04 फ़रवरी 2019

भावनाओं को व्यक्त करना आवश्यक है


भावनाओं को समझना सबके वश की बात नहीं होती है. कल शाम एक दूकान पर चाय पीने रुक गए मित्रों के जबरदस्त आग्रह पर. ऐसा बहुत कम होता है जबकि हम उरई में किसी दूकान पर रुक कर वहाँ के उत्पादों का स्वाद लें. कुछ मित्र ऐसे हैं जिनके स्नेहिल आदेश को नकारा नहीं जा सकता है. सो रुक गए, उस चाय की दूकान पर. चाय आने से पहले ही एक बुजुर्ग का आना हुआ. उसने भी चाय पीने के साथ-साथ कुछ खाने की मंशा जाहिर की. उसके मुँह से किसी तरह की आवाज़ नहीं निकल रही थी. एक-दो बार में समझ ही नहीं आया कि वह कुछ माँग रहा है या फिर खाने के लिए कुछ कह रहा है. दो-चार बार उससे पुछा तब उसके हावभाव से समझ आया कि वह कुछ खाने के लिए कह रहा है. चाय वाले से कहा तो उसने उसे भी चाय के साथ कुछ खाने के लिए दे दिया. उस समय लगा कि ये स्थिति तो वह है जबकि हम मित्रों ने उसकी बात समझने की कोशिश की और उसे उसके मन की चीज दिलवा दी. समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनकी भावनाओं को लोग समझते ही नहीं या कहें कि कई बार ऐसे लोग अपने मन की बात सामने वाले को समझा भी नहीं पाते. ऐसी स्थिति के चलते कई बार बनती-बनती बात बिगड़ जाती है. 

यहाँ समझा जा सकता है कि वह बूर्ग व्यक्ति कुछ सहायता माँग रहा है, जिसके चलते उसके स्वर में, उसके निवेदन में एक तरह की झिझक रही होगी किन्तु कई बार हम ऐसी जगह पर भी भावनाओं का इजहार करने में संकोच दिखाते हैं जहाँ संबंधों में किसी तरह की औपचारिकता नहीं होती है. ऐसा करना गलत ही होता है. यह कहीं न कहीं संबंधों के विस्तार में बाधक बनता है. हम सभी को एक बात विशेष रूप से ध्यान देनी चाहिए कि अपनी भावनाओं के प्रकट करने में किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए. संबंधों को बताना संबंधों का, रिश्तों का ही विस्तार होता है.

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