03 नवंबर 2020

संघर्ष से मिलती ख़ुशी का नाम ज़िन्दगी

ऐसा कहा जाता है कि हमारे कार्यों के अनुसार ही हमें फल प्राप्त होता है. ऐसा भी कहा जाता है कि इस जन्म में व्यक्ति के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसमें बहुत कुछ पूर्व जन्म में किये गए कार्यों का प्रतिफल होता है. ऐसी बातों पर कभी विश्वास नहीं किया और न ही महत्त्व दिया. हमारा मानना है कि व्यक्ति को पूरी ईमानदारी के साथ कार्य करते रहना चाहिए. समाज के प्रति, परिवार के प्रति जो दायित्व हैं उनका निर्वहन करते रहना चाहिए. इस जन्म के कार्यों का प्रतिफल इसी जन्म में मिल जाता है और उसी को हम लोग सफलता या असफलता से जोड़कर देख सकते हैं. किसी जन्म में किये गए कार्यों का परिणाम भुगतने के लिए फिर जन्म लेना पड़े या कई जन्मों तक जीवन-मरण जैसी स्थिति से गुजरना पड़े तो फिर कार्यों का हिसाब समझ से परे है.


बहरहाल, आज किसी तरह की दार्शनिक स्थिति को सामने लाने का मन नहीं है और न ही विचार है. आए दिन हमारी दुर्घटना को लेकर जो बातें सामने आती रहतीं हैं उनके कारण उक्त विचार इसलिए मन में आते रहते हैं. इतनी बड़ी दुर्घटना, जबकि हम ट्रेन के नीचे ही चले गए थे, पटरियों पर गिर पड़े थे, ट्रेन ऊपर से गुजर रही थी, एक पैर स्टेशन पर ही कट कर अलग हो गया था, लगभग तीन घंटे के अन्तराल के बाद मेडिकल सुविधा मिल पाने के बाद, बहुत सारा खून बह जाने के बाद भी आज हम आप सभी के बीच हैं तो लगभग हर मिलने वाला कहता है कि ये पूर्वजन्म में, इस जन्म में किये गए अच्छे कार्यों का सुफल है. बहुत से लोगों का कहना है कि यह बड़ों के आशीर्वाद का प्रतिफल है, किसी का कहना होता है कि बेटी के भाग्य से, पत्नी के भाग्य से हमें फिर से जीवन मिला है.


ऐसी बहुत सी बातों को सुनने के बाद समझ नहीं आता है कि इस दुर्घटना के बाद अपने बच जाने को अपने अच्छे कार्यों का सुफल कहा जाए या फिर इसी दुर्घटना में एक पैर के कट जाने और दूसरे पैर के बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने को अपने बुरे कार्यों का प्रतिफल कहा जाए? बहुत कोशिश के बाद भी दिमाग से दुर्घटना जाती नहीं और जा भी नहीं सकती क्योंकि चौबीस घंटे ही, सोते-जागते अपनी शारीरिक स्थिति को देखते हैं. दुर्घटना के पहले के पल याद आते हैं, अब दुर्घटना के बाद की कष्टप्रद स्थिति दिखाई देती है. न भुला सकने वाली स्थिति के बाद भी खुद को इस मकड़जाल में फँसने नहीं देते हैं. कोशिश यही रहती है कि इस शारीरिक स्थिति को दरकिनार करते हुए अपने कार्यों को नियमित रूप से संचालित करते रहें.




एक पल को यदि मान लिया जाये कि अच्छे कार्यों के प्रतिफल में नया जीवन मिल गया है. लोगों के भाग्य और आशीर्वाद से ज़िन्दगी फिर हमारे साथ है मगर इसी के साथ लगता है कि इन अच्छे कार्यों के सापेक्ष बुरे काम भी बहुत सारे रहे होंगे? ऐसा विचार इसलिए भी आता है क्योंकि सुखद प्रतिफल में जीवन मिला तो दुखद प्रतिफल में बहुत सारा कष्ट मिला वो भी ज़िन्दगी भर के लिए. लगता कि यदि शारीरिक कष्ट के द्वारा ही प्रतिफल मिलना था तो इतना बुरा क्यों? पैर कटना ही नियति थी तो फिर वह घुटने के नीचे क्यों नहीं कटा? यदि घुटने के ऊपर कटना कार्यों का प्रतिफल है तो फिर दूसरे पैर को क्षतिग्रस्त क्यों? यदि ऐसा होना भी कार्यों का प्रतिफल है तो फिर उसमें बराबर दर्द का बने रहना क्यों? यदि यह भी बुरे कामों का परिणाम है तो फिर ये जीवन क्यों?


यही सवाल हैं जो हमें खुद में लड़ने की प्रेरणा देते हैं, खुद से लड़ने की शक्ति देते हैं. ऐसे ही बहुत सारे सवालों ने हमें बचपन से ही भाग्य, जन्मों के चक्र आदि पर विश्वास न करने की ताकत दी है. हो सकता है कि ऐसा कुछ होता हो मगर उसके ऊपर भी कर्म अधिक महत्त्वपूर्ण है. हमारा अपना मानना है कि ज़िन्दगी मिली है तो उसके साथ मिली अनिश्चितता के कारण अपेक्षित-अनपेक्षित परिणाम भी साथ में मिलेंगे. देखा जाये तो ज़िन्दगी किसी आयु का नाम नहीं बल्कि हर एक पल को जीने का अंदाज़ ही ज़िन्दगी है. यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह वर्तमान पल को गुजारते हैं, जाने वाले पल को किस तरह याद रखते हैं और आने वाले पल का किस तरह से स्वागत करते हैं.


ज़िन्दगी संघर्ष का नाम है तो उस संघर्ष के पलों से निकली ख़ुशी को, सफलता को स्वीकारने का, उसका आनंद लेने का नाम है. ज़िन्दगी यदि कष्टों को लेकर आती है तो अपने साथ खुशियों का खजाना भी छिपाए रहती है. जिस तरह प्रकृति में दिन और रात का समन्वय, संतुलन स्थापित है ठीक उसी तरह ज़िन्दगी में भी सुखों का, दुखों का क्रम है, उनका संतुलन है, समन्वय है. जो इस साम्य के साथ अपना संतुलन बिठा ले जाता है, उसके लिए ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद ही होती है.


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