प्रत्येक वर्ष ऐसा होता है कि उसमें दुःख भी
मिलते हैं और सुख भी मिलते हैं. ऐसा सभी के साथ ही होता है. सुख-दुःख का अपना ही
साथ है. शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा जो कह सकता होगा कि उसे किसी वर्ष में सिर्फ
और सिर्फ सुख ही मिला है. इसी तरह शायद ही कोई होगा जिसे किसी वर्ष में सिर्फ दुःख
ही दुःख मिले हों. सुख और दुःख के मिलने का अनुपात कुछ भी हो सकता है, उसकी तीव्रता कुछ भी हो सकती है.
इस वर्ष का आगमन बहुत ही बुरी खबर से हुआ. उस
खबर को बुरा ही नहीं कहा जायेगा बल्कि वह एक ऐसा ज़ख्म है जिसे आजीवन भरना नहीं है.
उस खबर के बाद से बहुत से पल ऐसे आये जिनके साथ कुछ न कुछ ख़ुशी जैसी स्थिति आई मगर
पूरे वर्ष भर की या कहें कि जीवन भर की खुशियों को उस एक बुरी खबर के बराबर भी खड़ा
नहीं कर सकते हैं. आखिर कैसे जीवन भर की ख़ुशी छोटे भाई की मृत्यु पर भारी बैठ जाएगी?
फ़िलहाल तो बस खुशियों को खोजा जा रहा है, कब तक खोजा जाता रहेगा पता नहीं. हाँ, कुछ छोटे-छोटे
कार्यों को करके, कुछ कार्यों में सहयोगी बनकर मन को बहला
लिया जा रहा है. कुछ यही कर रहे हैं प्रतिमाह नर नारायण सेवा में सहयोग देकर.
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