाजी में
शामिल होने को लालायित थीं. 
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| शाम के समय पंचाचूली पर्वत श्रेणियाँ | 






 
खूबसूरत
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