10 सितंबर 2018

समाज की आधुनिक अवधारणा है समलैंगिकता


समलैंगिकता पर अदालत का आदेश आया तो देश में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. समझ नहीं आया कि यह वाकई मानव की विजय है जिससे उसको समानता का अवसर मिला या फिर यह मानसिकता के बीमार होने का परिचायक है? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धारा 377 को अवैधानिक बताते हुए समलैंगिकता को अपराध से मुक्त होने का निर्णय दिया. वैश्विक स्तर पर अमेरिका में समलैंगिक विवाह की अनुमति सहित सात देशों -नीदरलैंडनार्वेबेल्जियमस्पेनदक्षिण अफ्रीकाकनाडा और ब्रिटेन- ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे रखी है. भारत में समलैंगिक विवाह को भले ही स्वीकृति न मिली हो किन्तु उच्चतम न्यायालय ने धारा 377 को संविधान के अनुच्छेद 1415 एवं 21 का उल्लंघन बताते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का आदेश दिया है. समलैंगिकता का सीधा अर्थ समान लिंग के प्रति यौन अथवा रोमांसपूर्वक आकर्षित होने से लगाया जाता है. इसमें पुरुष समलैंगिक अथवा गे (Gay); महिला समलिंगी अथवा लेस्बियन (Lesbian); महिला और पुरुष दोनों के प्रति समान रूप से आकर्षित होने वाला उभयलिंगी (Bisexual); लिंग परिवर्तन (Transsexual) करवाकर खुद को स्त्री या पुरुष की परिभाषा में शामिल करते हैं. आम बोलचाल की भाषा में इन सबको एलजीबीटी (LGBT) समूह के नाम से जाना जाता है. बचपन से किसी विषमलिंगी का पर्याप्त सहयोग न मिलना समलैंगिकता का वातावरण निर्मित करता है. माता-पिता का व्यवहारपति-पत्नी की आपसी सेक्स लाइफलम्बे समय तक घर से बाहर रहने की स्थितिसमागम की अनुकूलता न होना आदि बहुत हद तक समलैंगिकता को जन्म देती है. जेल के कैदीट्रक के ड्राइवरसुरूर क्षेत्रों में तैनात जवानलम्बी आयु के अविवाहित स्त्री-पुरुष में इस तरह की स्थिति को देखा जा सकता है. ये कई अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ है कि समलैंगिकता आनुवांशिक नहींसीखी हुई आदत है और इसे चाहने पर छोड़ा भी जा सकता है. 

ये अपने आपमें एक परम सत्य है कि सेक्स किसी भी जीव की नैसर्गिक आवश्यकता है. न केवल इंसानों में वरन जानवरों में भी इसको देखा गया है. कहा तो ये भी जाता है कि पेड़-पौधों में भी आपस में निषेचन क्रिया संपन्न होती हैजो एक तरह से सेक्स का ही स्वरूप है. बहरहालजिस तरह से मानव समाज के विकास की स्थितियाँ बन रही हैंविकसित हो रही हैंउनके साथ-साथ सेक्स सम्बन्धी समस्याओं मेंदुराचार की घटनाओं में भी वृद्धि देखने को मिली है. प्राकृतिक सेक्स संबंधों के साथ-साथ समाज में अप्राकृतिक सेक्स संबंधों के बनाये जाने की खबरें भी सामने आ रही हैं. देखा जाये तो कहीं न कहीं समलैंगिकता भी अप्राकृतिक शारीरिक सम्बन्ध ही है मगर जैसे-जैसे इसके विरोध की बात सामने आती है वैसे-वैसे ही इसके समर्थन में भी प्रदर्शन किये जाने लगते हैं. अदालतों ने भी इन संबंधों के प्रति उदार रवैया अपनाते हुए कानूनी तौर पर समलिंगियों को पर्याप्त राहत प्रदान की है. समलैंगिकता के विरोधी जहाँ भारतीय संस्कृति में इस तरह के सम्बन्ध न बनाये जाने की वकालत करते हैं वहीं इसके समर्थक इसे अपना अधिकारअपनी जीवनशैली की स्वतंत्रता मानते हैं.

आखिरकार यहाँ समझना ही होगा कि स्वतंत्रता है क्याजीवनशैली आखिर किस तरह से संचालित की जायेइसे भी समझने की जरूरत है कि कहीं जीवनशैली की स्वतंत्रता के नाम परव्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर व्यक्ति सेक्स संबंधों में स्वतंत्रता तो नहीं चाह रहा हैकहीं स्वतंत्रता के नाम पर सेक्स को समाज में कथित तौर पर स्थापित करने की साजिश तो नहींसेक्स को लेकरशारीरिक संबंधों को लेकरविपरीतलिंग को लेकर समाज में जिस तरह से अवधारणा निर्मित की जा रही हैउसे देखते हुए लगता है जैसे इंसान के जीवन का मूलमंत्र सिर्फ और सिर्फ सेक्स रह गया है. आपसी वार्तालाप मेंमित्रों-सहयोगियों के हास-परिहास में बहुधा सेक्सविपरीतलिंगी चर्चा के केंद्रबिंदु बने होते हैं. दृश्य-श्रव्य माध्यमों में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमोंविज्ञापनों में भी सेक्स का प्रस्तुतीकरण इस तरह से किया जाता है जैसे बिना इसके इंसान का जीवन अधूरा है. समस्या यहीं आकर आरम्भ होती है क्योंकि प्रस्तुतीकरण के नाम पर फूहड़ता का प्रदर्शन ज्यादा किया जाता हैदैहिक संतुष्टि के नाम पर जबरन सम्बन्ध बनाये जाने की कोशिश की जाती हैप्यार के नाम पर एकतरफा अतिक्रमण किया जाता हैस्वतंत्रता के नाम पर रिश्तों कामर्यादा का दोहन किया जाता है. सोचना होगा कि कल को वे मानसिक विकृत लोगजो दैहिक पूर्ति के लिए जानवरों तक को नहीं बख्शते हैंअपने अप्राकृतिक यौन-संबंधों को जायज ठहराने के लिए सडकों पर उतर आयेंव्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम परजीवनशैली चुनने की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी जानवर के साथ को कानूनी स्वरूप दिए जाने की माँग करने लगें तो क्या ऐसे लोगों की मांगों को स्वीकारना होगा? ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि धारा 377 पशुओं के साथ बनाये गए यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में शामिल करती है. अब जबकि इस धारा की संवैधानिकता पर ही सवाल उठा दिए गए हों तो पशुओं के साथ यू सम्बन्ध बनाने वालों का सड़क पर उतर आना कोई बड़ी बात नहीं.

समलैंगिकों के आपसी यौनाचार को लेकर वैज्ञानिक अनुसंधान रिपोर्ट्स पर उपलब्ध हैं जिनके आधार पर स्पष्ट है कि पुरुष-पुरुष यौनाचार में एड्स की सम्भावना तो रहती ही है साथ ही इनमें प्रोसाइटिस नामक रोग व्यापक रूप से फैलता है. इस बीमारी की भयावहता के कारण इसे समलैंगिक महामारी के नाम से भी जाना जाता है. स्त्री समलैंगिकों में इसी तरह से ह्युमन पेपिलोमा वायरसहर्पिस आदि बीमारियाँ अतितीव्रता से फैलती हैं. इन बीमारियों के अलावा समलिंगियों में सिफलिसगोमोनियाअमिसियोसिसहेपेटाइटिस बीगले के वायरलयौन-जनित बीमारियों के वाहक वायरस आदि भी किसी महामारी की तरह फैलते हैं. इसके उलट समलैंगिक समर्थक दावा करते हैं कि समलैंगिक गतिविधियों को कानूनी मान्यता न मिलने के कारण ही समाज में एड्स/एचआईवी का फैलाव हो रहा हैइसकी रोकथाम में बाधा आ रही है. आखिर जब विभिन्न अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका है कि समलैंगिकता आनुवांशिक नहीं हैमानसिक बीमारी भी नहीं है वरन व्यावहारिक समस्या है तो उसके सुधारात्मक उपाय किये जाने चाहिए. इसके समाधानस्वरूप सर्वप्रथम बच्चों की परवरिश पर पर्याप्त ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. समय-समय पर उनकी लैंगिक समस्या पर भी विचार किया जाना चाहिए और उनका सहज समाधान प्रस्तुत करना चाहिए. बच्चों में पनप रहे विषमलिंगी संकोच को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए और इसके लिए उनको आरम्भ से ही सह-शिक्षा प्रदान करवाई जाए. इसी तरह से पारिवारिक वातावरण को समृद्ध करने की आवश्यकता है. इसके अलावा समलैंगिकों का बहिष्कार करनेउनको प्रताड़ित करनेउनका मजाक बनाये जाने की बजाय उनको समझाए जाने की आवश्यकता है कि यह मानसिक बीमारी नहीं है और इससे आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है. उनको बताया जाना चाहिए कि समलैंगिकता एक स्थिति है जो अतृप्तता के कारण उपजती है और कहीं-कहीं ये बेलगाम मौज-मस्ती के लिए विकृत वृत्तिस्वच्छंद शारीरिक भोग-विलास की लालसा के रूप में जन्म लेती है. ऐसे लोगों को सहानुभूतिइलाज की आवश्यकता होती है और इस समस्या को सद्भावसहयोग प्रदर्शित करके दूर किया जा सकता है. समझना होगा कि समलैंगिक सम्बन्ध मात्र भावनात्मकता के स्तर पर ही कायम नहीं हो रहे हैं वरन शारीरिकता पर आकर समाप्त हो रहे हैं. दैहिक सुख की भोगवादी लालसा में समलिंगी अपने जीवन को खोखला ही बना रहे हैंजिसका निदान समलिंगी विवाहों की मान्यता प्रदान करने में नहीं वरन इस आदत के इलाज और समाधान में है. 

असल में जिस तरह से इक्कीसवीं शताब्दी के नाम पर उत्पादोंविचारोंखबरोंकार्यक्रमोंभावनाओं का प्रचार-प्रसार किया गया है उसमें इंसान की वैयक्तिक भावनाओं को ज्यादा महत्त्व प्रदान किया गया है. उसके लिए सामूहिकतासामाजिकतासहयोगात्मकता आदि को दोयम दर्जे का सिद्ध करके बताया गया हैव्यक्ति की नितांत निजी स्वतंत्रता को प्रमुखता प्रदान की गई हैये कहीं न कहीं सामाजिक विखंडन जैसी स्थिति है. पाश्चात्य जीवनशैली को आधार बनाकर जिस तरह से भारतीय जीवनशैली में दरार पैदा की गई है वह भविष्य के लिए घातक है. इसके दुष्परिणाम हमें आजअभी देखने को मिल रहे हैं. जिस उम्र में बच्चों को अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए वे रोमांस में घिरे हुए हैंजिस क्षण का उपयोग उन्हें अपना कैरियर बनाने के लिए करना चाहिए उन क्षणों को वे शारीरिक सुख प्राप्त करने में व्यतीत कर रहे हैंजो समय उनको ज्ञानार्जन के लिए मिला है उस समय में वे अविवाहित मातृत्व से निपटने के उपाय खोज रहे हैं. हमारे देश की यह भावी पीढ़ी सेक्ससमलैंगिकताअविवाहित मातृत्वविवाहपूर्व शारीरिक सम्बन्धसुरक्षित सेक्स आदि की मीमांसाचिंतन करने में लगा हुआ है. सेक्स कोदैहिक तृष्णा को एकमात्र उद्देश्य मानकर आगे बढ़ती पीढ़ी न केवल सामाजिकता का ध्वंस कर रही है बल्कि स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ भुलाकर समाज में एक दूसरे तरह की गुलामी को जन्म दे रही है. काश! स्वतंत्रता के नाम पर अधिकारों को समझा जाए न कि अनाधिकार चेष्टा कोकाश! वैयक्तिक जीवनशैली के नाम पर रिश्तों की मर्यादा को जाना जाए न कि उनके अमर्यादित किये जाने कोकाश! निजी जिंदगी के गुजारने के नाम पर पारिवारिक सौहार्द्र को समझा जाए न कि जीवन-मूल्यों के ध्वंस कोकाश! जीवन को जीवन की सार्थकता के नाम पर समझा जाये न कि कुंठित सेक्स भावना के नाम पर. काश....!!!




उक्त आलेख जनसंदेश टाइम्स, दिनांक 10-09-2018 के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया.

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