11 मार्च 2022

उत्तर प्रदेश में भाजपा विजय

उत्तर प्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की शानदार चुनावी सफलता के अपने ही मायने हैं. यह जीत पार्टी के लिए ऐसे समय में एक तरह से संजीवनी का कार्य करने वाली है जबकि सरकार के विरुद्ध माहौल बनाया जा रहा हो. उक्त राज्यों के साथ-साथ गोवा में भी भारतीय जनता पार्टी आधे अंकों के साथ मजबूत स्थिति में है. इन सभी राज्यों में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण विजय उत्तर प्रदेश की स्वीकारी जा सकती है. प्रदेश सरकार की वर्तमान विजय वर्ष 2017  के विधानसभा के मुकाबले इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उस समय के मुकाबले एक सशक्त विपक्षी दल सपा सामने था. कोरोना महामारी, पुरानी पेंशन, किसान आन्दोलन, महंगाई, बेरोजगारी आदि जैसे मुद्दे खिलकर सामने थे. भाजपा के विरुद्ध, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल निर्माण किया जा रहा था.


इन सबके बाद भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की यह विजय न केवल आगामी पाँच वर्षों के लिए निष्कंटक सरकार का रास्ता साफ़ करती है बल्कि वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए भी एक सुरक्षित रास्ता बनाती नजर आती है. यह जीत इस दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि लगभग चालीस सालों बाद ऐसा हुआ है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार को दोबारा सरकार बनाने का अवसर मिला हो. उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत के पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू तो काम किया ही इसके अलावा, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हिंदुत्ववादी स्वरूप, अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर बाबा वाला कद और गरीबों को लाभ देने वाले अभिभावक जैसा परिजन रूप भी बड़ा कारण बना है.  




भारतीय जनता पार्टी की अपनी नीतियों, अपने निर्णयों के साथ-साथ विपक्षी दलों की नीतियों, बयानों, कार्यप्रणाली ने भी उसकी विजय की राह सहज की. वर्तमान चुनाव में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी को ही स्वीकारा जा रहा था. इसका एक कारण सरकार के खिलाफ एंटीइनकम्बेंसी फैक्टर तो माना जा रहा था, दूसरा कारण उनके प्रमुख नेता अखिलेश यादव द्वारा पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा करना भी माना जा रहा था. इसके बाद भी सपा उस तरह का प्रदर्शन नहीं कर सकी, जिस तरह का वातावरण उसके प्रति बनाया गया था.


इसमें भी किसी न किसी रूप में सपा ही जिम्मेवार है. वह अपनी चिर परिचित मुस्लिम-प्रेम वाली छवि को तोड़ नहीं सकी. एक तरफ भले ही भाजपा पर हिंदुत्ववादी छवि की मुहर लगी हो किन्तु वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में विजय पश्चात् केन्द्रीय सत्ता पर बैठने के बाद जिस तरह से भाजपा का दलित प्रेम, कोमल हिन्दूवादी चेहरा, सबका साथ सबका विकास जैसा एजेंडा सामने आया है, वह उसके पक्ष में सकारात्मक माहौल निर्मित करता है.


सपा द्वारा भाजपा के इस नरम हिंदुत्व के बरक्श कोई नया फ़ॉर्मूला खड़ा न किया जा सका. इस हिंदुत्व की काट उसके कट्टर मुस्लिम प्रेम से कतई नहीं हो सकती है. इसके साथ-साथ सपा ने बड़े से लेकर छोटे स्तर तक के नेताओं की बयानबाजियों ने भी भाजपा से छिटके निरपेक्ष हिन्दुओं को भाजपा की तरफ लाने में मदद की. 


सपा के इस फैक्टर के अलावा बहुजन समाज पार्टी का खुलकर सपा को हारने के लिए सामने आना भी भाजपा की विजय का एक आधार बना. केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों द्वारा दलित प्रेम भी खूब जमकर दिखाया गया. इस माहौल में सकारात्मकता का कार्य किया बसपा द्वारा सपा प्रत्याशियों को हराने के लिए भाजपा को वोट करने जैसी नीति का खुलकर प्रचार करना. इससे हुआ यह कि भाजपा को सवर्ण वोट, पिछड़ा वर्ग के वोट का जो भी नुकसान सपा की तरफ से हुआ, उससे ज्यादा लाभ बसपा के दलित वोट से हो गया.


सपा और बसपा की अपनी-अपनी राजनैतिक स्थिति के साथ-साथ भाजपा की अपनी नीतियों ने भी मतदाताओं में उसके प्रति विश्वास को बढ़ाया है. मुख्यमंत्री योगी की माफियाओं के विरुद्ध की जाने वाली अनेकानेक कार्यवाहियों ने उनको बुलडोजर बाबा का जो ख़िताब दिया, उसने लोगों के मन में कानून-व्यवस्था का सुधारात्मक रूप स्थापित किया.  अपराधियों पर अंकुश, महिलाओं के प्रति अपराधों में कमी, बेटियों की सुरक्षा आदि के कारण जनमानस में खुद के सुरक्षित होने का भाव जगा. यह किसी भी दल को सबसे आगे खड़ा करता है. इन स्थितियों में सोने पर सुहागा जैसी स्थिति को बनाने में वो लगभग पंद्रह करोड़ लाभार्थी भी नजरअंदाज नहीं किये जा सकते जिन्हें महीने में दो बार अनाज-तेल के साथ नमक भी दिया गया. किसी गरीब को नमक जैसी वस्तु की उपलब्धता बिना कीमत के हो जाये, यह उसके लिए बहुत बड़ी बात होती है. यह एक तरह का भावनात्मक कदम था, जिसने भाजपा को या कहें कि मोदी, योगी को प्रदेश के सबसे निचले तबके तक पहुँचा दिया, सके दिल में बसा दिया.


भाजपा की उत्तर प्रदेश में इस जीत ने राजनीति में समर्थन की, सहयोग की एक अलग तरह की कहानी लिखी है. संभव है कि आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा का बहुत बड़ा तबका विकास की राजनीति के नाम पर भाजपा के पक्ष में ही मतदान करने उतरे. इसके अलावा केंद्र सरकार के बक्से में छिपे समान नागरिक संहिता जैसे फैसले पर भी विचार करना लोकसभा की राह को मजबूत करेगा. भाजपा को लोकसभा के साथ-साथ राज्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होगी. जिस कानून व्यवस्था के द्वारा, जिस पिछड़े वर्ग के द्वारा, जिस लाभार्थी वर्ग के द्वारा उसको विजयश्री आसानी से प्राप्त हो गई, उन सबकी आशाओं को पूरा करना होगा.


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