आज अभी-अभी बैठे-बिठाए हिन्दी
फिल्म छिछोरे देखने को मिली. पूरी फिल्म तो नहीं बस अंत की लगभग बीस-पच्चीस मिनट
की. इस फिल्म के बारे में सुन रखा था कि हॉस्टल लाइफ के बारे में है, कॉलेज की
कहानी है मगर कभी देखने की न तो इच्छा हुई और न ही देखने का मौका लगा. ऐसा इसलिए
क्योंकि हमने खुद जिस तरह की बिंदास और मौज-मस्ती भरी, अल्हड़, बेख़ौफ़, बेफिक्री
वाली हॉस्टल लाइफ अपने मित्रों के साथ गुजारी है उसके आगे फ़िल्मी कथानक कई बार
फुस्स साबित हो जाता है. इस छिछोरे के अंत को देखकर लगा कि इसमें सिर्फ हॉस्टल की
अथवा कॉलेज की कहानी नहीं रही है वरन दोस्तों की आपसी समरसता की, समन्वय की,
सामंजस्य की, सहयोग की भी कहानी रही है. इस फिल्म का जितना अंत देखा उसमें उन
पुराने मित्रों का एकसाथ रहना, एक-दूसरे के लिए तत्पर खड़े होना समझ आया. उसी के
साथ कुछ थोड़ी सी कहानी फ्लैशबैक में चलने पर भी उनका विजय के लिए संघर्ष, लूजर से
विनर बनने का किस्सा, एक-दूसरे के लिए जी-जान लगा देने वाली बात दिखाई दी.
दोस्ती एक महसूस किया जाने
वाला ही नहीं वरन उसे पूरी तरह से निभाए जाने वाला एहसास है. किसी भी व्यक्ति के
लिए सबसे मजबूत पक्ष उसके दोस्त, उसकी दोस्ती होती है. इस पक्ष की हमें व्यक्तिगत
रूप से कभी कमी नहीं रही है. ऐसा नहीं कि सभी दोस्त पूरी तरह से निस्वार्थ भावना
के मिले. कुछ लोग तो मित्रता के नाम पर लगातार संपर्क में रहे मगर मित्रभाव रहित
रहे. समय के साथ उन्होंने अपना चोला बदला और वे वापस सिर्फ एक परिचित की भांति ही
नजर आने लगे. बहरहाल, ऐसे लोगों की चर्चा का यहाँ कोई अर्थ भी नहीं और न ही ऐसे
लोगों का यहाँ कोई सन्दर्भ. जीवन के विभिन्न पड़ावों से गुजरते रहने के दौरान
विभिन्न मित्र हमारे साथ जुड़ते रहे. ये वाकई ऐसे मित्र हैं जो आज भी हमारे साथ
हैं. ये और बात है कि समय के चलते हमारे बीच स्थानिक दूरी बनी हुई हो मगर आत्मिक
दूरी कतई नहीं है. इस फिल्म में दोस्ती वाली गंभीर भावना को देखकर लगा कि यदि किसी
व्यक्ति के साथ, व्यक्ति के पास दोस्तों का साथ है, सच्ची दोस्ती का साथ है तो वह
कभी अकेले नहीं हो सकता है. उसके अकेले रहने या कहें कि उसके अकेले रहने की चाह
रखने को उसके दोस्त समाप्त कर देंगे. किसी संकट के समय, मुसीबत में, आपदा में यही
मित्र संबल बनते हैं, आत्मविश्वास बढ़ाते हैं, आत्मबल में वृद्धि करते हैं.
जिस गंभीरता से, जिस सहयोग की
भावना से, जिस निस्वार्थ भाव से हमारे बहुत से सच्चे दोस्त हमारे साथ आज भी हैं,
आज भी हमारी एक आवाज़ पर अपनी पूरी तत्परता से साथ खड़े दिखाई देते हैं वह निस्संदेह
गर्व करने योग्य है. कुछ मित्र तो बचपन से अभी तक साथ हैं. ‘लंगोटिया मित्रों ने
भले ही लंगोट बदल ली हों मगर दोस्ती को न बदला, दोस्त को न छोड़ा’ ऐसा हम अक्सर
हँसी-मजाक में अपने दोस्तों का परिचय करवाते समय गर्व से कह देते हैं. कोशिश हमारी
तरफ से भी यही रहती है कि हमारा कोई दोस्त जब हमारी अनुपस्थिति में हमारी बात करे
तो उसे गर्व की अनुभूति हो. कोशिश यही रहती है कि जिसे हम अपना दोस्त मानते हैं
उसे किसी बुरे वक्त का शिकार ही न होने दें. प्रयास यही रहता है कि हमारा कोई
दोस्त हमारे रहते अकेला महसूस न करे.
ऐसा सिर्फ हमारा ही नहीं वरन
हम सभी का प्रयास होना चाहिए कि हम सभी आपस में मित्रभाव का सम्मान करें. जिन्हें
अपना दोस्त मानते हैं, जो हमें अपना दोस्त मानते हैं उनके साथ पूर्ण समर्पण और
ईमानदारी से जुड़ें. दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है जो बिना किसी रक्त-सम्बन्ध के,
बिना किसी नाम के, बिना किसी मतलब के सालों-साल, आजीवन आगे बढ़ता है. समय के साथ
यही रिश्ता प्रगाढ़ होता जाता है. मित्रता की पूँजी अनमोल है और हमें गर्व है कि
हमारे खजाने में अनमोल नगीने बराबर बने हुए हैं. और चाहते हैं कि अपने दोस्तों के
खजाने में हम भी एक नगीना बने रहें.
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