14 अगस्त 2020

ग़लतफ़हमी और सम्बन्ध

एक ग़लतफ़हमी संबंधों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर देती है, इसे कई बार होते देखा था मगर ऐसा वर्षों पुराने संबंधों में भी हो जाता है, यह कभी नहीं सोचा था. दो-चार साल के संबंधों में या कहें कि अल्पकालिक संबंधों में ऐसा होना स्वाभाविक होता है. कुछ इस तरह की स्थिति व्यावसायिक संबंधों में भी बनती है. कई बार लोगों से संबंधों का होना कार्यक्षेत्र के कारण, एक जगह कार्य करने के कारण भी बन जाते हैं. ऐसे संबंधों में अक्सर खूब प्रगाढ़ता देखने को मिलती है और फिर मुलाकातों के दौर समाप्त होने पर ऐसे सम्बन्ध स्वतः सूखने लगते हैं. कई बार ऐसे सम्बन्ध समाप्त होने के पहले बहुत बुरी तरह से संबंधों को, रिश्तों को आहत कर जाते हैं.



कुछ सम्बन्ध ऐसे होते हैं जो क्षणिक तौर पर नहीं बनते हैं. वे व्यक्ति से व्यक्ति के सम्बन्ध के रूप में भी नहीं पहचाने जाते हैं. ऐसे कुछ संबंधों का आधार भी गहरा होता है. उनमें एक तरह का विश्वास होता है, आपसी समन्वय देखने को मिलता है. यदि समय की मार ऐसे संबंधों पर भी पड़े तो आश्चर्य की बात होती है. समझ नहीं आता की यदि आपस में विश्वास था तो फिर ग़लतफ़हमी ने घुसने की जगह कहाँ से बनाई और यदि ग़लतफ़हमी ही हो गई है तो फिर संबंधों में विश्वास जैसा क्या था? बहरहाल, संबंधों का आधार विश्वास ही होता है और यदि वहाँ भी ग़लतफ़हमी अपना स्थान बना ले तो स्पष्ट है कि वहाँ संबंधों में गहराई नहीं थी बल्कि एक तरह की औपचारिकता का निर्वहन किया जा रहा था.


ऐसे निर्वहन करने वाली औपचारिकता में सम्बन्ध मजबूत नहीं बन सकते. ऐसी ही जगह देखकर ग़लतफ़हमी पनप जाती है. यदि विश्वास का आधार होता है तो सहज रूप में गलतफहमी को दूर करने का प्रयास किया जाने लगता है. जहाँ विश्वास की कमी होती है वहीं आपस में ग़लतफ़हमी को दूर किये बिना आपस में मतभेद पैदा कर लिए जाते हैं और समय के साथ रिश्तों का, संबंधों का लोप करवा लिया जाता है. इस दौर में जबकि एक-एक व्यक्ति खुद में अकेला महसूस कर रहा है तब संबंधों में बिगाड़ होना, रिश्तों का टूटना व्यक्ति के खोखले होने का परिचायक बनता है. ऐसे में हम सबकी जिम्मेवारी होनी चाहिए कि अपने स्तर से संबंधों में, रिश्तों में गिरावट न आनें दें. यदि कोई ग़लतफ़हमी पनपने लगी है, विस्तार पा चुकी है तो उसको दूर करने के प्रयास करने चाहिए. ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी सम्बन्ध, रिश्ते को बनने में पर्याप्त समय लग जाता है मगर उसके नष्ट होने को बस एक पल ही बहुत होता है.


.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (16-08-2020) को    "सुधर गया परिवेश"   (चर्चा अंक-3795)     पर भी होगी। 
    --
    स्वतन्त्रता दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. विचार परक सार्थक लेख।
    जय हिन्द।

    जवाब देंहटाएं