23 मार्च 2018

राजनैतिक हथकंडा है केजरीवाल की माफ़ी


आन्दोलन के गर्भ से जन्मी आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपनी माफ़ी-यात्रा को ज़ारी रखा है. उनके द्वारा पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांगे जाने के तीन दिन बाद ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से भी माफी मांगी गई है. केजरीवाल ने इन तीनों राजनैतिक व्यक्तियों से लिखित में माफ़ी माँगी है. अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया को लिखे माफीनामे में केजरीवाल ने लिखा कि अब मैं जान गया हूं कि सारे आरोप निराधार हैं, इसलिए मैं आपके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप और बयान वापस लेता हूं और उनके लिए माफी भी मांगता हूं. कुछ इसी तरह की भाषा का प्रयोग केजरीवाल ने गड़करी को लिखे माफीनामा में किया है. केजरीवाल ने इस माफीनामे में कहा है कि मेरी आपसे कोई निजी रंजिश नहीं है. पूर्व में दिए अपने बयान के लिए अफसोस जताता हूं. हम घटना को पीछे छोड़ते हुए कोर्ट में केस को बंद करने की कार्यवाही करते हैं. केजरीवाल ने नितिन गडकरी के भारत के सर्वाधिक भ्रष्ट लोगों की सूची में शामिल होने की बात कही थी. जवाब में  गडकरी ने उन पर मानहानि का केस दायर किया था.


असल में केजरीवाल द्वारा कांग्रेस, भाजपा सहित अनेक दलों के कई नेताओं के खिलाफ आरोप लगाये जा चुके हैं. इन तमाम नेताओं में से तैंतीस नेताओं ने केजरीवाल पर मानहानि का केस कर रखा है. ऐसे में जबकि अब केजरीवाल द्वारा माफ़ी मांगने और केस समाप्त करने को तीन नेताओं को लिखा जा चुका है, तो उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वे जल्द ही बाकियों से भी माफ़ी मांगने का काम करेंगे. असल में केजरीवाल अपने ऊपर दर्ज तैंतीस मानहानि मुकदमों से परेशान हो चुके हैं और अब इनसे छुटकारा पाना चाहते हैं. इसलिए वह माफी मांग रहे हैं. केजरीवाल के माफीनामे की इस प्रक्रिया से सबके अलग-अलग विचार सामने आने लगे हैं. एक तरफ इससे जहाँ उनके पार्टी के पदाधिकारी तथा अन्य नेता असहमत दिख रहे हैं वहीं केजरीवाल का समर्थन करने अले बहुत से लोग उनके माफीनामे को सार्थक कदम बता रहे हैं.

पंजाब के मजीठिया से माफ़ी मांगने के मुद्दे पर पंजाब आम आदमी पार्टी में खुलकर विद्रोह सामने आया. पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 के चुनाव प्रचार में केजरीवाल ने मजीठिया पर ड्रग्स के धंधे में शामिल होने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे. पंजाब में उनकी सरकार आने पर मजीठिया को सलाखों के पीछे भेजने तक की बात केजरीवाल द्वारा कही गई थी. इसी प्रकरण को लेकर मजीठिया ने उनके खिलाफ मानहानि का दावा ठोका था. अब जबकि केजरीवाल ने उनसे लिखित में माफी मांग ली है तो उनके इस कदम पर आम आदमी पार्टी की पंजाब ईकाई ने जबरदस्त आपत्ति व्यक्त की है. पंजाब प्रभारी और सांसद भगवंत मान ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. इसके अलावा उपाध्यक्ष अमन अरोड़ा ने भी इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ-साथ पंजाब के आम आदमी पार्टी विधायकों ने केजरीवाल से स्पष्ट तौर पर कहा है कि वे राज्य में पार्टी के कामकाज में दखल न दें.

इसके अलावा गड़करी से माफ़ी मांगने के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की नेता अंजली दमानिया ने केजरीवाल के इस कदम से अपने आपको ठगा हुआ बताया है. अंजली दमानिया ने ही सबसे पहले भ्रष्टाचार के आरोप गड़करी पर लगाए थे. दमानिया के उन्हीं आरोपों का सहारा लेकर केजरीवाल ने गड़करी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें सबसे भ्रष्ट नेताओं की सूची में शामिल किया था. इसके बाद अंजली ने गडकरी के खिलाफ 2014 लोकसभा का चुनाव भी नागपुर से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन गडकरी यहां बड़े अंतर से जीते थे. इसी तरह आम आदमी पार्टी की ओर राज्यसभा में भेजे गए संजय सिंह ने स्पष्ट किया है कि वह अरविंद केजरीवाल के मसले पर कुछ नहीं कहेंगे लेकिन इस बात पर बराबर कायम रहेंगे कि मजीठिया ड्रग्स डीलर है और उसे जेल जाना चाहिए. इनके अलावा कुमार विश्वास ने भी केजरीवाल के माफीनामे पर असहमति व्यक्त की है.

पार्टी के आलाकमान नेताओं, सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों का केजरीवाल के माफीनामे से सहमत न होना स्पष्ट करता है कि ये कदम केजरीवाल ने न तो राष्ट्रहित में उठाया है और न ही दिल्ली राज्य के हित में. असल उच्चतम न्यायालय नेताओं के मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में करने का आदेश दे चुका है. केजरीवाल बखूबी समझते हैं कि इन मामलों में उन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा. संसाधनों के अभावों और अनेकानेक अन्य आरोपों से जूझ रही पार्टी के लिए इतने अदालती मामलों का आना एक तरह का बोझ ही है. इसके अलावा केजरीवाल को यह भी ज्ञात है कि यदि किसी भी मानहानि मामले में उन्हें सजा हो गई तो उनकी राजनीति पर ग्रहण भी लग सकता है. असल में केजरीवाल के माफी मांगने की यह एक प्रमुख वजह है.

व्यक्तिगत रूप से अपने राजनैतिक कैरियर को बचाने के साथ-साथ अरविन्द केजरीवाल पार्टी की राजनीति को भी बचाए रखना चाहते हैं. उनको इसका सहजता से भान है कि आगामी वर्ष में लोकसभा का चुनाव होना है. चार साल गुजर जाने के बाद भी केंद्र सरकार पर, उसके किसी मंत्री, सांसद पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं. नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दे पर विपक्षियों द्वारा तमाम विरोध के बाद भी आमजनमानस ने केंद्र सरकार के निर्णय के साथ अपनी सहमति व्यक्त की थी. विगत चार सालों में देश के विभिन्न हिस्सों में हुए चुनावों में भाजपा लगातार विजयी होती रही है. उन राज्यों में जहाँ उसके लिए एक-एक सीट निकालना कभी स्वप्न हुआ करता था, आज सरकार बनाये हैं या फिर सरकार में शामिल हैं. ऐसे में राजनीति में एक अलग तरह का खेल खेल रहे केजरीवाल जानते हैं कि जनता को भाजपा, मोदी के खिलाफ करना आसान नहीं होगा. ऐसे में बजाय जनता को उनके खिलाफ करने के किसी न किसी कदम से अपनी तरफ मोड़ा जाये. इसके पीछे कारण यह है कि दिल्ली की सत्ता दोबारा संभालने के बाद से केजरीवाल की पार्टी विधायकों की साख बहुतेरे मुद्दों में गिरी है. कई सारे विधायक अनेकानेक मामलों में संलिप्त भी पाए गए हैं. लगभग दो दर्जन से अधिक विधायकों की सदस्यता पर भी तलवार लटक गई है. प्रशासनिक अधिकारी के साथ हाथापाई का ताजातरीन मामला भी उनके गले की फांस बना ही हुआ है. बतौर मुख्यमंत्री उनका और दिल्ली उपराज्यपाल विवाद भी लगातार सुर्ख़ियों में रहा है. सरकारी मशीनरी का, धन का प्रचार-प्रसार के लिए दुरुपयोग का मामला भी केजरीवाल को झेलना पड़ा है. इन तमाम सारे मामलों से केजरीवाल की उस छवि को जबरदस्त धक्का लगा है जो उनके दिल्ली मुख्यमंत्री बनने के दौरान बनी हुई थी. उनकी राजनीति में वही सारे लक्षण परिलक्षित होने लगे हैं, जिनसे अकुलाकर दिल्ली की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री की सीट तक पहुँचाया था. ऐसे में उनके और उनकी पार्टी के लिए न केवल आगामी लोकसभा चुनाव में वरन दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी मुश्किलें आ सकती हैं.

ऐसा नहीं कि केजरीवाल को ऐसी स्थितियों का भान नहीं होगा. अपने आने वाली मुश्किलों को देखते हुए ही केजरीवाल ने माफ़ी-राजनीति करने का निर्णय लिया है. उनके इस कदम से भले ही उनकी पार्टी के लोग उनसे सहमत नहीं दिख रहे हों मगर उनके समर्थकों द्वारा इसे राजनीति में एक सार्थक कदम बताया जा रहा है. असल में केजरीवाल इस कदम से जनता की सहानुभूति जुटाने की जुगत में लगे हैं. जिन विकास-कार्यों को आगे बढ़ाने की बात वे आज कर रहे हैं वही बात विगत तीन-चार वर्षों में उनके द्वारा क्यों नहीं की गई? किसी भी आरोप के साथ कई-कई सबूत होने का दम भरने वाले केजरीवाल के माफ़ी मांगने का सीधा सा अर्थ है कि वे आरोप महज राजनीति करने के लिए लगाये गए थे? केजरीवाल ने विगत कुछ सालों के आन्दोलन और राजनीति के द्वारा आसानी से समझ लिया है कि यहाँ की जनता चुनाव के दौरान बहुत पीछे का दौर याद नहीं रखती है. इसके साथ ही मतदान करते समय जनता भावुकता में भी निर्णय लेती है. आन्दोलन की भावुकता के बाद सत्ता का स्वाद चखने वाले केजरीवाल आगामी चुनावों में इस स्वाद को ख़राब नहीं करना चाहते हैं. जनता की इसी भावुकता को माफीनामे का मुलम्मा चढ़ा कर वे और मासूमियत से जनता के सामने फिर से प्रस्तुत करना चाहते हैं. जिससे सत्ता का बना हुआ स्वाद ख़राब न होकर पुनः उनके मुख में ज्यों का त्यों लगा रहे.



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यह आलेख जनसंदेश टाइम्स, दिनांक 23-03-2018 के सम्पादकीय में प्रकाशित है.

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