इस
समय कोरोना वायरस का हौआ इस कदर छाया हुआ है कि यदि किसी के बगल में पहुँच कर
सामान्य सा खाँस दो या छींक दो तो अगला ऐसे देखेगा जैसे मौत को देख लिया हो. यदि
किसी को जरा सा मौसमी जुकाम भी हो गया तो तुरंत मेडिकल के चक्कर में पड़ जायेगा. संभव
है कि कोरोना एक भयंकर वाली बीमारी हो. इसके प्रभाव में आने वाले की जान पर बन आये
मगर क्या वाकई जीवन के लिए एकमात्र यही घातक बीमारी है? देखने में आ रहा है कि जब
से कोरोना के देश में चंद मामले सामने आये हैं, लोग मुँह पर मास्क लगाकर चलने लगे
हैं. अभी कुछ दिन पहले सरकार, शासन, प्रशासन अपनी दम लगाकर दो-पहिया वाहन चालकों
को हेलमेट के लाभ बता रहा था, उनको प्रेरित कर रहा था, बिना हेलमेट वालों पर
जुरमाना भी लगाया जा रहा था मगर क्या मजाल कि सबके कानों में जूँ रेंगी हो. कुछेक
लोगों को छोड़कर बाकी लोगों को हेलमेट टाँगे तो जरूर देखा मगर लगाये हुए न देखा. इधर
कोरोना के आने की खबर मात्र से बहुतायत लोगों के मुँह पर मास्क चिपक गए.
बीमारी
से बचाव अच्छी बात है. किसी भी समस्या के चक्कर में पड़ने के पहले ही यदि उससे
सुरक्षा कर ली जाए तो बेहतर होता है. इन सबके बीच ऐसे कई बिंदु दिमाग में आये जबकि
लगा कि अब हम सभी किस कदर नकली या कहें कि कृत्रिम जीवन जीते चले जा रहे हैं. दिन
भर किसी न किसी तरह से ऐसे काम में संलग्न रहेंगे जो पर्यावरण के हित में नहीं हैं
मगर एक बीमारी के काल्पनिक हमले से बचने के लिए मुँह पर मास्क लगा लेंगे. क्या कभी
इस पर विचार किया है कि कोरोना की आहट के पहले कितने लोग मास्क लगाकर घर से बाहर
निकलते थे? शायद इक्का-दुक्का लोग ही ऐसा करते होंगे. तब क्या किसी बीमारी का खतरा
नहीं था? क्या गाड़ियों से निकलने वाला धुँआ इन्सान के लिए किसी अमृत के समान है?
क्या वह मनुष्य के शरीर में नहीं जा रहा? क्या उसका खानपान ऐसा है कि उसके किसी
तरह की बीमारी न हो? क्या वह नैसर्गिक रूप से अपने आपको प्रकृति से जोड़कर चल रहा
है? क्या उसकी दिनचर्या ऐसी है जो उसके लिए लाभप्रद है?
बहुत
से लोग जो आज कोरोना के भय से मास्क लगाये घूम रहे हैं, इनमें से बहुतायत में ऐसे
लोग हैं जो दिन भर तम्बाकू का, गुटके का सेवन करते हैं. घड़ी-घड़ी इनके मुँह से
सिगरेट का धुँआ निकलता रहता है. असल में अब बहुतायत लोगों ने अपनी जीवन-शैली में
परिवर्तन कर दिया है. उनकी दिनचर्या भी अलग तरह की हो गई है. खानपान भी बदल गया
है. सेहत के नाम पर वे लोग सजग नहीं दिखाई देते हैं. यही कारण है कि आजकल बच्चे भी
मोटापे का शिकार हो रहे हैं. नजर कमजोर हो रही है. बौद्धिक विकास भी त्वरित गति से
नहीं हो रहा है. जरा सा परिश्रम करते ही साँस फूलने लगती है. कोरोना से बचाव का
कारण उनकी जागरूकता नहीं है वरन मौत से उनका भय है. ऐसी किसी भी बीमारी से, जिसका
कि इलाज संभव नहीं दिखता, व्यक्ति उसके प्रति जागरूक रहता है अन्यथा की स्थिति में
वह लापरवाही करता ही करता है.
आज
खेलकूद के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है. मैदान में न तो बच्चों की भीड़ दिखाई
देती है और न ही बड़े लोगों की. सैर के नाम पर चंद बुजुर्ग लोग दिख जाते हैं. पैदल
चलना जैसे आज तौहीन है, व्यक्तित्व पर दाग है. खुले में कुछ देर को बैठना, स्वच्छा
हवा में साँस लेना आज के लोग जैसे जानते ही नहीं हैं. चौबीस घंटे वातानुकूलित
वातावरण में रहने का आदी हो जाना, जंक फ़ूड की आदत लगा बैठना आदि नुकसान के सिवाय
कुछ और नहीं कर रहे हैं. ऐसे में बीमारियों का पनपना आम बात है. ऐसे में ध्यान
रखने की आवश्यकता है कि आज एक मास्क किसी को एकमात्र बीमारी से चंद पलों के लिए
सुरक्षित रख सकता है क्योंकि वह मास्क भी तो संक्रमित होगा ही, किसी न किसी तरह
से. उसे दोबारा उपयोग में लाने का अर्थ खुद को संक्रमित करना ही है. ऐसे में अपनी
दिनचर्या को नियमित किया जाये. व्यायाम की तरफ ध्यान दिया जाए. शारीरिक श्रम करने
की तरफ बढ़ा जाये. बच्चों को बजाय मोबाइल, कंप्यूटर के मैदान में खेलने को
प्रोत्साहित किया जाये. ऐसा करके जहाँ एक तरफ कोई व्यक्ति अपनी प्रतिरोधक क्षमता
को बढ़ा सकता है वहीं दूसरी तरफ खुद को अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित कर सकता है.
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