13 अप्रैल 2020

दिव्यांगों का उपहास उड़ाते टिकटॉक वीडियो

विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द किये जाने के बाद भी समाज की मानसिकता में बदलाव क्यों नहीं आया? क्या दिव्यांगजन दया, रहम, भीख, लाचारी, करुणा, उपहास, मजाक, तिरस्कार आदि जैसे भाव के ही अधिकारी हैं? ऐसे संभवतः आप सबकी समझ में नहीं आएगा. यदि इसका मर्म समझना चाहते हैं तो पढ़िएगा इसे.


देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने पहले कार्यकाल में अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए विकलांग शब्द को परिवर्तित करते हुए इसे दिव्यांग बना दिया था. इसके पीछे उनकी सोच थी कि समाज में विकलांग शब्द से शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के प्रति जिस तरह की मानसिकता का निर्माण होता जा रहा है वह दूर होगा. दिव्यांग शब्द देने का उनका कारण इसके पीछे छिपी दिव्यता था. उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए जो कहा था उसका भावार्थ इतना था कि प्रकृति की तरफ से, ईश्वर की तरफ से यदि किसी अंग की कमी रखी जाती है, किसी अंग को कमजोर बनाया जाता है तो उसमें वह शक्ति अपनी दिव्यता भर देती है. इसी अप्रत्यक्ष दिव्यता के चलते उन्होंने विकलांग शब्द को दिव्यांग में परिवर्तित कर दिया था. उनके इस निर्णय के तुरंत बाद ही हमने लेखों, विचारों, टिप्पणियों के माध्यम से अपनी बात रखते हुए कहा भी था कि समाज की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है न कि शब्द बदलने की. इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री जी को एक पत्र भी लिखा था.


शब्द परिवर्तन का कदम स्वयं प्रधानमंत्री जी द्वारा उठाया गया था, ऐसे में सरकारी स्तर पर तुरत-फुरत कार्यवाही करते हुए सभी जगहों पर विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द कर दिया गया, चलन में ला दिया गया. मंत्रालयों, विभागों, सरकारी तथा गैर-सरकारी कार्यालयों में भी उसी के तुरंत बाद दिव्यांग शब्द चलन में आ गया. जैसा कि आशंका थी वही हुआ. दिव्यांग शब्द तो लिखत-पढ़त में कार्य करने लगा, कागजों में इसकी उपस्थिति दिखने लगी मगर समाज की सोच से, उसकी मानसिकता से यह दूर नहीं हो सका. लोगों के दिमाग में विकलांग शब्द बना ही रहा. इस शब्द के साथ इन लोगों के प्रति दया, रहम, भीख, लाचारी, करुणा, उपहास, मजाक, तिरस्कार आदि जैसे भाव भी चिपके रहे. ऐसा इसलिए क्योंकि आज सम्पूर्ण विश्व चीनी वायरस कोरोना की चपेट में आकर महामारी से जूझ रहा है. अपना देश भी इससे अछूता नहीं रह सका है. देश में महामारी बहुत बुरी तरह न फैले, कोरोना का संक्रमण व्यापक रूप से यहाँ के नागरिकों को प्रभावित न करे इसके लिए सरकार द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया है. इस लॉकडाउन को गंभीरता से लिया जाना चाहिए था, बहुत से लोगों द्वारा इसे गंभीरता से लिया जा रहा है. इस गंभीरता में भी बहुत से लोग मजाकिया, हास्य का संचार करते हुए वातावरण को हल्का करने का प्रयत्न कर रहे हैं. इसी प्रयत्न में कुछ असामाजिक लोग ऐसे भी हैं जो हास्य के द्वारा भी दिव्यांगजनों का मजाक उड़ाने से नहीं चूक रहे हैं.


ये असामाजिक तत्त्व टिकटॉक पर सार्वजनिक रुप से वीडियो बनाकर दिव्यांगो का उपहास करने में लगे हैं. ये वीडियो टिकटॉक पर बनाये जाने के बाद सोशल मीडिया वायरल किये जा रहे हैं. देश में एक तरफ कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन जैसी व्यवस्था लागू की गई है वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग अपने समय को व्यतीत करने के लिए दिव्यांगों का मजाक उड़ाने में लगे हुए हैं. इस तरह के वीडियो में स्पष्ट रूप से फिल्माया जा रहा है कि लॉकडाउन की स्थिति में बाहर निकला व्यक्ति (इसमें स्त्री, पुरुष दोनों दिखाए जा रहे हैं) पुलिस के हूटर की आवाज़ सुनते ही अपने आपको पुलिस से बचाने के लिए दिव्यांगजनों की तरह नकल उतारने लग जाता है. इस फिल्मांकन में बैकग्राउंड में जोरों से हँसने की आवाज़ भी स्पष्ट रूप से सुनाई देती है. यह कहीं न कहीं दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा, उपहास, मजाक का भाव है. उनके प्रति दया, लाचारी जैसा भाव भी है जो सन्देश देने की कोशिश करता है कि यदि इस लॉकडाउन जैसी गंभीर स्थिति में पुलिस की कार्यवाही से बचना है तो दिव्यांगजनों की तरह चलना, व्यवहार करना शुरू कर देना चाहिए.

टिकटॉक पर ऐसे वीडियो दिव्यांगो का उपहास करते हुए उनकी गरिमा को ठेस पहुँचा रहे हैं. यहाँ ध्यान रखना होगा कि भारत सरकार के एक अधिनियम के अंतर्गत दिव्यांगों के मजाक उड़ाने को, उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाने को कानूनी अपराध माना जाता है. टिकटॉक पर बनाये जा रहे वीडियो समाज की मानसिकता को ही उद्घाटित करते हैं. इन वीडियो का व्यापक रूप से वायरल होना सिद्ध करता है कि हमारा समाज विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द भले ही स्वीकार कर ले मगर उनके प्रति उपेक्षा, उपहास, लाचारी जैसा भाव दूर नहीं कर पा रहा है.  


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल ऐसा ही है , ये स्वस्थ मानसिकता का प्रतीक नहीं है बल्कि लोगों की उपहास करने की प्रवृत्ति स्वयं अपने किसी विकृत मनोवृत्ति का शिकार होने का प्रतीक है । आप दुनिया नहीं बदल सकते क्योंकि उद्दंड और बेशर्म लोगों का कोई इलाज नहीं है ।

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  2. रेखा जी की बातों से मै भी सहमत हूँ ,ये विचार ही गलत है ,न ही उन्हें सुधरना है ,सत्य को दर्शाती हुई ,आप मेरे ब्लॉग पर आए इसके लिए आपका धन्यवाद करती हूं ,

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  3. हो सकता है, लोगों ने ऐसा कुछ सोचकर नहीं बनाया हो, पर ऐसे वीडिओज़ से समाज को सन्देश तो गलत ही जा रहा है !

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  4. इन वीडियो का व्यापक रूप से वायरल होना सिद्ध करता है कि हमारा समाज विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द भले ही स्वीकार कर ले मगर उनके प्रति उपेक्षा, उपहास, लाचारी जैसा भाव दूर नहीं कर पा रहा है.
    जी बिल्कुल सही और सटीक लिखा आपने ...

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  5. हैं कुछ लोग ऐसे इस दुनिया में क्या कर सकतें है पागलों की कमी नही है इस जहां में एक ढूंढो हजार मिलते हैं मैं तो इस टिकटॉक के ही खिलाफ हूँ बंद होना चाहिए यह चाइनीज़ एप्प है।

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