परिवर्तन
प्रकृति का नियम है और कई बार इस परिवर्तन को मानवजन्य होने के कारण समय के बंधन
में होना पड़ता है. भारतीय शिक्षा नीति में कुछ इसी तरह के बंधन के कारण तीन दशकों
से अधिक समय बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति को वर्ष 2020 में पुनः लाया गया. प्राथमिक स्तर की
शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा क्षेत्र तक अनेकानेक परिवर्तनों के साथ नई राष्ट्रीय
शिक्षा नीति को देश के सामने रखा गया. वैश्विक स्तर पर लगातार प्रतिस्पर्धा के माहौल में भी यह आवश्यक
हो गया था कि शिक्षा के पुराने प्रचलित तरीकों और पाठ्यक्रमों में परिवर्तन किया
जाये. वैश्वीकरण के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए अनेक परिवर्तनों और
सुधारों को रखा गया है. शिक्षा क्षेत्र के समवर्ती सूची में शामिल होने के कारण राज्यों
की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. इन प्रावधानों को राज्य सरकारों के विवेकाधीन
रखते हुए उनसे सफल प्रतिपादन की उम्मीद की जा रही है.
शिक्षा
नीति में प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तथा शोध-अनुसन्धान क्षेत्र के लिए
अनेक प्रावधान किये गए हैं. प्राथमिक शिक्षा निश्चित ही किसी व्यक्ति को साक्षर
बनाने में महत्त्वपूर्ण है किन्तु व्यक्तित्व विकास, समाज विकास के लिए उच्च शिक्षा, शोधकार्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में
उच्च शिक्षा को विशेष रूप से महत्त्व देने के पीछे का उद्देश्य ज्ञानवान समाज और
सशक्त अर्थव्यवस्था निर्माण करना है. इसके लिए ज्ञान के सृजन और नवाचार को प्रमुखता
दी गई है. विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में गुणवत्तापरक शिक्षा के साथ-साथ
छात्रों के चरित्र-निर्माण, संवैधानिक विकास, नैतिक मूल्यों के विकास, सामाजिक विकास, बौद्धिक जिज्ञासा आदि को बढ़ावा देने हेतु कदम उठाये गए हैं. समिति द्वारा
उच्च शिक्षा का उद्देश्य ‘एक प्रबुद्ध, सामाजिक रूप से
जागरूक, ज्ञानवान और कौशलयुक्त राष्ट्र का निर्माण करना’
माना गया है.
शिक्षा
नीति में विश्वविद्यालयों में बहु-विषयक और अंतर-विषयक शिक्षा पर विशेष बल दिया
गया है. इसी कारण से कला, विज्ञान, वाणिज्य संकाय की शिक्षा को एकसाथ एक विद्यार्थी
के लिए लाया गया है. उच्च शिक्षा में इस बात पर सदैव ही चिंता व्यक्त की जाती रही
है कि यदि किसी विद्यार्थी को एक या दो वर्षों बाद किसी कारण से पढ़ाई बंद करनी
पड़ती है तो उसको उसके द्वारा ली गई शिक्षा का कोई लाभ नहीं मिलता है. इसको ध्यान
में रखते हुए शिक्षा नीति में प्रावधान किया गया कि विद्यार्थी जिस वर्ष में अपनी
पढ़ाई को अधूरा छोड़ता है, उसे उसी वर्ष के अनुरूप सम्बंधित
दस्तावेज प्रदान किया जाये. इस प्रकार की व्यवस्था का लाभ ऐसे विद्यार्थियों को मिलेगा
जो व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं विदेशी भाषाओं से
जुड़े हैं.
शिक्षा
क्षेत्र में सुधार लाने हेतु किये गए प्रावधानों में से यह एक उदाहरण मात्र है.
ऐसे अनेकानेक प्रावधानों में शिक्षा क्षेत्र में व्यय सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 4.4% प्रतिशत से
बढ़ाकर 6% प्रतिशत किये जाने का प्रस्ताव है. यह शिक्षा के
लिए ये एक क्रांतिकारी कदम होगा. वैश्विक स्तर पर कुल शोध प्रकाशनों के मामले में देश
का तीसरा स्थान है और कुल भागीदारी मात्र 5.31 प्रतिशत है. शिक्षा, अनुसंधान-विकास और नवाचार की चर्चा की जाये
तो उच्च शिक्षा संस्थानों ने नवाचार के सम्बन्ध में
बहुत अधिक कार्य नहीं किया है. ऐसे राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना से उम्मीद बनती है कि शिक्षा जगत को
मंत्रालयों और उद्योगों के साथ संयुक्त किया जा सकेगा तथा स्थानीय आवश्यकताओं के
लिये प्रासंगिक अनुसंधान का वित्तपोषण किया जा सकेगा. इसके साथ-साथ बहु-विषयक
विश्वविद्यालयों के निर्माण पर जोर, वर्तमान उच्च शिक्षा संस्थानों के विकास को
महत्त्व, उच्च शिक्षा संस्थानों का वित्तपोषण, उचित स्थान पर ध्यान केंद्रित करना,
बहु-विषयक शिक्षा प्रणाली और संस्थान विकसित करना आदि ऐसे बिंदु हैं जिनके द्वारा
उच्च शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मकता आने की सम्भावना है.
नई
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा शिक्षा प्रणाली को समग्र, लचीला,
बहु-विषयक और 21वीं सदी की आवश्यकताओं के
अनुरूप बनाने पर जोर दिया गया है. नीति की मंशा कई
मायनों में आदर्श प्रतीत होती है किन्तु उच्च शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त अनेक
चुनौतियाँ, समस्याएँ इसके प्रगति-पथ में अवरोधक का कार्य
करती दिखती हैं. बहुत सी व्यावहारिक परेशानियाँ हैं जो शिक्षा नीति के प्रावधानों
की सफलता में बाधक बनती दिख रही हैं. इनमें शिक्षा का महँगा होना प्रमुख है. उच्च
शिक्षा क्षेत्र में अनेक पाठ्यक्रम महँगे होने के कारण से निम्न आर्थिक वर्ग के विद्यार्थियों
की पहुँच में नहीं होते हैं. यह स्थिति और भी होती दिख रही है क्योंकि नई शिक्षा
नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रवेश का मार्ग खोल दिया गया है. विदेशी
विश्वविद्यालयों के आने से भारतीय शिक्षण व्यवस्था महँगी होने की आशंका है.
इसी तरह
विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में नियमति रूप से शिक्षकों की नियुक्ति न होना भी एक बहुत
बड़ी समस्या है. आज भी शिक्षण संस्थान संविदा, तदर्थ
नियुक्तियों के द्वारा अध्यापन कार्य करवा रहे हैं. इस अनियमित और अस्थायी
व्यवस्था के द्वारा शिक्षा नीति में व्यक्त भावी संभावनाओं को प्राप्त किया जाना
संभव नहीं लगता है. जिस तरह से शिक्षा नीति में बहु-विषयक,
बहु-संकाय व्यवस्था को लागू किया गया है, कौशल विकास विषयों,
सह-पाठ्यक्रम विषयों को शामिल किया गया है उनके संकाय शिक्षकों के न होने की बहुत
बड़ी समस्या सामने आ रही है. अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (2016–17) की
रिपोर्ट के अनुसार देश में सोलह हजार से अधिक महाविद्यालय ऐसे हैं जिनमें केवल एक
संकाय में ही पढ़ाई करवाई जाती है. ऐसे महाविद्यालयों में बहु-विषयक, बहु-संकाय पाठ्यक्रमों की सफलता संदिग्ध ही है.
नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन अध्ययन पर विशेष बल दिया गया
है. इस व्यवस्था का कारण संसाधनों का अभाव, शिक्षकों की कमी है. इस शिक्षा नीति में सरकार ने शत-प्रतिशत नामांकन
के लिए ऑनलाइन और पत्राचार के जरिए शिक्षा देने का विचार किया है. उच्च शैक्षिक
संस्थानों को इसके लिए इंगित किया जा रहा है कि उनके लिए सभी विषयों, संकायों की
स्थापना करना, उनके शिक्षकों की नियुक्ति करना आवश्यक नहीं.
संस्थान इसके लिए ऑनलाइन माध्यम का लाभ उठा सकते हैं. विद्यार्थियों को भी ऑनलाइन
माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. ऐसी स्थिति का
दूसरा पहलू भी है, देश के बहुत से भाग ऐसे हैं जहाँ इंटरनेट
और कंप्यूटर की सामान्य पहुँच भी नहीं बन सकी है. बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनके
लिए स्मार्ट मोबाइल फोन की उपलब्धता किसी दुस्वप्न की तरह है. जहाँ इंटरनेट, कंप्यूटर की पहुँच बनी भी है वहाँ पर नेटवर्क के उचित संचालन की समस्या
सामने आ रही है. ऐसे में ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा देने का विचार बहुत सकारात्मक
समझ नहीं आता है.
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के लिए एक क्रांतिकारी दस्तावेज़ है. इसके द्वारा
अनेक दूसरे मामलों के साथ-साथ शैक्षणिक और ढाँचागत संसाधनों सम्बन्धी समस्याओं के
समाधान का प्रयास किया जाना है. 21वीं सदी की वैश्विक माँग
को ध्यान में रखते हुए शिक्षा जगत को विकास-पथ पर ले जाने के लिए अनेक सकारात्मक
प्रावधान इस नीति में किये गए हैं. इन सबके बाद भी आशंकाओं को नजरअंदाज नहीं किया
जा सकता है. अनेक तरह की समस्याओं से निपटना भी एक चुनौती है. मूलभूत संसाधनों, आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ युवा शक्ति को सही दिशा में ले
जाने की कवायद भी सरकारों को करनी होगी. इसमें कोई दोराय नहीं कि नई शिक्षा नीति देश
का, शिक्षा व्यवस्था का कायापलट करने की क्षमता रखती है, बस शासन को, नागरिकों को इसकी गंभीरता और उद्देश्य को समझते हुए आपसी सहयोग और समन्वय
बनाते हुए समस्याओं के समाधान का रास्ता निकालना होगा.
.
भाईसाब संभावित समस्याओं का विश्लेषण बहुत ही सारगर्भित है।
जवाब देंहटाएं