24 फ़रवरी 2019

सफाईकर्मियों के पैर धोकर प्रधानसेवक ने किया वंदन


संभव है कि बहुतों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कुम्भ सफाई कर्मियों के पैरों का धोना एक नाटकीय उपक्रम बताया जाये. ऐसा इसलिए क्योंकि विगत लगभग पाँच वर्षों में उन्होंने कोई भी ऐसा कदम उठाया, जिससे उनके विरोधियों को मुँह की खानी पड़ी हो तो उसको नौटंकी, घटिया राजनीति, चुनावी कदम बताया जाने लगा है. ऐसा उनके संसद में पहुँचने के ठीक पहले दिन से हो रहा है, जिस दिन उन्होंने संसद में प्रवेश के पहले अपना शीश झुकाया था. इसके पश्चात् अपने दल के सांसदों के बीच अपने पहले संबोधन में किसी बात को याद करते हुए उनकी आँखों के छलकने, आँसू आ जाने को भी सिर्फ नौटंकी बताया गया था. बाद में तो उनके ऐसे बहुत से कामों को विशुद्ध राजनीतिक कदम साबित करने की कोशिश की गई. स्वच्छ भारत अभियान, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान योजना, अटल पेंशन योजना, नमामि गंगे आदि को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है. बहरहाल, इससे अलग हटते हुए मोदी जी के आज के कदम की प्रशंसा करनी चाहिए. इसके पीछे वर्तमान कुम्भ में चल रहे सफाई प्रयासों की चारों तरफ तारीफ़ हो रही है.


ऐसा नहीं है कि इससे पहले प्रयागराज में कुम्भ आयोजन के समय सफाई से सम्बंधित कार्य नहीं होते थे मगर इस बार जिस तरह से सम्पूर्ण क्षेत्र को स्वच्छता अभियान के दायरे में लाते हुए न केवल मैदानी हिस्से को वरन जलीय भागों, घाटों को जिस तरह से साफ़ रखा जा रहा है उससे स्नान करने वाले श्रद्धालुओं में ख़ुशी की लहर दिखाई दे रही है. नदी में स्नान करने के दौरान श्रद्धा-भक्ति से परिपूर्ण श्रद्धालुओं द्वारा पुष्प सहित अन्य सामग्री प्रवाहित की जाती है. कुम्भ अधिकारियों द्वारा किसी भी श्रद्धालु को इससे रोका या वंचित नहीं किया जा रहा है वरन अपने स्तर से उसकी सफाई की योजना बना रखी है. श्रद्धालुओं के ऐसी कोई भी सामग्री प्रवाहित करने के तुरंत बाद वहाँ तैनात सफाईकर्मी जाल डाल कर उस सामग्री को बाहर निकाल लेते हैं. यह कदम जहाँ एक तरह श्रद्धालुओं को उनके भक्ति-भाव से वंचित नहीं कर रहा है वहीं दूसरी तरफ संगम सहित दोनों नदियों की सफाई के प्रति भी सम्बंधित पक्ष की जिम्मेवारी दर्शा रहा है. इसके अलावा शौचालयों की सफाई, कुम्भ परिसर की सफाई, स्नान के बाद घाटों के किनारे पर पड़ी पुआल आदि सहित महिलाओं के वस्त्र बदलने सम्बन्धी स्थलों की सफाई के प्रति भी सजगता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है. 

देश के प्रधानमंत्री द्वारा कुम्भ के सफाईकर्मियों के पैरों की सफाई एक सांकेतिक कार्य है जो स्पष्ट सन्देश देता है कि समाज में जिन सफाईकर्मियों को देखते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं, खुद को उनसे बचाने का काम करने लगते हैं उनको यह समझने की आवश्यकता है कि वे भी एक इन्सान हैं जो हमारे द्वारा फैलाई गन्दगी को साफ़ करने का कार्य करते हैं. यकीनन मोदी जी का यह कदम उन सभी सफाईकर्मियों को प्रोत्साहित करेगा जो कुम्भ में कार्य कर रहे हैं. इसके अलावा उन सफाईकर्मियों में भी गौरव की अनुभूति पैदा करेगा जो देश के किसी भी हिस्से में समाज के लिए सफाई लाने का काम कर रहे हैं. भव्य कुम्भ, दिव्य कुम्भ की परिकल्पना सिर्फ शब्दों में ही नहीं दिखाई दे रही है. किसी समय भगवान श्रीराम के द्वारा शबरी के जूठे बेर खाए जाने की अवधारणा कोई कल्पना नहीं है, यह भी इससे स्पष्ट हुआ. प्रधानमंत्री के इस कदम से समाज से भेदभाव दूर होने में मदद मिले, ऐसी कामना की जा सकती है.

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