सत्यपाल,
तुम्हारे और हमारे बीच क्या रिश्ता था? न सगे सम्बन्धी, न कोई रिश्तेदारी. जब पहली
बार मिले 1991 में उससे पहले से भी कोई परिचय नहीं. मिलने के बाद भी बहुत लम्बा समय साथ
नहीं गुजरा. मात्र दो साल साथ बीते, वे भी बहुत आत्मीयता से नहीं, बहुत अंतरंगता
से नहीं. एक भाव था हमारे-तुम्हारे मिलने में. एक बड़े-छोटे का लिहाज, एक
जूनियर-सीनियर की अप्रत्यक्ष सी दीवार का. उस दीवार का जिसे हम हॉस्टल वाले भाइयों
के कभी का गिरा दिया था. उस दीवार के गिरने के बाद हॉस्टल में बस एक ही रिश्ता रह
गया था भाई का. वो चाहे कुछ दिन रहा हो या बहुत दिन मगर जितने दिन रहा तो भाई
बनकर. तो क्या हम दोनों भाई वाले रिश्ते से साथ जुड़े थे? ये सवाल आज भी कौंधा
हमारे मन में जब तुम इस निस्सार संसार को छोड़कर जा चुके थे. ये सवाल बार-बार कौंधा
मन में जबसे तुम्हारे सबको छोड़ कर जाने की खबर सुनी. क्या बस भाई का रिश्ता था हम
दोनों के बीच? ऐसा इसलिए कि जबसे तुम्हारे बारे में सुना, तबसे यही सोचने में लगे
कि तुमसे इस अवस्था में भी मिलने की आतुरता क्यों? तुमको क्यों इस अंतिम अवस्था
में देख लेने की कामना क्यों? क्यों विचार आया बार-बार मन में कि तुम्हें तो
पंचतत्त्व में विलीन हो जाना ही है फिर क्यों इतनी आकुलता तुम्हारे अंतिम दर्शन कर
लेने की? क्यों? ये समझ न सके, समझ भी नहीं पा रहे.
जितना
समझने की कोशिश की, उतनी बार ही असफल रहे. हॉस्टल में तो हम लोग महज दो साल के लिए
मिले. वे भी बहुत अंतरंगता से नहीं मिले. बहुत आत्मीयता से नहीं मिले. यकीन मानो
उन दो सालों की एक-दो बातों को छोड़ कोई बातें याद नहीं कि हम दोनों ने बहुत आत्मीय
पल एकसाथ गुजारे हों. फिर क्यों ऐसी आकुलता तुमको देखने की? क्यों ऐसी आकांक्षा
तुमसे अंतिम बार कुछ बात कहने की? विचार करते हैं कई बार तो लगता है कि हॉस्टल में
तो बहुत लोग रहने को आये, बहुत से लोग रहे और चले गए. बहुत से लोगों ने हॉस्टल को बस एक
तरह का धर्मशाला समझ लिया था. हम-तुम जैसे बहुत से भाई ऐसे रहे जिन्होंने हॉस्टल
को एक घर माना और एक घर में रहने वाले आत्मा से, दिल से जुड़े होते हैं, किसी
रिश्ते से नहीं. बहुत से भाई ऐसे हैं जिनका और हमारा कोई साथ न हुआ हॉस्टल में,
कभी देखा भी नहीं एक-दूसरे को मगर वे किसी भी छोटे भाई से ज्यादा अपने लगते हैं.
बहुत बार
लगता है कि यही हॉस्टल के पानी का कमाल है कि न जाने कितने अनजान भाइयों को एक
धागे में बाँध दिया है. अलग-अलग माताओं की कोख से जन्मने के बाद भी लगता है कि
सबकी गर्भनाल एक ही है. सब इसी एक गर्भनाल से आपस में जुड़े हुए हैं. इसी का असर है
कि आज सबकी आँखों में आँसू हैं. कोई काले चश्मे की आड़ में छिपा रहा है, कोई किसी
साफी के द्वारा पोंछ रहा है, कोई बातचीत में नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहा है.
मात्र दो सालों का सम्बन्ध ऐसा नहीं होता, वो भी तब जबकि हॉस्टल छोड़ने के बाद
दशकों तक कोई मुलाकात न हो. इसका मतलब है कि कोई अप्रत्यक्ष गर्भनाल हम सबके बीच जुड़ी
हुई है, न सही जन्म देने वाली माँ की वरन कर्मक्षेत्र वाली माँ की. सत्यपाल, सुन
लो, तुम किसी भी रूप में हो, कहीं ही हो.... तुमको अपने से अलग न होने देंगे.
मोक्ष मिलेगा या नहीं ये भविष्य की बात है मगर हॉस्टल वाले भाई हर कदम पर मिलेंगे,
ये विश्वास रखना. तुम अपने को अकेले न समझना इस राह पर, हम सब हॉस्टल वाले भाई हैं
तुम्हारे साथ. हॉस्टल का कोई भी भाई तब भी अकेला न था, आज भी अकेला नहीं है, कल भी
अकेला न रहेगा.
Sahi kaha bhaisab
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