जब जिम्मेवारी
सिर पर आती है तब समझ आता है कि जीवन की असलियत क्या है. यह किसी एक के साथ नहीं
बल्कि हर उस व्यक्ति के साथ की स्थिति है जो अपनी जिम्मेवारी के प्रति सचेत है.
जिम्मेवारी कोई कपोल-कल्पना नहीं, कोई ऐसी स्थिति नहीं जो व्यक्ति के पास सहज रूप
में आ जाती है. जिम्मेवारी लेने की चाह भले ही लोगों के मन में रहती हो मगर
जिम्मेवारी लेने के लिए आगे आने वाले बहुत कम ही होते हैं. ऐसा देखने में आता है
कि समाज में ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जिन्होंने जिम्मेवारी को खुद ही आगे बढ़कर
स्वीकार किया है. अक्सर लोगों के सिर पर जिम्मेवारियों का बोझ आ जाता है. जीवन के
तमाम सारे कार्यो के निर्वहन में जिम्मेवारी ही एकमात्र ऐसी स्थिति है जिसके उठाने
भर से व्यक्ति को जीवन की वास्तविकता का भान हो जाता है. असल में जिम्मेवारी महज
एक स्थिति नहीं वरन अपने आपमें एक सम्पूर्ण जीवन है. किसी भी व्यक्ति के लिए एक
जीवन में एक और जीवन का निर्वहन न केवल चुनौती होता है वरन मुश्किल भी होता है.
किसी भी
तरह की जिम्मेवारी के निर्वहन के लिए उससे सम्बंधित कार्यों का पूर्ण करवा लेना ही
महत्त्वपूर्ण नहीं होता है वरन उस जिम्मेवारी से सम्बंधित सभी पक्षों की संतुष्टि,
संतोष का ध्यान रखना भी महत्त्वपूर्ण होता है. जिम्मेवारी चाहे पारिवारिक रूप में
हो या फिर किसी अन्य संस्था के रूप में, उसके मुखिया की यह जिम्मेवारी होती है कि
वह उसकी जिम्मेवारी में आने वाले सभी सदस्यों की संतुष्टि का ख्याल रखे. यदि कोई
व्यक्ति ऐसा कर पाने में सफल रहता है तो ऐसा माना जा सकता है कि वह अपनी
जिम्मेवारियों के प्रति सकारात्मक भाव रख रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि आज के समय में
ऐसा बहुत कम हो रहा है जबकि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य दूसरे व्यक्ति के कार्यों,
उसके प्रयासों से संतुष्ट हो. भले ही ऐसा पारिवारिक स्थितियों में हो रहा हो या
फिर अन्य किसी संस्थानिक स्थितियों में. ऐसे में उन लोगों को जो किसी भी व्यक्ति
की जिम्मेवारी में अपने कार्यों का संपादन कर रहे हैं, उन्हें उसके प्रति
सकारात्मक भाव रखने की आवश्यकता है.
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