11 मार्च 2020

एकमात्र ध्येय सत्ता-सुख, कार्यकर्त्ता मरता हो तो मर जाए

ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना भले ही आश्चर्यचकित करने वाला न हो पर ऐसा कदम अवश्य है जिसने न केवल कांग्रेस के लोगों को बल्कि भाजपा के लोगों को उकसाने का काम किया है. ऐसा नहीं है कि किसी नेता के पार्टी छोड़ने सम्बन्धी ये कोई पहला मामला हो मगर इस मामले ने सबका ध्यान आकर्षित किया. तात्कालिक लाभ तो इस कदम का ये मिला कि सिंधिया जी को राज्यसभा से भाजपा ने टिकट दे दिया. अगले लाभ के रूप में संभव है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार हो जाये. पहले लाभ से सिंधिया समर्थकों को प्रसन्न होना चाहिए और दूसरा लाभ भाजपा समर्थकों को प्रसन्न होने का मौका देता है. इस प्रसन्नता के साथ-साथ बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, दोनों तरफ के लोगों को, खासतौर से निपट कार्यकर्त्ता समझे जाने वालों को. सिंधिया जी के इस कदम से आज भाजपाई भले ही खुश हों मगर वे याद करें जबकि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भाजपा छोड़कर गए थे. उन्होंने बयान दिया था कि वे भाजपा के ताबूत में आखिरी कील लगाने का काम करेंगे. वे कील तो न लगा पाए पर अपने पोर्टफोलियो में राज्यपाल पद जरूर लगा बैठे.

कुछ ऐसा ही काम सिंधिया जी करेंगे. आज पहला दिन है उनका, इसलिए अभी कील लगाने, उखाड़ फेंकने जैसा कोई बयान नहीं आया है. समय के साथ पता चलेगा कि उनके साथ निकले विधायकों की क्या स्थिति बनती है? उनको भी विधायकी छोड़ने का कोई लाभ मिलता है या बस श्रीमंत की ज़िन्दाबाद करनी पड़ेगी? नेता तो पार्टी से भागने का लाभ ले जाता है. ये बात भले ही कल्याण सिंह के साथ लागू न हो पाई हो क्योंकि वे किसी तरह का लाभ गैर-भाजपाइयों से नहीं ले सके थे. बाबरी ढाँचा ध्वस्त काण्ड के बाद कल्याण सिंह हीरो बनकर उभरे तो उन्हें लगा कि वे दल से बहुत ऊपर हैं. ऐसे में संभवतः वे अन्य दलों से अपने भागने को लेकर कोई चर्चा नहीं कर पाए होंगे. खैर, कल्याण सिंह वापस आए और उनके भाजपा समर्थकों ने राहत की साँस ली. इसी तरह एक काण्ड और हुआ उत्तर प्रदेश की राजनीति में जबकि हिन्दुओं को, हिन्दू देवी-देवताओं को अखंड गाली देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी सत्ता-हित में अपनाना पड़ा.

ऐसी स्थिति में जरा उस कार्यकर्त्ता के बारे में भी विचार जो निष्पक्ष भाव से पार्टी के साथ जुड़ा होता है. कल उसने कल्याण सिंह की जय बोली. फिर उनके निकलने पर उनके गाली देने का काम किया. उनकी वापसी के बाद फिर उनकी जय-जयकार करने लगा. इसी तरह स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर कार्यकर्ताओं में भयंकर झड़प हुईं. कई पर तो हरिजन एक्ट के तहत मुक़दमे लगे. फिर अचानक मौर्य साहब भाजपाई हो गए. अब, अब हरिजन एक्ट में मुकदमा लड़ने वाले अपने मुक़दमे लड़ रहे हैं, वकील से जूझ रहे हैं, फीस-जमानत का इंतजाम करने में लगे हैं और शेष कार्यकर्त्ता स्वामी प्रसाद ज़िन्दाबाद के नारे लगाने में गर्व महसूस कर रहे हैं. कुछ ऐसा ही आज से सिंधिया जी के लिए किया जायेगा. कल तक गद्दार सिंधिया परिवार आज अचानक से भाजपाई गोते लगाने के बाद खुद्दार हो गया. किसी भी दल का शीर्ष नेतृत्व इसे सहज रूप में लेता है. सिंधिया के इस कदम के तुरंत बाद ही उनकी मुलाकात सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी से हो जाए तो वे हँसकर मिलेंगे मगर कार्यकर्त्ता एक-दूसरे की हत्या करने की नीयत से मिलता है. आज की घटना के बाद यदि कल को सिंधिया जी को कांग्रेस में ही सत्ता-सुख दिखाई दिया तो वे वापसी भी मार सकते हैं. इस वापसी को घर वापसी कही जाएगी. (उरई के लोग अभी हाल में इस मौसम का आनंद उठा चुके हैं, नगर पालिका चुनाव में)


बहरहाल, जिस-जिस की नजर से ये पोस्ट निकले और यदि उनके सम्बन्ध किसी भी स्तर से राज्य के, राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व से हैं तो एक निवेदन है कि कम से कम ऐसे कदम उठाने के पहले अपने उस कार्यकर्त्ता के बारे में अवश्य विचार कर लिया करें जो आपके लिए, आपके दल के लिए जान देने की हद तक लगा रहता है. क्या आप शीर्ष के लोग बस जान लेना ही जानते हैं? 
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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