12 जुलाई 2020

तन्हा, एकाकी समाज का आधार रखते हम नागरिक

क्या आने वाले दिनों में ऑनलाइन समारोह समाज की पहचान बनेंगे? क्या आने वाले दिनों में लोगों का विचार-विनिमय का माध्यम ऑनलाइन ही होगा? क्या आने वाले दिनों में हम सभी को अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों का ही उपयोग करना होगा? समाज जिस तरह से एकाकी रूप में बदलता जा रहा था क्या इस चीनी वायरस कोरोना के चलते इस व्यवस्था को सहज स्वीकृति मिल जाएगी? जी तरह से सभी लोग स्वार्थ में लिप्त होकर सिर्फ और सिर्फ खुद के लिए ही काम करने में लगे थे क्या भविष्य में इसी सोच को स्वीकार्यता मिल जाएगी?



ऐसे और भी बहुत से सवाल हैं जो विगत तीन महीनों में दिमाग में कौंधते रहे. पिछले दिनों एक कार्यालय में अत्यावश्यक कार्य से जाना हुआ. वहाँ एक अत्यंत वृद्ध व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक ऊँची एक सीढ़ी चढ़ने में दिक्कत हो रही थी. वे लगभग तीन-चार मिनट से प्रयास कर रहे होंगे, ऐसा उनकी हालत देखकर लग रहा था. उनके आसपास खड़े लगभग दस-पंद्रह लोगों में से किसी ने उनका हाथ पकड़ कर उनको ऊपर चढ़ाने में सहायता नहीं की. इत्तेफाक की बात कि उसी सीढ़ी से हमें भी चढ़ना था. अपने साथ-साथ एक हाथ से खुद को और एक से उन बुजुर्ग सज्जन को सहारा देकर ऊपर चढ़ाया. इस पर सबसे पहली टिप्पणी यही मिली कि अपने हाथ सेनेटाइज कर लीजिये, आपने इनको छू लिया है. समझ न आया कि आखिर हम किस तरह के पढ़े-लिखे समाज में पहुँचा दिए गए, एक वायरस के द्वारा?


कोरोना वायरस को समझना किसी राकेट साइंस का हिस्सा नहीं इसके बाद भी हम सभी जबरदस्त तरीके से एक-दूसरे को भ्रमित करने में लगे हैं. बहरहाल, आज कोरोना पर नहीं वरन उससे उपजी मानसिकता पर इतनी बात कहनी है कि इसने उन सभी स्वार्थी लोगों को मजबूत किया है जो कभी भी किसी की सहायता नहीं करते थे. वे अब कोरोना संक्रमण के नाम पर खुद को अलग किये हुए हैं. ऐसे लोग जो मदद के लिए आगे आते थे, उनको ऐसे लोगों ने कोरोना से सम्बंधित आँकड़ेबाजी में उलझाकर दूर कर दिया है. ऐसी स्थिति में बहुत कम लोग बचे हैं जो इस स्थिति में भी सहायता के लिए आगे आ रहे हैं. समझना होगा कि कोरोना आज नहीं तो कल चला ही जायेगा. भले ही समाप्त न हो मगर बहुत हद तक नियंत्रण में आ जायेगा मगर सोचना होगा कि हम आज इस दौर में किस तरह का भावी समाज निर्मित करने में लगे हैं?

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