हम सभी लगभग रोज
ही भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, उसके समाप्त होने की कामना भी करते हैं मगर भ्रष्टाचार है कि समाप्त होने
का नाम ही नहीं ले रहा है. यह विडम्बना ही है कि जिसके खात्मे के लिए लगातार
प्रयास हो रहे हैं वह बजाय समाप्त होने के और भी तेजी से बढ़ रहा है. आखिर ऐसी क्या
बात है कि समाज से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा पा रहा है?
बहुत ज्यादा
बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े
प्रयास करने के बजाय यदि एक छोटे रूप में इस तरफ काम करने का प्रयास किया जाये तो
शायद बात बने. कहने को तो बात बहुत अजीब लगे, बहुतों को तो
हास्यास्पद भी लग सकती है मगर यदि इसे वैज्ञानिक रूप से देखा जाये तो यह बात सत्य
हो सकती है. समाज से भ्रष्टाचार समाप्त होने के मात्र दो ही तरीके हैं. पहला तो यह
कि समाज में सभी लोग ईमानदार हो जाएँ, भ्रष्टाचार-रहित
व्यवहार करने लगें. दूसरा यह कि समाज के सभी लोग ही भ्रष्ट हो जाएँ, भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएँ. पहला कदम बहुत कठिन समझ आता है मगर दूसरा
कदम उठाया जाना सरल भले न हो पर सबके हाथ में है.
इस कदम में लोगों
को भले यहीं से हास्यास्पद स्थिति दिखाई पड़े मगर अंतिम सच यही है. इसे विज्ञान की
दृष्टि से देखने की जरूरत है. यदि दो बर्तन में, जो आपस में एक नली के द्वारा जुड़े
हुए हैं, कोई द्रव भरा
हुआ है. एक बर्तन में कम द्रव है, दूसरे में ज्यादा द्रव है.
ऐसे में जाहिर है कि जिस बर्तन में ज्यादा द्रव है, उससे कम
मात्रा वाले द्रव बर्तन की तरफ प्रवाह बनेगा. यह प्रवाह तब तक बना रहेगा जब तक कि
कम मात्रा में द्रव वाला बर्तन भर न जाये. जब दोनों बर्तनों में द्रव की समान
मात्रा हो जाएगी तो द्रव का प्रवाह रुक जायेगा. भ्रष्टाचार के मामले में भी ऐसा
होने की आवश्यकता है.
अभी हो ये रहा है
कि जो व्यक्ति भ्रष्ट है, वह अपनी कमाई को बढ़ाता जा रहा है. जिस मात्रा में उसकी आमदनी बढ़ रही है, उसी मात्रा में उसके खर्च नहीं हो रहे हैं. उस भ्रष्ट व्यक्ति को बहुत सी
जगहों पर बिना किसी भ्रष्टाचार के लाभ मिल रहा है. उदाहरण के लिए मान लीजिये कि
सब्जी मंडी में सभी सब्जी वाले सब्जी को सही दाम पर देने की बात करें मगर देने के
बदले हजारों रुपये रिश्वत के माँगें, ऑटो वाला, रिक्शे वाला
किसी सवारी को उचित किराये पर भले ले जाये मगर आवागमन हेतु हजारों रुपये रिश्वत
में माँगे, ऐसे अनेक उदाहरण हो सकते हैं. जब समाज में ऐसी स्थिति बन जाएगी कि
भ्रष्ट व्यक्ति को छोटे से छोटा काम करवाने में, बड़े से बड़ी
सहायता लेने में भ्रष्टाचार से कमाया रुपया गँवाना पड़ेगा तो संभव है कि भ्रष्टाचार
का प्रवाह रुके.
देखने, कहने में ये बात अतार्किक भले लगे
मगर इसे विज्ञान की दृष्टि से देखने, समझने की आवश्यकता है.
सोचियेगा, इस बारे में, यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला
कदम नहीं बल्कि उसके एकतरफा प्रवाह को रोकने का कदम समझ आएगा.
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