02 मार्च 2020

सम्पादक मुक्त स्वतंत्रता से खतरे में सोशल मीडिया

पिछले दिनों दिल्ली में हुई हिंसा ने दिल्ली को बेबस कर दिया. उसकी इस बेबसी में स्वतंत्र सोशल मीडिया अपनी तरह से चाल चलता दिखा. दिल्ली हिंसा के बेबसी भरे दौर में बहुतेरे लोग सोशल मीडिया की सम्पादक-मुक्त स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते भी दिखाई दिए. यह सही है कि सोशल मीडिया के द्वारा अपने भावों की, अपने विचारों को अभिव्यक्ति सहज रूप में होने लगी. सोशल मीडिया अपनी इसी स्वतंत्रता के कारण नागरिकों के बीच बहुत तेजी से लोकप्रिय हुआ. लगभग हर हाथ में मोबाइल होने और लगभग मुफ्त इंटरनेट सेवा मिलने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने आपमें एक मीडिया संस्थान जैसा काम करने लगा. इस विशिष्टता के चलते सोशल मीडिया में बहुतायत लोगों द्वारा वैचारिकी को भले ही प्रमुखता न दी गई हो किन्तु इसके द्वारा उन्होंने अपने आपको मुखर अवश्य ही बनाया है. अपने विचारों के प्रसारण के लिए किसी मंच की तलाश को समाप्त कर कोई भी व्यक्ति सहजता से अपनी बात को वैश्विक स्तर तक पहुँचा रहा है. उसके लिए अब न किसी संस्थान की जरूरत है, न किसी सम्पादक की मनमर्जी का सवाल है, न विचारों पर किसी तरह के प्रतिबंध का डर है. अब व्यक्ति पूरी स्वतन्त्रता के साथ अपने विचारों का प्रकटीकरण कर रहा है. उसके सामने किसी तरह का कोई अवरोधक नहीं है. 


वैचारिक स्वतन्त्रता के इस दौर में जहाँ किसी व्यक्ति को असीमित आसमान मिला है, वहीं निर्द्वन्द्व रूप से एक तरह का घातक हथियार भी उसके हाथ में लग गया है. अपनी वैचारिकी से अधिक अब वह अपनी उग्रता, अपने आक्रोश को प्रकट करने में लगा है. यह आक्रोश, उग्रता, घृणा आदि दिल्ली हिंसा के दौरान भी मनमाने ढंग से सामने आता रहा. चूँकि किसी भी पोस्ट, किसी विचार, किसी चित्र, किसी वीडियो के ऊपर कोई सम्पादकीय निगरानी नहीं थी, इसके चलते दिल्ली हिंसा से जोड़ते हुए अनेक पुरानी फोटो, वीडियो आदि को प्रसारित किया गया. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हिंसा से सम्बद्ध असल सूत्रों के साथ-साथ भ्रामक तत्त्व भी हवा में तैरने लगे. भ्रम, संशय की ऐसी स्थिति का सबसे अधिक लाभ अराजक तत्त्वों द्वारा उठाया जाता है. इसी बहाने अफवाहों का बाजार गर्म होने लगता है. इससे होता यह है कि शासन-प्रशासन असल मुद्दे से भटक कर इन्हीं अफवाहों, भ्रामक वैचारिकी पर सीमित हो जाते हैं. 

सोशल मीडिया पर मिली इस स्वतन्त्रता ने एक तरह की नकारात्मकता पैदा की है. स्वतन्त्रता के अतिउत्साह और सबसे पहले हम की मानसिकता के चलते लोगों ने ऐसी स्थिति भी बना दी जो किसी भी रूप में समाज-हित में नहीं कही जा सकती हैं. ऐसा नहीं कि सोशल मीडिया की इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग दिल्ली हिंसा के दौरान किया गया. इससे इतर भी इस मंच का दुरुपयोग किया गया. सरकार, शासन, प्रशासन, नागरिकों, धर्म आदि से सम्बन्धित जानकारी को सोशल मीडिया पर प्रकट करने का कार्य किया गया. सत्य सबसे पहले दिखाने की अंधी दौड़ में खबरों को तोड़मरोड़ कर विकृत, भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया गया. धर्म, जाति को आधार बनाकर अन्य दूसरे धर्मों, जातियों पर टिप्पणी करने का काम अब इस मंच पर बहुतायत में होता दिखता है. समाज के किसी भी वर्ग की स्थिति, उसकी क्षमताओं, जीवनशैली, कार्यक्षमताओं आदि को लेकर भी नकारात्मकता दर्शायी गई. धर्म, जाति, क्षेत्र आदि से सम्बंधित जानकारियों को लेकर अश्लील वीडियो, पोस्ट जबरदस्त तरीके से शेयर किये जाने लगे. भाषाई मर्यादा भूलकर आपस में अश्लील संवाद, अशालीन वार्तालाप, भद्दे वीडियो लगातार शेयर किये जाते हैं. 

सोशल मीडिया के तकनीकी मंच से सम्बन्ध होने के कारण उसमें संचालित प्रत्येक कदम को तकनीकी विकास की स्वतन्त्रता का मानक समझ लेना उचित नहीं है. कई बार असल जानकारी, सूचनाओं के अभाव में समाज में वैमनष्यता का खतरा पैदा हो जाता है. सोशल मीडिया पर ऐसी घटनाएँ काफी समय से हो रही हैं. ऐसे किसी भी घटनाक्रम पर, किसी भी पोस्ट पर जो किसी के स्वाभिमान के खिलाफ है, किसी के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करती है, किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाती हुई उसकी मान-मर्यादा को चोटिल करती है तो आम नागरिक को सचेत होने का परिचय देना चाहिए. 


खुद को सोशल मीडिया पर सबसे अधिक सक्रिय दिखाने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे लोग ही अफवाहों का बाजार गर्म करते हैं. आवश्यकता सजग रहने की है, सचेत रहने की है. तकनीकी रूप से सक्षम होने का अर्थ सोशल मीडिया में हस्तक्षेप बढ़ जाना नहीं है; तकनीकी ज्ञान का अर्थ किसी भी रूप में मोबाइल पर समूची दुनिया को कैद समझ लेना नहीं है वरन तकनीकी रूप से साक्षर होने का अर्थ है कि अपने आसपास होने वाले किसी भी घटनाक्रम के बारे में सही-सही जानकारी रखना. किसी भी अफवाह, घटनाक्रम के सामने आने टार उसकी सत्यता, उसकी प्रामाणिकता को पता करना. यदि ऐसा हम नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम सभी पढ़े-लिखे निरक्षर हैं. यदि हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम खुद को, अपने वर्तमान को, भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं. खुद को, परिवार को, समाज को, देश को खतरों से बचाने के लिए अफवाहों से बचने, उनके प्रचार-प्रसार से बचने, उनकी सत्यता प्रमाणित करने की आवश्यकता है. हमारी आज कि सजगता, सक्रियता आने वाले कल के लिए सुरक्षित, खुशनुमा वातावरण तैयार करेगी. 
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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