20 नवंबर 2021

संबंधों-रिश्तों का सच क्या है?

ज़िन्दगी बहुत ही छोटी होती है, इसे समझने की आवश्यकता है. बहुतायत में देखने को मिलता है कि समाज में लोग आपस में संबंधों का, रिश्तों का ख्याल नहीं करते हैं. उनके लिए संबंधों, रिश्तों का अर्थ महज किसी आयोजन में, शादी-ब्याह में मुलाकात से होता है, यदि बहुत कुछ तो चंद रुपयों की मदद को ऐसे लोग संबंधों-रिश्तों के रूप में परिभाषित करने लगते हैं. किसी ने यदि कहा है कि ज़िन्दगी चार दिन की है तो इस बारे में खोज करनी चाहिए कि क्यों किसी ने कहा कि ज़िन्दगी महज चार दिन की है? ऐसे कौन से बिंदु-तत्त्व उसके द्वारा खोजे गए कि ज़िन्दगी को महज चार दिन का माना गया?


इन चार दिनों के पीछे क्या अवधारणा रहो होगी, इसकी व्याख्या यहाँ नहीं करनी है. यहाँ हमारा मंतव्य महज इतना है कि इतनी सी छोटी ज़िन्दगी में भी आपस में तनाव, वैमनष्यता आखिर किसलिए. किसके लिए? यदि सभी लोग आपस में शांति, प्यार, स्नेह से अपना समय व्यतीत करने लगे तो संभव है कि आपसी तनाव दूर हो जाये. आखिर आपस में तनाव का कारण क्या है, कभी किसी ने इस पर विचार करने की कोशिश की है? यदि हम देखें तो हमारे आपसी तनाव की मूल वजह अपेक्षाओं का होना और उनका पूरा होना, न होना है. आखिर हम अपेक्षा किसलिए और क्यों रखते हैं? क्या इसलिए कि सामने वाला व्यक्ति हमारा परिचित है? क्या इसलिए कि सामने वाले को हम अपना सम्बन्धी मानते-समझते हैं? क्या इसलिए कि सामने अले से हमारा कोई रिश्ता है?


यदि यही है तो फिर समाज एक भयंकर ग़लतफ़हमी का शिकार है. आखिर संबंधों का, रिश्तों का बनाया जाना किसलिए होता है? क्या इसलिए कि हमारे काम सहजता से होते रहें? सोचियेगा इस पर. शायद जवाब मिले.


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  2. बेहतरीन आलेख ...
    बहुत कुछ सोचने समझने के लिए ...

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  3. बहुत ही सार्थक तत्वों की व्याख्या करता प्रेरक लेख।
    साधुवाद।

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  4. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक आलेख

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