26 नवंबर 2018

देश तो आज भी खतरे में हैं


आज से 10 वर्ष पहले 26 नवंबर 2008 को सिर्फ मुंबई नहीं दहली थी बल्कि पूरा देश दहल उठा था. चंद आतंकी शत्रु देश पाकिस्तान से जलमार्ग से आये और आते ही मौत बरसाने लगे. भारतीय सेना के, पुलिस के कुछ जांबाज़ लोगों के साथ-साथ कुछ जांबाज़ नागरिकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए उन आतंकियों के मंसूबों को ध्वस्त किया. ये सब तो वो है जो परदे के सामने दिखाई दे रहा था. इसके उलट जो कुछ परदे के पीछे चल रहा था उसे ध्वस्त करने का काम किया एक मात्र अमर बलिदानी तुकाराम ओम्बले ने. उन्होंने अपनी जान देकर उन आतंकियों में से एक अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया. सोचिये एक पल को यदि वह आतंकी जिंदा न पकड़ा जाता तो क्या होता? भगवा आतंकवाद की, हिन्दू आतंकियों की काल्पनिक अवधारणा पुष्ट होकर भारतीय धरा पर प्रकट होने को तैयार थी. इसके लिए हिन्दू-विरोधियों द्वारा पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर ली गई थी. सबकी पहचान हिन्दू आतंकी के रूप में कराना था. इसके लिए किताबें तैयार थीं, लेख तैयार थे. इसका उदाहरण है हिन्दू-विरोधियों का पूरी बेशर्मी से इस आतंकी हमले पर एक पुस्तक का विमोचन. इसमें इस आतंकी हमले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की साजिश बताया गया. इस अवसर पर विपक्ष के दिग्गज नेता सहित कई मौलवी और राजनैतिक दल के नेता मौजूद थे.


यह एक ऐसा हमला था जो न केवल भारतीय अस्मिता पर किया गया था वरन सोची-समझी साजिश के तरह हिंदुत्व की अवधारणा पर किया गया था. ऐसा इसलिए भी क्योंकि उस मीडिया द्वारा जो उस खतरनाक समय में भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में हमारे सैनिकों की, कमांडो की स्थिति, पोजीशन को लाइव दिखाने में लगी थी, उसी मीडिया द्वारा लगातार कसाब को कलावा पहने दिखाया गया. उस बिकाऊ मीडिया द्वारा बार-बार, लगातार यही प्रयास होता रहा कि कहीं से भी एक सबूत हिन्दू-आतंकवाद के समर्थन में सामने आ जाये. फ़िलहाल ऐसा नहीं हुआ और तमाम सारे सबूतों के आधार पर सिद्ध भी हुआ कि उस आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ है. यह कितनी विद्रूप स्थिति है कि राजनैतिक आधार पर भले ही राजनैतिक दलों के, राजनीतिज्ञों के विभेद हों मगर यही विभेद देश के लिए बनाये जाने लगे हैं. एक राजनैतिक दल के नेता उसी पाकिस्तान में जाकर टीवी पर खुलेआम अपने देश के प्रधानमंत्री को हटाये जाने के लिए मदद मांगते दिखाई देते हैं. ऐसी हरकतों से न केवल उस देश की हिम्मत बढ़ेगी बल्कि आतंकियों के हौसले भी बढ़ेंगे.


आज उस हमले के एक दशक बाद भी भले ही हमारी सुरक्षा एजेंसियां कहती हों कि हम सुरक्षित हैं, भले ही हमारी सेना हम सभी को इसके लिए आश्वस्त करती हो कि हम सब सुरक्षित हैं, हमारा पुलिस प्रशासन भले ही हमारी सुरक्षा के दावे करता हो मगर अंदरूनी सत्य यह है कि मात्र सत्ता कि खातिर ये हिन्दू-विरोधी नेता कब क्या कर बैठें, इनका भरोसा नहीं. इनके लिए किसी न किसी रूप में हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को पुष्ट करना है, भले ही इसके लिए देश को ही दाँव पर क्यों न लगाना पड़े. ऐसे में सोचने वाली बात है कि देश कैसे सुरक्षित है? देशवासी कैसे सुरक्षित हैं?

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