04 सितंबर 2022

मोना अंकल की यादें

कुछ रिश्ते किसी तरह के नामकरण से मुक्त दिल के करीब होते हैं, दिल से बने होते हैं. ऐसे ही रिश्ते की डोर से हम सबको बाँधे हुए थे हमारे मोना अंकल. जी हाँ, सामाजिक रूप में ‘मोना भाईसाहब के रूप में ख्याति प्राप्त श्री सुरेन्द्र सिंह जी को हम तीनों भाई मोना अंकल ही पुकारते रहे हैं. पिताजी से उनकी बहुत ज्यादा घनिष्टता रही और हमारे मामा लोगों को वे भाई की तरह मानते रहे. पिताजी से उम्र में बड़े होने के कारण मोना अंकल उनका नाम लेते थे और मामा जी से रिश्ता होने के कारण अम्मा जी को छोटी बहिन जैसा मानते हुए पैर छूते थे. ऐसे में बचपन में हम भाइयों के सामने बड़ी समस्या थी मोना अंकल को किस रिश्ते से पुकारा जाये. इसका भी समाधान करते हुए उन्होंने अंकल संबोधन को पास कर दिया, जिसमें ताऊजी और मामाजी दोनों शामिल थे. उनको अंकल भले पुकारते रहे मगर मोना अंकल की धर्मपत्नी ने मामी के अलावा कोई और संबोधन स्वीकार नहीं किया. मोना अंकल राजमाता श्रीमती विजयाराजे सिंधिया के छोटे भाई थे. हमारे परिवार का अत्यंत निकट का सम्बन्ध होने के कारण बचपन से ही घर आना-जाना हुआ करता था. जब कभी राजमाता का आना होता तो पिताजी के साथ हमारा भी यदाकदा जाना होता. वे बुआ कहलवाना पसंद करती थीं.




उनकी इंटरनेशनल ट्रैक्टर की एजेंसी हुआ करती. उसके और कभी-कभी अपनी जमीन आदि की कानूनी सलाह के लिए मोना अंकल का अक्सर घर आना हुआ करता था. उन दिनों वे विल्ली की जीप खुद चलाकर आया करते थे. वापस जाने पर हम भाइयों को जीप में बिठाकर दो-चार किमी का चक्कर लगवाना जैसे उनका नियम था. सिर पर गोल कैप, चेहरे पर मोहक मुस्कान उनकी पहचान हुआ करती थी. राजकीय इंटर कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान अपने मित्रों पर रोब गाँठने के चक्कर में हम उनको लेकर आये दिन कॉलेज के सामने बनी अंकल की ट्रैक्टर एजेंसी चले जाया करते थे.


जो स्नेह, दुलार, प्यार अंकल से, मामी से मिलता रहा वही स्नेह उस घर में भाइयों और भाभियों से मिलता है. ये किसी के लिए भी बहुत सौभाग्य की बात होती है कि तीन पीढ़ियों से किसी परिवार से स्नेह-सूत्र जुड़ा हुआ है. आज मोना अंकल के अनंत-यात्रा को प्रस्थान कर जाने की खबर मिली तो भीतर से बहुत कुछ समाप्त होता सा लगा. बहुत सारी बातें, उनकी सादगी, पिताजी पर उनका विश्वास, हम भाइयों पर उनका स्नेह आदि जाने कितना कुछ याद आया. कहा जाये तो अपने आपमें एक युग का अवसान हो गया आज. अब बस उनकी यादें शेष हैं, उन सुहाने दिनों की बातें शेष हैं.


अंकल को सादर नमन. 




 

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