08 मई 2020

भावनात्मक रूप से ख़ुशी के साथ निराशा भी हाथ आई

भावनात्मकता के कम, ज्यादा करने का कोई बटन होना चाहिए इस शरीर में. ये पोस्ट विशुद्ध रूप से हमसे ही सम्बद्ध है और वो भी हमारी संवेदना, हमारी भावना के कारण. जैसा कि आपमें से बहुत से लोगों को जानकारी होगी, हमारी पुस्तक कुछ सच्ची कुछ झूठी के प्रकाशित होने की. हमने वर्षों पहले एक सपना देखा था, आत्मकथा लिखने का. उसे साकार करने के बारे में पहले सोचा जब हम तीस साल के हुए फिर लगा कि नहीं, अभी जल्दी हो जायेगा, ऐसा कदम उठाना. इसके बाद चालीस वर्ष की उम्र में अपने ऊपर नियंत्रण नहीं कर सके और लिखने बैठ ही गए. लिखे और फिर उसे प्रकाशित करने का भी प्रयास किया. चूँकि यह हमारा ड्रीम प्रोजेक्ट था, ऐसे में इसे किसी भी कीमत पर छपवाना भी था. सो कीमत अदा करने के साथ छपवाया भी.


इस पुस्तक के द्वारा किसी भी तरह की प्रसिद्धि का, किसी भी तरह के व्यापार का, किसी भी तरह की प्रतिष्ठा का लोभ दिल-दिमाग में नहीं था, आज भी नहीं है. ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि ये विशुद्ध हमारी ही कहानी है. अपने लोगों के पास तक हम अपने इस रूप में पहुँचना चाहते थे. बहुत से अपने लोगों तक हम पहुँचे भी. बहुत से लोगों को नाराजगी भी रही कि उनके पास तक हमारा ये रूप स्वयं हमारे द्वारा नहीं पहुँचाया गया. इसकी हमारी कुछ सीमायें थीं. प्रकाशन सम्बन्धी सीमाओं की समाप्ति के बाद इस पर आगे विचार किया जायेगा. उक्त कई बिन्दुओं की लालसा, तृष्णा न होने के बाद भी एक अभिलाषा रही कि अपने लोग हमें बताएँ कि हम उन्हें अपने इस रूप में कितने अपने से लगे. इस लालसा को, लालच को कोई कुछ भी कह सकता है, यह उसका अधिकार, उसकी स्वतंत्रता है.



कुछ सच्ची कुछ झूठी के प्रकाशन ने एक तरफ ख़ुशी प्रदान की तो दूसरी तरफ निराशा भी. आखिर हमारे अपने उन लोगों से भी इसके बारे में दो शब्द भी नहीं निकले जिनसे अपेक्षा थी. आज भी है मगर अब शायद अपेक्षा का पौधा उतना हरा, महकता हुआ नहीं है जो इसके प्रकाशन के समय था. बहरहाल, सबकी अपनी-अपनी व्यस्तताएँ, अपनी-अपनी वरीयताएँ हैं. आज यह बात अपने एक मित्र से कुछ सच्ची कुछ झूठी की चर्चा के बाद उठी तो सोचा इसे व्यक्त ही कर दें. पीड़ा दिल-दिमाग में रखनी नहीं चाहिए. हम रखते भी नहीं.

सभी के आभार सहित क्षमा, यदि किसी को अन्यथा लगे.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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