चीनी
उत्पादों के जैसे इसकी तासीर न निकली. जैसे सारे चीनी उत्पाद सुबह से लेकर शाम तक
वाली स्थिति में रहते हैं ठीक उसी तरह से इस कोरोना वायरस को समझा गया था. हर बार
की तरह इस बार भी चीन को समझने में ग़लती हुई और कोरोना हम सबके गले पड़ गया. कोरोना
का इधर गले पड़ना हुआ उधर सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया. कहा जा रहा था कि इस आपदा में
भी अवसर तलाशने चाहिए. आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश करनी चाहिए. बस, इसे गाँठ
बांधते हुए बहुत से अति-उत्साही अवसर बनाने निकल आये. कुछ खाना बनाने में जुट गए
तो कुछ ने जलेबी बनाने में विशेषज्ञता हासिल कर ली.
इसके
साथ ही बहुतेरे लोग ऐसे थे जो स्वयंभू रूप में कोरोना योद्धा बने युद्ध करने में
लगे थे. इनका युद्ध किसी को नहीं दिख रहा था. जैसे युद्धनीति में एक कौशल छद्म
युद्ध की मानी जाती है, गुरिल्ला युद्ध तकनीक मानी जाती है, कुछ ऐसा ही ये योद्धा
कर रहे थे. बिना किसी की नजर में आये, बिना किसी को हवा लगने के ये युद्ध किये जा
रहे थे. अब चाहे जितना छद्म युद्ध लड़ लो, चाहे जितना गुरिल्ला युद्ध लड़ लो, चाहे
जितना छिपकर काम करो मगर तकनीक के आगे किसी की नहीं चलती. तकनीक से सारी गोपनीयता
उजागर हो जाती है. तो इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए बहुत से तकनीकबाजों ने पता
लगा ही लिया कि कौन-कौन कथित योद्धा है. बस, इस खोज को उनके द्वारा उजागर भी कर
दिया गया.
इन
तकनीकबाजों ने सभी को अपने-अपने स्तर से सम्मानित करना शुरू कर दिया. सम्मान भी
वैसा जैसे कि योद्धा थे. न योद्धा दिखाई दिए, न सम्मान करने वाले. लॉकडाउन में
योद्धा अपना काम करते रहे, सम्मान देने वाले अपना काम करते रहे. उन्होंने हवा में
कलाबाजियाँ दिखाईं तो इन्होंने भी कलाकारी दिखाई. इसी कलाकारी में कई कलाकार रह
गए. अब जो रह गए उनके प्रति भी समाज का कुछ कर्तव्य बनता है. उनके लिए भी कुछ
कलाकारी दिखाने की आवश्यकता तो है ही. यही विचार जैसे आया तो लगा कि ऐसे लोगों के
हौसले को टूटने नहीं देना है. आखिर बिना किसी को भनक लगे, बिना किसी काम के योद्धा
बन जाना सहज नहीं होता. तो ऐसी सहजता वालों को भी सामने लाने का दायित्व समाज का
है.
इस
तरह की बात मन में आई और एक योजना बना दी गई. रह गए अदृश्य योद्धाओं को सम्मानित
करने की पुनीत योजना का शुभारम्भ जल्द ही किया जाना है. इसमें योद्धाओं जैसे लोगों
को प्रमाण-पत्र, सम्मान-पत्र, सम्मानोपधियाँ
देने का अति-पुनीत कार्य किया जायेगा. अब समस्या यही कि ऐसे छिपे लोगों को खोजा
कैसे जाए क्योंकि तकनीकबाजों जैसी तकनीक यहाँ उपलब्ध नहीं. इसके लिए एक उपाय खोजा
गया. इस योजना को सोशल मीडिया पर डाला गया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सभी तरह के
योद्धा सोशल मीडिया पर उपस्थित हैं. सुस्त रूप में भी, सक्रिय रूप में भी. ऐसे में
जो स्वयंभू योद्धा किसी अन्य तकनीकबाज से सम्मानित न हो सके हैं, और यदि वे
सम्मानित होने के इच्छुक हैं तो ऐसे सुसुप्त जागरूक लोग अपना नाम, माता-पिता का नाम, जन्मतिथि (इसे वैकल्पिक व्यवस्था
में रखा गया है), पता हमें भेजें.
यहाँ विवरण भेजते समय
विशेष रूप से ध्यान रखें कि अपनी कार्य सम्बन्धी जानकारी का कोई विवरण नहीं भेजना
है. ऐसा करने पर आवेदन निरस्त माना जायेगा. कार्य विवरण की अपेक्षा इसलिए नहीं
क्योंकि इसे किसी गुप्त तकनीक की सहायता से खोद कर निकाल कर सामने लाया जायेगा.
अभी इच्छुक बस अपना सम्मान, प्रमाण, उपाधि प्राप्त करें. हाँ, किसी को यदि कोई विशेष उपाधि, सम्मान की मनोकामना है
तो उसे अवश्य बताएँ. सभी की मनोकामना पूर्ण
की जाएगी. ऐसा किये जाने के पूर्व छीछालेदर रस में सराबोर सम्मान आपको ससम्मान प्रदान
करने की शपथ ली जाती है. जिनको सम्मान, उपाधि प्रदान की जाएगी, उनसे भी अपेक्षा
रहेगी कि वे इस कोरोना काल में लॉकडाउन समय जैसा छीछालेदर रस सदैव बहते रहेंगे.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
ये तो कान के नीचे सीधे कनपट्टी पे टिका के मारा है आपने। बहुत ही गहरे उतर गए आप तो राजा साहब। हा हा हा
जवाब देंहटाएंगजब का आलेख
जवाब देंहटाएंकनपटी पर मारने की मंशा नहीं थी मगर धोखे से लग गया....
जवाब देंहटाएंहाहाहा हाहाहा
बहुत खूब तंज किया है आपने तो।
जवाब देंहटाएंबहुत से हक़दार निकल आएँगे इस सम्मान के ... सभी निठल्ले ही बैठे हैं ... बदनाम होंगे तो भी नाम तो होगा ... आण दे ...
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख
जवाब देंहटाएंमारक
जवाब देंहटाएंबहुत सही कटाक्ष.
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