13 अक्टूबर 2017

बड़ी जिम्मेवारी के लिए हिन्दू क्रियाकलापों की राह पर

देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का कथित दावा करने वाले आजकल खुद को संभाल नहीं पा रहे हैं और दावा करने में लगे हैं कि देश संभालेंगे. पिछले कुछ महीनों से उसी पार्टी के पारिवारिक अध्यक्ष पद पर बैठने को लालायित उनके पारिवारिक उपाध्यक्ष कह भी चुके हैं कि वे बड़ी जिम्मेवारी लेने को तैयार हैं. पार्टी उपाध्यक्ष से अध्यक्ष पद पर स्थानांतरित होने को उत्सुक वे ये समझते हैं कि देश के प्रधानमंत्री का पद भी इसी तरह स्थानांतरित होकर झोली में चला आता है. हाँ, कुछ समय पहले तक अवश्य ही ऐसा होता रहा है. परिवार के अलावा वे लोग भी उच्च पदों पर शोभायमान हुए जो उस महाशय के परिवार की एक सदस्य की पेटीकोट सरकार को, किचेन कैबिनेट को शोभित कर चुके हैं. महाशय भूल गए कि वो दौर कुछ और था, ये दौर कुछ और है. तब  न तो तकनीक का इतना अधिक प्रसार-प्रचार था और न ही आम आदमी इतना जागरूक था. तब देश के सर्वोच्च पद पद पर पारिवारिक मुहर लग जाती थी. इधर आदमी भी जागरूक हुआ है, अब उसका काम सिर्फ मतदान करना भर नहीं रह गया है. अब वो सक्रियता के साथ अपनी उपस्थिति को दर्शाता भी है और सही-गलत के निर्णयों में सहभागी भी बनता है.


इन सब बातों से बेखबर पार्टी के स्व-घोषित युवराज बिना सिर-पैर की बातें करने में लगे हैं. पहले तो वे खुद को पार्टी की बड़ी जिम्मेवारी लेने के योग्य बताते हुए तमाम तरह के बयान देने में लगे थे. इसी तत्परता, आकुलता में वे देश के सर्वोच्च पद को भी पार्टी अध्यक्ष की तरह मान बैठे. अति-उत्साह में एक जगह कह बैठे कि मोदी जी पद छोड़, वे छह माह में रोजगार उपलब्ध करा देंगे. ये बयान सिवाय हास्य पैदा करने के और कुछ नहीं करता है. वे अपने आपको ये दर्शाने में लगे हैं कि उनको अपनी जिम्मेवारी का भान है, वे बड़ी से बड़ी जिम्मेवारी को उठाने में अब सक्षम हो गए हैं. इस एक बयान की बात नहीं है. उनके बयान और उनके कृत्य सदैव भारतीय राजनीति में या तो विवाद पैदा करते रहे हैं या फिर हास्य उत्पन्न करते रहे हैं. आप सभी को याद होगा कुछ माह पूर्व उन्होंने बयान दिया था कि मंदिर जाने वाले लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं. ज़ाहिर सी बात है कि इस बयान के द्वारा वे हिंदुत्व को निशाना बनाते हुए अनेकानेक हिन्दुओं की भावनाओं को भी संदिग्ध बना रहे थे. इसके बाद अभी कुछ दिन पहले यही महानुभाव मंदिर में माथा टेकते दिखाई दिए. इनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या आप लड़कियाँ छेड़ने गए थे? स्पष्ट है कि चुनावी आहट ने उनको सचेत कर दिया है. विगत कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति में जिस तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण के विरोध के चलते हिन्दुओं में एकजुटता बढ़ी है, उसने तमाम राजनैतिक दलों को अचंभित कर दिया है. इसी अचम्भे को अपने पक्ष में करने की मानसिकता के चलते पुराने दल के वर्तमान युवराज मंदिर की शरण में चले गए. और तो और जोश में वे एक दिन अपने आपको जन्मजात हिन्दू भी घोषित कर चुके.


उनका मन इतने से भी नहीं माना तो वे हिन्दुओं के कृत्यों की तरफ एक कदम और बढ़ गए. पिछले दिनों हुई जघन्य घटना आप में से कोई नहीं भूला होगा. बीफ के विरोध में उनके दल के कार्यकर्ताओं ने खुलेआम सड़क पर एक गाय को काट डाला. इस जघन्य वारदात पर किसी तरह का विरोध नहीं आया क्योंकि तब उनके दिमाग में अनेकानेक जगहों के वोट-बैंक के रूप में बीफ-प्रेमी दिखाई दे रहे थे. अब जबकि गुजरात में चुनाव की आहट सुनाई दे रही है तब यही बीफ समर्थक, गाय को काटने के मूक समर्थक गाय को चारा खिलाने पहुँच गए. हालाँकि वे ऐसा करते हुए भी हिन्दुओं पर, संघ पर हमला करना नहीं भूले. इस हमले में वे संघ की शाखाओं में महिलाओं को शॉर्ट्स में देखने की इच्छा व्यक्त कर गए. ये मानसिकता कहीं न कहीं उनकी पार्टी की ही मानसिकता है. कभी उनके नेता महिला को टंच माल कहते हैं तो कभी अफ़सोस व्यक्त करते हैं कि पुरानी बीवी मजा नहीं देती है. शायद ऐसी ही किसी मानसिकता के वशीभूत वे महिला शौचालय में घुस गए.


बहरहाल, देश की पुरानी पार्टी का दम भरने वालों को अपनी हरकतों को सुधारना होगा. उनके पूर्ववर्ती क्या-क्या कर गए, उनके पुरखे क्या उपलब्धियां देश को दे गए वो एक इतिहास है. उन उपलब्धियों पर, उनके सकारात्मक कार्यों पर वर्तमान के लोगों ने किस तरह का पलीता लगाया है, किस तरह भ्रष्टाचार का दीमक लगाया है इसे कोई नहीं भूल सकता है. बड़ी जिम्मेवारी लेने को आकुल युवराज यदि जल्द ही अपने कृत्यों, बयानों को न सुधारा, उन पर अंकुश न लगाया तो जल्द ही वे और उनकी पार्टी पुरानी के साथ-साथ विलुप्त होने की तरफ चल देगी. 

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